बैसाखी

बैसाखी पर निबंध | Nibandh on Baisakhi in Hindi|No 1

बैसाखी पर निबंध | Nibandh on Baisakhi in Hindi

बैसाखी-नव वर्ष और कृषि पर्व के रूप में

भारत में काल-गणना चान्द्र मासों और सौर मासों के आधार पर होती है । जिस प्रकार चन्द्र गणना के आधार पर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा वर्ष का प्रथम दिन है, उसी प्रकार बैसाखी,मेष-संक्रान्ति अथवा विषुवत्‌ संक्रान्ति सौर नववर्ष का प्रथम दिवस है । पंजाब, सीमा प्रान्त,हिमाचल, जम्मू प्रान्तों में, उत्तर प्रदेश के गढ़वाल, कुमायूँ तथा नेपाल में, यह दिन नव वर्षके रूप में ही मनाया जाता है।

हाँ, बैसाखी पंजाब और पंजाबियों का महान्‌ पर्व है। खेत में खड़ी फसल पर हर्षोल्लास प्रकट करने का दिन है । धार्मिक चेतना और राष्ट्रीय-जागरण का स्मृति-दिवस है। खालसा पंथ का स्थापना दिन भी है।

बैसाखी मुख्यतः कृषि पर्व है । पंजाब की शस्यश्यामला भूमि में जब चैती (रबी कौ) फसल पक कर तैयार हो जाती है और वहाँ का ‘बाँका छैल-जवान’ उस अन्न-धन रूपी लक्ष्मी को संगृहीत करने के लिए लालायित हो उठता है, तो वह प्रसन्नता से मस्ती में नाच उठता है।

बैसाखी
बैसाखी

बैसाखी-ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण

ऐतिहासिक दृष्टि से भी बैसाखी का दिन बहुत महत्त्वपूर्ण है। औरंगजेब के अत्याचारों से भारत-भू को मुक्त कराने एवं हिन्दू- धर्म की रक्षा के लिए सिक्खों के दसवें, किन्तु अन्तिम गुरु, गोविन्द सिंह ने सन्‌ 699 में ‘खालसा पंथ’ की स्थापना इसी शुभ दिन (बैसाखी पर) की थी।

3 अप्रैल, 1919 को बैसाखी के पावन-पर्व पर भारत में ‘ रोलेट ऐक्ट ‘ तथा अमृतसर में ‘मार्शल लॉ’ लागू करने के विरोध में अमृतसर के स्वर्ण-मन्दिर के समीप जलियाँवाला बाग में एक महती सभा हुई थी। इस बाग के एकमात्र द्वार पर जनरल डायर ने अधिकार करके बिना कोई चेतावनी दिए सभा पर गोली बरसाना आरम्भ कर दिया। इस नृशंस हत्याकांड में 500 व्यक्ति या तो मारे गए या मरणासन्न हो गए। अनेक लोग अपनी जान बचाने के लिए कुए में कूद पड़े। चार-पाँच सौ व्यक्ति ही जीवित बच जाए। शहीदों की स्मृति में ‘जलियाँवाला बाग समिति’ ने लाल पत्थरों का सुन्दर स्मारक बनवाया है।

बैसाखी-मेष संक्रान्ति के रूप

भारत में महीनों के नाम नक्षत्रों के आधार पर रखे गए हैं । बैसाखी के समय आकाश में विशाखा नक्षत्र होता है। विशाखा नक्षत्र युता पूर्णिमा मास में होने के कारण इस मास को बैसाख कहते हैं । इसी कारण बैसाख मास के प्रथम दिन को “बैसाखी ‘ नाम दिया गया और पर्व के रूप में स्वीकार किया गया।

बैसाखी के दिन सूर्य मेष राशि में संक्रमण करता है, अत: इसे ‘ मेष संक्रान्ति’ भी कहते हैं। रात-दिन एक समान होने के कारण इस दिन-को “संवतहार‘ भी कहा जाता है। पद्म-पुराण में बैसाख मास को भगवत्त् प्रिय होने के कारण ‘माधवमास‘ कहा गया है। अत: इसमास में तीर्थों पर कुम्भों का आयोजन करने की परम्परा है।

