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राष्ट्र-निर्माण में नारी का योगदान का भावार्थ
प्रत्येक देशवासी के लिए उसका राष्ट्र ईश्वर का स्वरूप है। राष्ट्र-निर्माण का अर्थ , ईश्वरीय कार्य करना। इस ईश्वरीय कार्य को करने में जहाँ पुरुषों ने अपना जीवन-न्यौछावर कर दिया, वहाँ नारियाँ भी इस कार्य में पीछे नहीं रहीं।

राष्ट्र-निर्माण के प्रारम्भ से आज तक पुरुष का साथ देकर, उसकी जीवन-यात्रा सफल बनाकर, उसके अभिशापों को स्वयं झेलकर और वरदानों से राष्ट्रीय जीवन में अक्षय शक्ति भर कर नारी ने जो योगदान
दिया है, वह उसकी अमर कीर्ति का परिचायक है।
पुरुष को आत्मज प्रदान कर नारी ने ‘ जाया ‘ नाम को सार्थक करते हुए राष्ट्र को शिशु- पुष्पों से सुवांसित किया। बालकों को राष्ट्र के भावी सुयोग्य नागरिक तथा बालिकाओं को दक्ष गृहणियाँ बनने की शिक्षा-दीक्षा देकर उन्हें राष्ट्र-निर्माण का आधार स्तम्भ बनाया।
अध्यापिका बन उन्होंने शिक्षा दी, परिचारिका और चिकित्सक बन घायलों और रोगियों को स्तेह प्रदान किया। धर्म की उपासिका बन उसने समाज को अनैतिकता के विष से सावधान किया। सामाजिक कार्यों को प्रगति दी । विधायिका और सांसद बन राष्ट्र-निर्माण की योजनाएँ प्रस्तुत की । प्रधानमंत्री बन कर न केवल राष्ट्र-निर्माण ही किया, अपितु राष्ट्र के भाल को विश्व में उन्नत किया।
विश्व निर्माण में नारियों का योगदान
राष्ट्र-निर्माण ही क्यों, विश्व-निर्माण की कीर्तिस्तम्भ नारियाँ आज भी राष्ट्र-निर्माण की प्रेरणा दे रही हैं। विश्व को सन्तति-निरोध का नया विचार देने वाली मार्गरिट सेंगर,महिला मताधिकार के लिए सर्वप्रथम लड़ने वाली इमिलाइन पैकहर्स्ट, नवीन बाल-शिक्षण-पद्धति कौ प्रणेता मेरिया मांटेसरी, वर्ल्ड चीफ गाइड बेडन पाबेल, नेत्रहीनों की ज्योति हेलन-केलर, करुणा और स्नेह की देवी मदर टेरेसा राष्ट्र-निर्माण कार्यों में ही संलग्न रही हैं।
अपने-अपने राष्ट्रों के निर्माण में विश्व प्रसिद्ध महिला प्रधानमंत्रियों का कार्य उल्लेखनीय है। इस दृष्टि से भारत की भूतपूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी, श्रीलंका की भूतपूर्व प्रधानमंत्री सिरीमावो भंडारनायके, राष्ट्रपति चन्द्रिका कुमारतुंगे, इजराइल की भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती गोल्डामायर और ग्रेट ब्रिटेन की पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती मार्गरेट थैचर का नाम स्वार्णक्षरों में अंकित रहेगा।
नारी के साहसपूर्ण कार्य
इतना ही नहीं जोखिम भरे, साहसपूर्ण और अद्भुत कारनामे करके अपने राष्ट्र के भाल को उन्नत करने में भी नारी पीछे नहीं रही। श्रीमती वेलनटीना तेरेश्कोवा प्रथम महिला अंतरिक्ष यात्री थी। उन्होंने ‘वोस्तोक 6‘ अंतरिक्षयान में बहत्तर घंटे, इकतालीस मिनिट अंतरिक्ष में बिताए और पृथ्वी की अड़तालीस बार परिक्रमा की।
इसी प्रकार जुंको तबाई नामक जापानी महिला ने 6 मई, 1975 को माउंट एवरेस्ट पर विजय प्राप्त की। सु-श्री बछेंद्री पाल भी एवरेस्ट पर चढ़ने वाली प्रथम भारतीय महिला हैं। नीम मिली जीन किंग ने विश्व टैनिस प्रतियोगिता अनेक बार जीत कर अमरीका का ज्ञाम उज्ज्वल किया। सन्1953 में संयुक्त राष्ट्रंसंघ महासभा की अध्यक्षा श्रीमती विजयलक्ष्मी पंडित थीं।इस कूटनीतिज्ञा नारी ने विश्व महासभा की अध्यक्षता कर भारत कीसाख को चमकाया है।
विभिन्न संगठनों में नारी
नारी ने हर क्षेत्र में पुरुष के कंधे से कंधा मिलाकर राष्ट्रोत्थान में सहयोग दिया है। शिक्षा-क्षेत्र में महिलाओं का योगदान अनिर्वचनीय है । न केवल अध्यापिका बन उसने भारत को शिक्षित किया, अपितु डॉ. माधुरी शाह जैसी विदुषी महिला विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की अध्यक्षा रही हैं।
