नारी शिक्षा का महत्त्व पर हिंदी में निबंध (Essay on Role of Women in Society in Hindi)
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नारी शिक्षा का महत्त्व-शाश्वत,अनिवार्य और अपरिहार्य है
मानवीय सदगुणों के पूर्ण विकास, परिवार तथा समाज के सुधार, बच्चों के चरित्र-निर्माण एवं देश के उत्थान के लिए नारी-शिक्षा का महत्त्व शाश्वत है, अपरिहार्य है,अनिवार्य है। दूसरे, एक पुरुष की शिक्षा का अर्थ केवल एक व्यक्ति की शिक्षा है, जबकि एक नारी की शिक्षा का अर्थ सम्पूर्ण परिवार की शिक्षा है। अत: पारिवारिक सुख-शान्ति के लिए तथा पूर्ण परिवार को सुशिक्षित बनाने के लिए नारी की शिक्षा महत्त्वपूर्ण है।
“नारी स्नेह और सौजन्य की देवी है । वह पशु तुल्य व्यक्ति को मनुष्य बनाती है। मधुर वाणी से जीवन को अमृतमय बनाती है। उसके नेत्र में आनन्द का दर्शन होता है । वह संतप्त हृदय के लिए शीतल छाया है। उसके हास्य में निराशा हरने की अपूर्व शक्ति है।
नारी शिक्षा का महत्त्व-श्रेष्ठ पत्नी के लक्षण
नारी-जीवन मुख्यतः पत्नी और माता, दो रूपों में विभकत है। शिक्षित पत्नी परिवार के लिए वरदान है। स्नेह, सुख, शान्ति और श्री की वर्द्धक है। समन्वय, सामंजस्य और समझौते की साक्षात् प्रतिमा है। शास्त्रों में श्रेष्ठ पत्नी के छह लक्षण बताए गए हैं-
शास्त्रों में श्रेष्ठ पत्नी के बताये गये 6 लक्षण
कार्येषु मंत्री, करणेषु दासी ; भोज्येषु माता; रमणेवु रम्भा।
धर्मानुकूला क्षमया धरित्री, भार्या च पाड्गुण्यवतीह दुर्लभा ॥
शास्त्रानुसार
1-कार्येषु मंत्री
कार्येषु मंत्री अर्थात् काम-काज में मंत्री के समान सलाह देने वाली मंत्री रूप में सलाह वही दे सकती है, जिसमें विवेक हो, बुद्धि का विकास हो। बुद्धि शिक्षार्जन से विकसित होती है ।
अशिक्षित पत्नी जीवन, जगत् या व्यवसाय की समस्याओं में क्या सलाह देगी ? वह तो विपत्ति आने पर और भी संकट को निमंत्रण देगी।
2-करणेषु दासी
करणेषु दासी अर्थात् सेवादि में दासी के समान कार्य करने वाली।’ सेवा’ करने के लिए सेवा के महत्त्व का ज्ञान तथा उसकी सीमा और विधि कौ जानकारी चाहिए। इसके सेवा में निष्ठापूर्वक संलग्न होने की आकांक्षा अनन्तर चाहिए। शिक्षा के अभाव में नारी में सेवा का अर्थ जानने की क्षमता कहाँ से आएगी ?