बैसाखी के दिन समस्त उत्तर भारत में पवित्र नदियों एवं सरोवरों में स्नान करने का माहात्म्य है। अत: सभी नर-नारी, चाहे खालसा पंथ के अनुयायी हों अथवा वैष्णव धर्म के, प्रातःकाल पवित्र सरोवर अथवा नदी में स्नान करना पुण्य समझते हैं ।इस दिन गुरुद्वारों और मन्दिरों में विशिष्ट उत्सव मनाया जाता है।

सौर नववर्ष या मेष संक्रान्ति के कारण पर्वतीय अंचल में इस त्यौहार का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है। गढ़वाल, कुमाऊँ, हिमाचल प्रदेश आदि सभी पर्वतीय प्रदेशों में और नेपाल में इस दिन अनेक स्थानों पर मेले लगते हैं । ये मेले अधिकांशत: उन स्थानों पर लगते हैं, जहाँ दुर्गा देवी के मन्दिर हैं या गंगा आदि पवित्र नदियाँ हैं।

लोग इस दिन श्रद्धापूर्वक देवी की पूजा करते हैं और नए-नए वस्त्र धारण कर उल्लास के साथ मेला देखने जाते हैं।न केवल उत्तर में, अपितु उत्तर पूर्वी सीमा के असम प्रदेश में भी मेष संक्रान्ति आने पर “बिहू‘ पर्व मनाया जाता है।

बैसाख मास में वसंत ऋतु अपने पूर्ण यौवन पर होती है। अतः बैसाखी का त्यौहार प्राकृतिक शोभा और वातावरण की मधुरता के कारण भी महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। इस वातावरण में जन-जीवन में उल्लास एवं उत्साह का संचार होना स्वाभाविक ही है।

आमोद-प्रमोद की दृष्टि से पंजाब में ढोल की आवाज और भाँगड़ा की धुन पर अनगिनत पाँव धिरक उठते हैं । नृत्य में ऊँचा उछलना, कूदना-फाँदना एवं एक-दूसरे को कन्धे पर उठाकर नृत्य करना भाँगड़ा की विशिष्ट पद्धतियाँ हैं । तुर्रेंदार रंग-बिरंगी पगड़ी,रंगीन कसीदा की हुई बास्कट नृत्य के विशिष्ट और प्रिय परिधान हैं।

बैसाखी-पंजाबियों का आत्मगौरव

बैसाखी पर पंजाबियों का आत्मगौरव दर्शनीय होता है। “देश मेरा पंजाब नी, होर बस्से कुल जहान” में उसका पंजाब के प्रति गर्व टपकता है । ‘गबरु मेरे देश दा, बाँका छैल जवान” में उसके पुरुषों का पौरुष झलकता है। “मेहनत ऐसे जवान दी; सोना दये पसार”में पंजाब का परिश्रम और पुरुषार्थ प्रकट होता है। “नद्दी देश पंजाब दीं, हीरा बिचों हीर” में पंजाब की नारी का अनिन्द्य सौन्दर्य दमकता है।

बैसाखी हर साल अंग्रेजी कलेण्डर के अनुसार प्राय: 13 अप्रैल को आती है। (कभी बारह-तेरह वर्ष में 14 तारीख भी हो जाती है) और पंजाब की आत्मा को झझकोरती है, पर दुर्भाग्य से आज वह आत्मा विभक्त है। मंथरा रूपी राजनीति ने पंजाब के राम और भरत को विभक्त कर दिया है। आज वहाँ की शस्यश्यामला भूमि अने के साथ फूट के काँट भी पैदा करती है ।

उपसंहार

आज बैसाखी पर नाचने वाले ‘ भंगड़े ‘ में शिव के तण्डव का विध्वंस प्रकट होता है ।इसलिए आज बैसाखी आकर पंजाब के तरुणवर्ग को याद दिलाती है–उस खालसा पंथ की, जो हिन्दू संरक्षण की प्राचीर थी। वह याद दिलाती है उस भाई-चारे की जहाँ माता दश गुरुओं के ऋण को उतारने के लिए अपने ज्येष्ठ पुत्र को गुरु के चरणों में समर्पित कर ‘सिक्ख ‘ बनाती थी। पंजाब की धरती-माँ बैसाखी के पावन-पर्व पर दोनों बंधुओं से अभ्यर्थना करती है, “हो मेरे पुतरो! तुसी एक होकर रहो। त्वाडी एकता विच ही देश ही आन-बान-शान है।”

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