राजनीति के क्षेत्र में जहाँ श्रीमती इंदिरा गाँधी भारत की प्रधानमंत्री रहीं हैं, वहाँ महिला विधायकों, सांसदों और मंत्रियों की संख्या भी पर्याप्त दिखाई देती है। मुख्यमंत्री रहीं सुचेता कृपलानी, जयललिता, मायादेवी, सुषमा स्वराज, राबड़ी देवी, राजेन्द्र कौर भट्टल, शीला दीक्षित के नाम राष्ट्र-निर्माण में अमर रहेंगे।
न्याय के क्षेत्र में नारी का योगदान कम नहीं रहा। महिला वकील तो भारत के हर न्यायालय में मिल जाएंगी । उन्होंने न्यायाधीशों के पद को भी सुशोभित किया है । इस दृष्टि से केरल हाईकोर्ट की प्रथम महिला न्यायाधीश श्रीमती अन्नाचेंडी और दिल्ली उच्च न्यायालय की न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्रीमती लीला सेठ का नाम स्मरणीय रहेगा।
प्रथम महिला वायु-सुरक्षा अधिकारी प्रेम माथुर, प्रथम महिला छाताधारी सैनिक गीता घोष, पहली वायुयान पायलेट दूबी बैनर्जी, अत्याधुनिक वायुयानों की कमाण्डर सौदामिनी देशमुख, प्रथम महिला ट्रेन ड्राईबर सुरेखा जाधव, डीजल इंजन की प्रथम ड्राईवर मुमताज ‘काठावाला का नाम वाहन-चालकों में अमर रहेगा।
पहली महिला आई.पी.एस. (पुलिस) अधिकारी किरणबेदी ने अपने दो वर्ष के कार्यकाल में जो जेल सुधार किए, उसके लिए उन्हें ‘मैगसेसे पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया है।
राष्ट्र-निर्माण में नारी का योगदान का एक विशिष्ट क्षेत्र है–चिकित्सा। इस क्षेत्र के परिचर्या (नर्सिंग) विभाग में एकमात्र महिलाओं का साम्राज्य है। पीड़ित, कष्ट भोगते, ‘कराहते, चीखते-चिल्लाते मानव के कष्ट को नारी का स्नेह और माधुर्य ही हर सकता है।
यह कार्य पुरुष के लिए दुष्कर है। भारत की प्रथम महिला डॉ. प्रेमा मुखर्जी और हृदयरोग विशेषज्ञा डॉ. पद्मावती तथा दीन-दुखियों की सेविका मटर टेरेसा अपनी राष्ट्र सेवा के कारण कभी नहीं भुलाई जा सकेंगी।
इन सब सेवाओं और राष्ट्र-निर्माण में योगदान से ऊपर है नारी का त्याग और राष्ट्र कौ बलिवेदी पर आत्माहुति के लिए प्रेरणा देने की अद्भुत शक्ति। राजपूतनियों ने वीर सपूत पैदा किए और उन्हें देश और धर्म की खातिर जान पर खेलने को शिक्षा दी।
‘सोलह बरस तक क्षत्री जिएँ आगे जीने को धिक् कार वीर पाठ पढ़ाने वाली नारियाँ ही थीं। माता जीजाबाई ने शिवाजी को हिन्दू-पद-पादशाही का संस्थापक बनाया। लक्ष्मीबाई से लेकर कस्तूरबा गाँधी तक स्वातंत्र्य-संग्राम में नारी-बलिदानियों की लम्बी श्रृंखला है।
झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई तो ‘मनुज नहीं अवतारी थी, ‘जिसने देश की स्वतन्त्रता के लिए अपना अंग-अंग कटवा दिया। इसी प्रकार वीरांगना दुर्गावती और चेननमा को कौन भूल सकता है।
साहित्य राष्ट्र की उन्नति का मापदण्ड है। प्रांतीय भाषाएँ हों या विदेशी आंग्ल भाषा या राष्ट्र-भाषा हिन्दी, सभी में महिलाओं ने साहित्य-सर्जन कर राष्ट्र की आत्मा को प्रकट ‘किया। साहित्य को समाज का दर्पण बनाकर जन-जागरण को झकझोरा। सुभद्राकुमारी चौहान और महादेवी वर्मा की कविताएँ पढ़ते-पढ़ते मन नहीं भरता।
उपसंहार: राष्ट्र-निर्माण में नारी का योगदान
राष्ट्र-निर्माण में नारी का योगदान -निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि आदि काल से राष्ट्र के निर्माण में नारी का योगदान काल और परिस्थिति के अनुकूल रहा है । उसने राष्ट्रों को आत्मांश प्रदान कर जगती रचाई, तो सुयोग्य संस्कार देकर राष्ट्र को श्रेष्ठ नागरिक प्रदान किये। गृहिणी के रूप में घर का निर्माण किया तो हाथ में तलवार लेकर राष्ट्र की रक्षा के लिए निकल पड़ी नृत्य-संगीत से दिल बहलाव किया, तो सेवा की मूर्ति बन मानव की पीड़ा का हरण किया। शिक्षक बन राष्ट्र को श्रेष्ठ शिष्य प्रदान किए तो प्रधानमंत्री बन राष्ट्र की भाग्य-विधाता बनी । इस
प्रकार राष्ट्र-निर्माण में नारी का योगदान अनिर्वचनीय है, असीमित है।