संसार में समस्त चराचर प्राणी सौर मंडल के 9 ग्रहों के ही प्रभाव से दुःख या सुख पाता है। इन्ही नव ग्रहों से इन नव दुर्गाओ को सम्बद्ध कर दिया गया है। जिस किसी भी व्यक्ति को किसी ग्रह से या सारे ग्रहों से पीड़ा है। उसे क्रम से इन नव दुर्गाओ की पूजा अर्चना करनी चाहिए।

शैल पुत्री क़ी पूजा में सफ़ेद तिल, दूध, सफ़ेद चन्दन, बेलपत्र एवं एवं सूखे फल में मखाना ही चढ़ाना चाहिए। शैलपुत्री क़ी पूजा में चन्दन आदि चढाने के लिए हमेशा दाहिने हाथ क़ी सबसे छोटे एवं सबसे बड़ी वाली अंगुली के बीच वाली अंगुली अनामिका का ही प्रयोग करना चाहिए. आसन कम्बल का होना चाहिए। 

ब्रह्मचारिणी- यह रविवार के दिन करने को बताया गया है. परम्परा गत रूप में इसे नवरात्री के दूसरे दिन किया जाता है। तिलक दही एवं चावल का होना चाहिए. दही, सिंघाड़ा, कमल गत्ते का फूल, सूखे फल में चिरौंजी, एवं तिलक लगाने के लिए दाहिने हाथ क़ी सबसे बड़ी उंगली का प्रयोग करना चाहिए। आसन पलास के पत्ते का होना चाहिए। 

चन्द्रघंटा- परम्परा गत तौर पर इसे नवरात्री के तीसरे दिन मनाया जाता है। किन्तु सिद्धांत ग्रंथो के अनुसार इसकी पूजा सोमवार के दिन होनी चाहिए। फूल बेला या चमेली का होना चाहिए। तिलक के लिए घी का प्रयोग करें. किसी चन्दन का प्रयोग न करें। अनार क़ी गीली लकड़ी से तिलक लगायें। हमेशा धुप का प्रयोग करें, आसन पुरईन या कमल के पत्ती का होना चाहिए।

कुषमांडा- इनकी पूजा मंगलवार को करनी चाहिए. फूल कूष्मांडा अर्थात कुम्हड़े का होना चाहिए. फल इलायची एवं कमलगट्टे का दाना होना चाहिए. तिलक अष्टगंध, तिलक के लिए पान के पत्ते क़ी सहायता से तथा कोई भी गोरस अर्थात दूध, दही, घी आदि का प्रयोग नहीं होना चाहिए। आसन मृगचर्म होना चाहिए. यदि साबूत कुम्हड़ा चढ़ाया जाय तो और अच्छा होगा। 

स्कन्दमाता- इनकी पूजा बुधवार को होती है. परम्परा गत रूप में इनकी पूजा नवरात्री के पांचवें दिन होती है। नारियल, दही, शहद, पान का पत्ता, नैवेद्य में गुड, तिलक के लिए हल्दी, पूप अर्थात पूवा, एवं फूल सरसों का हो तो बहुत अच्छा। 

कात्यायनी देवी- वृहस्पतिवार को पूजी जाने वाली कात्यायनी देवी के परम्परागत रूप में नवरात्री के छठे दिन पूजन का विधान है। अंगूर, बेर, अंजीर, महुवा एवं माजू फल चढ़ावें. तिलक खैर एवं शमी का रस निकाल कर बना लें।कच्ची सुपारी एवं नारियल अर्पण करें. भेड़ से बने उन का आसन प्रयोग करें। कृत्यासन लगाकर पूजा करें. अर्थात दोनों घुटने मोड़ कर बैठें। नारियल से बना प्रसाद चढ़ावें एवं स्वयं भी खाएं।

कालरात्रि- काल रात्री क़ी पूजा शुक्रवार को होती है. केले का फूल एवं फल चढाते है। बेल के गूदे को सुखाकर और उसे पीस कर चूरन बनाकर तथा उसमें हल्दी मिलाकर उसी का तिलक लगावें। तिलक के लिए बीच वाली बड़ी उंगली का प्रयोग करें। आसन कुश का प्रयोग करें.  रहस्य मल्लिका में लिखा है कि केले के पत्ते का आसन बनाकर उसी पर बैठें।

महागौरी- इनकी पूजा शनिवार को तथा परम्परा के अनुसार आठवें दिन होती है। गुड़हल का फूल, गुलाब का सत, विविध सुगंध, पूड़ी एवं घी से बने पदार्थ अर्पण करें। तिलक के लिए कुश का प्रयोग करें। आसन में बेंत से बनी चटाई का प्रयोग करें. एकासन क़ी मुद्रा में पूजा का विधान बताया गया है। बिना छिला साबूत छिलके समेत नारियल को अर्पण कर नदी में बहा दें। 

माँ की कृपा सब पर बनी रहे, सब का कल्याण करो  माँ