नारी का आभूषण सौंदर्य नहीं, उसके सौम्य गुण हैं पर हिंदी में निबंध
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सौंदर्य के रूप
सौन्दर्य ईश्वर के ऐश्वर्य का रूप है। सौन्दर्य परम सत्य है, परम सत्य की अभिन्न विभूति है। सौन्दर्य स्वयं में एक दिव्य शक्ति है। अत: सौन्दर्य की सत्ता सर्वव्यापी है।
इस सत्य को नारी अंगराग के लेप से; स्वर्ण, रत्न, रजत आदि के आभूषणों से परिवर्धित करती है। क्रीम, पाउडर, लिपस्टिक आदि कृत्रिम साधनों-प्रसाधनों से अधिक अलंकृत करती है।
सौन्दर्य नारी की लोकप्रियता में चार चाँद लगाता है। जैसे कि सीता जी विवाह मंडप की ओर जा रही हैं। उनके शरीर पर आभूषण सुशोभित हो रहे हैं, ‘धूषण सकल सुदेह सुहाए। अंगरचि सखिन्ह बनाए। ‘इतना ही नहीं, वे वन में भी पुष्पों से अलंकरण करती हैं, रूप को निखारती हैं।
सौन्दर्यमयी सजी नारी पुरुष के मन को आकर्षित करती है, मोहती है। जब सुन्दरता चलती है, तो देखने वाली आँखें, सुनने वाले कान और अनुभव करने वाले हृदय साथ-साथ चलते हैं। दर्शक मदमत्त हो जाते हैं। काल भी एक बार ठहर जाता है।
आज का विश्व मिस यूनिवर्स, मिसवर्ल्ड, मॉडल ऑफ दी वर्ल्ड के नाम से नारी-सौन्दर्य की प्रतियोगिता कराता है । द वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल शो, द जेम एण्ड ज्वैलरी एक्पोर्ट प्रमोशन काउंसिल शो, दटिफैनीज शो केस, द गोल्ड मास्टर्स प्रेजेण्टेशन के भव्य आयोजनों द्वारा नारी की छवि को और ग्लैमरस बना रहा है । इनके अतिरिक्त डिजायनरों की पोशाकों के लिए प्रदर्शन और तमाम छोटे-मोटे आयोजन वर्ष-भर चलते रहते हैं ।
सुन्दरता की होड़ और दौड़ में भारत की नारी भी कम नहीं । सर्वश्री रीता फारिया, ऐश्वर्या राय, सुष्मिता सेन,
डायना हेडेन तथा युक्ता मुखी विश्व-सौन्दर्य प्रतियोगिता में विजयी भारतीय सौन्दर्य की प्रतीक हैं।
अलंकार और सौंदर्य नारी-जीवन की सफलता
परन्तु क्या सचमुच अलंकार और सौन्दर्य ही नारी-जीवन की सफलता है ? क्या रूप और केवल रूप (प्राकृतिक या कृत्रिम रूप) में ही नारी का नारीत्व है ? क्या इस शरीर का सुघड़पन और वर्ण, हाथी-सी चाल, सिंह-सी कटि, शशि-सा मुख, तोते-सी नाक, ‘हिरण-सी आँखें, अनार के दानों से दाँत, सर्प की-सी बेणी, रति-सा रूप-लावण्य ही सुन्दर नारी के गुण हैं ? नहीं।
जीवन के लिए रूप चाहे कितना भी वांछनीय क्यों न हो, इन प्रश्नों का उत्तर “हाँ” में नहीं दिया जा सकता। नारी का सौन्दर्य वस्तुत: उसकी बाह्य सज्जा में नहीं, उसके गुणों के विकास में है, जो नारी को सचमुच नारी बना देते हैं और जो उसके जीवन के विकास में सहायक हो सकते हैं ।
मटर टेरेसा, मृणाल गोरे, सुषमा स्वराज, ममता बैनर्जी जैसी महिलाओं का सौम्य गुणों से युक्त सौन्दर्य इसका प्रतिनिधित्व करते हैं।
रघुवंश काव्य में अज पत्नी इन्दुमती की मृत्यु पर विलाप करते हुए कालिदास कहते हैं–
गृहिणी सचिव: सखी मिथ: प्रिय शिव्या ललिते कला विधाँ।
कालिदास
नारी का जीवन-बिकास जिन गुणों से होता है, इसे समझने से पहले यह जान लेना आवश्यक है कि आखिर नारी का जींवन और कर्म-क्षेत्र क्या हैं ? यदि नारी का कार्य पुरुष की कामुक दृष्टी को उत्तेजित करना और उसकी वासनापूर्ति मात्र हो तो हम कह सकते हैं कि उसे अपने शारीरिक-सौन्दर्य को बढ़ाने में दिन-रात एक कर देना चाहिए और यदि आज की रमणी अपने केश-विन्यास तथा श्रृंगार आदि में लगी रहती है तो इसके लिए उसे दोष नहीं दिया जा सकताI
नारी का व्यापक स्वरुप
किन्तु नारी का महत्त्व केवल रमणीत्व के कारण तो नहीं है। वह उससे बहुत अधिक महत् है, व्यापक है और उदार है।’रामायण’ में श्री रामचन्द्र भी पत्नी सीता के सम्बन्ध में कहते हैं–
मेरी पत्नी विचार के समय मंत्री, काम-काज के समय दासी, धर्म-कार्य में पत्नी, सहिष्णुता में पृथ्वी, स्नेह करते हुए माता, विलास के समय रम्भा और खेल-कूद कै समय मित्र की तरह है।!