3-भोज्येषु माता
भोज्येषु माता अर्थात् माता के समान स्वादिष्ट, स्वास्थ्यवर्द्धध भोजन कराने वाली। शिक्षित नारी ही पति के स्वास्थ्यानुकूल भोजन की महत्ता को समझ सकती है । वह मधुमेह के रोगी परिवारिक सदस्य से प्रसाद के नाम पर लड्डू और मिठाई खाने का आग्रह नहीं करेगी, रक्तचाप के रोगी पति को अधिक नमकीन खाद्य पदार्थों के सेबन के लिए विवश नहीं करेगी । समय पर, रुचिकर और मौसम के अनुकूल गरम-गरम भोजन देगी।
4- रमणेवु रम्भा
रमणेषु रम्भा’ का अर्थ है शयन के.समय अप्सरा के समान सुख देने वाली । रमण-क्रीडा शिक्षा का अंग है। अपढ़, अशिक्षित, अज्ञानी नारी शिक्षा के अभाव में सेक्स बम ‘ बनकर सम्भोग सुख तो दे सकती है, किन्तु कलात्मक आनन्द शिक्षित नारी ही प्रदान कर सकती है।
5-धर्मानुकूला
धर्म के अनुकूल काम करने वाली अर्थात् ‘ धर्मानुकूला’ । धर्म और अधर्म को समझने के लिए ज्ञान चाहिए। ज्ञान का आधार है शिक्षा। अत: पत्नी रूप में नारी-शिक्षा का अत्यन्त महत्त्व है। पत्नी-धर्म के पालन से रत्ना के रामबोला मानस के तुलसी बने और विद्योत्तमा के कालिदास संस्कृत वाड्मय की विभूति बने।
6- क्षमया धरित्री
क्षमया धरित्री अर्थात् क्षमादि गुण धारण करने में पृथ्वी के समान स्थिर रहने वाली । कारण, गलती करना मानव का स्वाभाविक धर्म है ।उस गलती पर क्रोध प्रकट करना, कलह उत्पन्न करता है। कलह परिवार का नाश है ।’ क्षमा’ आती है ‘बुद्धि’ से | बुद्धि की जन॑नी है शिक्षा।
इस प्रकार पत्नी रूप में नारी-शिक्षा का महत्त्व आवश्यक ही नहीं अनिवार्य भी है,ताकि वह सुन्दर, श्रेष्ठ विकासशील परिवार की संरचना में योग दे सके।
नारी शिक्षा का महत्त्व-नारी का मातृत्व रूप
नारी-जीवन का दूसरा रूप है माता का । मातृरूप में नारी का दायित्व गुरुतर है, महान् है। कारण, माता की गोद बच्चे की पाठशाला है। मनुष्य वही बनता है जो उसकी माता उसे बनाना चाहती है।
अभिमन्यु ने माँ के गर्भ में ही चक्रव्यूह तोड़ने की शिक्षा प्राप्त की थी। शिवाजी को “शिवा ‘ बनाने में माता जीजाबाई का हाथ था। यदि माता शिक्षित न होगी,तो देश की संतानों का कल्याण नहीं हो सकता। कोई भी राष्ट्र अपने नौनिहालों को सुशिक्षित माँ की शिक्षा से वंचित रखकर उन्नति के स्व नहीं देख सकता।
शिशु-शुश्रृषा’ मातृत्व की दीर्घ तपस्या है। तप कार्य के प्रति समर्पित ध्यानस्थ समाधि है।शिशु के तन-मन को स्वस्थ रखकर विकास-पथ पर अग्रसर करना माँ की तपस्या है। तप का ज्ञान प्रकाश का प्रदाता है। शिशु के शारीरिक एवं मानसिक विकास के ज्ञान की शिक्षा के अभाव में मातृत्व का तप निष्फल है, दिग्भ्रान्त है। स्वस्थ, सुन्दर और ज्ञानवान् शिशु शिक्षित नारी ही प्रदान कर सकती है।
नारी शिक्षा का महत्त्व-अशिक्षिता नारी का रूप
अशिक्षिता नारी स्वभावत: दुर्बल होती है, परम्पराओं से ग्रस्त रहती है, जादू, टोना-टोटके में विश्वास रखती है, भूत-प्रेत की उपासिका होती है। प्रगतिशील पग उठाने में असमर्थ रहती है। कुरीति और कुसंस्कारों की लक्ष्मण-रेखा पार करते हुए हिचकती है,झिझकती है । इसलिए निरक्षर नारी का जीवन अंधकार की कारा है ।
उपसंहार
शिक्षा नारी में जीवन की परिस्थितियों का सामना करने की योग्यता प्रदान करती है। उसे श्रेष्ठ जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा देती है। शिक्षिता नारी अपने बच्चों, परिवार, कुल,समाज तंथा राष्ट्र में संस्कार और सुरुचि जागृत करेगी । श्रेष्ठतर चरित्र का निर्माण करेगी।
सुशिक्षिता नारी नौकरी कर गृहस्थी की आय बढ़ाएगी । अध्यापिका बनकर राष्ट्र को शिक्षित करेगी। परिचारिका (नर्स) बनकर रोगियों और पीड़ितों की वेदना हरेगी । लिपिक बनकर कार्यालय-संचालन में सहयोग देगी । विधिवेत्ता बनकर समाज को न्याय प्रदान करेगी । नेत्री बनकर देश को कुशल नेतृत्व प्रदान करेगी। अतः नारी के लिए पूर्णतः सुशिक्षिता होना परमावश्यक है।
नारी पर हिंदी में निबंध ( Essay on Woman in Hindi) |
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