जहाँ इतने महान् और व्यापक जीवन की कल्पना हो, वहाँ केवल आभूषणो से नारी नहीं सजती। वह सजती है, अपने चारित्रिक गुणों से, अपने मन की निर्मलता से, स्वभाव की पवित्रता से, लग्जा और विनय से, वाणी की मधुरता और अहंभाव के आत्यन्तिक क्षय से।
उसमें चाहिए पृथ्वी की-सी सहिष्णुता, समुद्र की-सी गम्भीरता, हिम की-सी शीतलता, पुष्पों की-सी कोमलता और नप्नता, गंगा कौ-सी पवित्रता, मधु की-सी मधुरता, गौ की-सी साधुता, हिमालय की-सी उच्चता तथा आकाश की-सी विशालता।
नारी के सम्बन्ध में महापुरुषों की सोच
नैपोलियन का विचार है कि ‘सौन्दर्यवती नारी नयनाभिराम होती है, बुद्धिमती स्त्री हृदय को प्रसन्न करती है। एक अनमोल रल है, तो दूसरी रत्न-राशि।”
काउले मानते हैं कि सौम्य गुण युक्त स्त्री आनन्द देने वाली है। उसका मन सर्वश्रेष्ठ ज्ञान की पुस्तक है। शेक्सपीयर की मान्यता है कि ‘ सौन्दर्य स्त्रियों को प्राय: अभिमानी बनाता है, सदुगुण उनको अति प्रशंसनीय बनाता है और विनय से वह देवतुल्य हो जाती है।’
वह सेवा को अपना अधिकार समझती है। महाकवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर के शब्दों में, “जब यह गृहकार्य में लीन होती है तो उसके शरीर से ऐसी मधुर रागिनी निकलती है, जैसी छोटे-छोटे पत्थरों के साथ पर्वत-स्रोत के क्रीडा करने से निकलती है।
आचार्य चतुरसेन शास्त्री की मान्यता है, “त्याग उसका स्वभाव है । प्रदान उसका धर्म है ।सहनशीलता उसका व्रत है और प्रेम उसका जीवन।’ इन्हों सदगुणों के कारण विश्व उसके वात्सल्यमय आँचल में स्थान पाता है।
उपसंहार
भगवती सीता, द्रौपदी, कृष्णमयी राधा, वीरांगना लक्ष्मीबाई, कूटनीतिज्ञा इन्दिरा गाँधी, कला पुजारिन नरगिस, मधुबाला और मीना कुमारी, महाकवयित्री मीरा और महादेवी, भारतकोकिला सरोजिनी नायडू, स्वर-साधिका लता मंगेशकर और आशा भोंसले की कीर्ति एवं विश्वव्यापी सुगन्धित-सुवासित गरिमा का कारण आभूषण नहीं, शारीरिक सौन्दर्य नहीं, रूप वैभव नहीं, अपितु कला के प्रति उनकी साधना है, समर्पण है। यही उनके सौम्य गुण हैं।
हरमांज क शब्दा में, सोम्य गुणों से युक्त नारी ईश्वर की उत्कृष्ट कारीगिरी, देवताओं की वास्तविक शोभा, पृथ्वी का अपूर्व चमत्कार तथा संसार का एकमात्र आश्चर्य है।’ अतः नारी को अपना जीवन गौरवपूर्ण बनाने के लिए सदगुणों को अपनाने की आवश्यकता है।
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