शिवरात्रि पर हिंदी में निबंध, Essay on Shivaratri in Hindi, शिवरात्रि व्रत कथा
महा शिवरात्रि भगवान शिव को प्रशन्न करने के लिये मनाया जाने वाला एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिंदू त्यौहार है । इस दिन भगवान शिव के भक्त, दिन भर का उपवास रखते हैं, पूरी रात जागते रहते हैं और महा शिवरात्रि के शुभ अवसर को मनाने के लिए रात्रि काल के दौरान पूजा करते हैं।

फाल्गुनमास की कृष्ण चतुर्दशी को यह पर्व मनाया जाता है । निर्जल व्रत, रात्रि जागरण, चार पहरों की पूजा, दुग्ध से शिवलिंग का अभिषेक, शिव-महिमा का कीर्तन इस दिन पूजा-अर्चना के मुख्य अंग हैं।
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शिवरात्रि का पर्व
शिवरात्रि का पर्व ‘व्रतों का राजा’ कहा जाता है। “शिवरात्रि व्रतं नाम सर्व पाप प्रणाशनम्” के अनुसार शिवरात्रि-व्रत सर्व पापों को नष्ट करने वाला है। इतना ही नहीं, इस व्रत का करने वाले को कामधेनु, कल्पवृक्ष और चिन्तामणि के जैसे मनोवांछित फल देने वाला है।’ भुक्ति मुक्ति प्रदायकम्‘ के अनुसार भोगों तथा मोक्ष का प्रदाता है।
स्कन्द पुराण के अनुसार, “जो मनुष्य इन तिथि को व्रत कर जागरण करता है और विधिवत् शिव की पूजा करता है, उसे फिर कभी अपनी माता का दूध नहीं पीना पड़ता, वह मुक्त हो जाता है।
ज्योतिष के अनुसार अमावस्या में चंद्रमा सूर्य के समीप होता है, अत: उस समय जीवन रूपी चंद्रमा का शिवरूपी सूर्य के साथ संयोग होने से इष्ट सिद्धि की प्राप्ति होती है।
शिव-पार्वती विवाह का दिन शिवरात्रि
शिवरात्रि शिव पार्वती के विवाह का दिन है। शिव-पार्वती के मिलन की रात है, शिव शक्ति पूर्ण समरस होने की रात है ।इसलिए शिव ने पार्वती को वरदान दिया–“ आज शिवरात्रि के दिन जहाँ कहीं तुम्हारे साथ मेरा स्मरण होगा, वहाँ उपस्थित रहूँगा।”
डॉ. विद्यानिवास मिश्र,कहते हैं, ‘लोग प्रायः इस उपस्थिति का मर्म नहीं समझते। सामान्य उपस्थिति सत्ता रूप में तो हर क्षण हर जगह है ही, पर भाव रूप में उपस्थिति माँग करती है, स्थल भावित हो, व्यक्ति भावित हो और समय भावित हो।
शिवरात्रि के दिन इसी से काशी में भगवान् विश्वनाथ के यहाँ तीनों प्रभूत परिमाण में भावित मिलते हैं । इतने दिनों से इतने असंख्य श्रद्धालु बाबा विश्वनाथ की शरण में भाव से भरे आते हैं, उन सबका भाव आज के दिन उच्छल नहीं होगा ?
संस्कृति के समन्वयवादी रूप में शिव
शिव अपनी पत्नी पार्वती सहित कैलास पर वास करते हैं। उनका सारा शरीर भस्म से विभूषित हैं । पहनने-बिछाने में वे व्याप्र चर्म का प्रयोग करते हैं । गले में सर्प और कण्ठ नरमुण्ड माला से अलंकृत हैं। उनके सिर पर जटाजूट हैं, जिसमें द्वितीया का नव-चन्द्र जटित है। इसी जटा से जगत्पावनी गंगा प्रवाहित होती है । ललाट के मध्य मैं उनका तीसरा नेत्र है, जो अंतर्दृष्टि और ज्ञान का प्रतीक है। इसी से उन्होंने काम का दहन किया था। कण्ठ उनका नीला है। एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे में डमरू शोभायमाौन है। वे ध्यान और तपोबल से जगत् को धारण करते हैं।
सर्व विन्ननाशक गणेश और देव सेनापठि कार्पिकेय शंकर जी के दो पुत्र हैं। भूत और प्रेत इनके गण हैं। ‘नन्दी ‘ नामक बैल इनका वाहन है । कृषि-भू भारत में बैल का अनन्य स्थान है।’उक्षाधार पृथिवीम्’ अर्थात् समूची धरती बैल के सहारे स्थित है, कहकर वृषभ का वेद में गुणगान हुआ है।
शिव को भारतीय-संस्कृति के समन्वयवादी रूप में स्मरण किया जाता है, जिनके तेज से जन्मत: विरोधी प्रकृति के शत्रु भी मित्रवत् वास करते हैं । “पार्वती का सिंह शिव के नंदी बैल को कुछ नहीं कहता। शिव-पुत्र कार्तिकेय का वाहन मोर शिव के गले में पड़े साँप को कभी छूता तक नहीं । शिव के गण वीरभद्र का कुत्ता गणेश के चूहे की ओर ताकता तक नहीं । परस्पर विरोधी भाव को छोड़कर सभी आपस में सहयोग तथा सद्भाव से रहते हैं।
शिव का लिंग रूप में पूजन क्यों किया जाता है?
शिव मंदिरों में शिव-लिंग पूजन का प्रसंग गम्भीर एवं रहस्यपूर्ण है। पद्म-पुराण के अनुसार ऋषियों का आराध्य देव कौन हो, इसके निश्चयार्थ ऋषिगण शिव के पास पहुँचे। शिव भोग-विलास में व्यस्त थे। अत: द्वार पर ही ऋषियों को रोक दिया गया। मिलने में विलम्ब होने के कारण भृगु मुनि ने शिव को शाप दिया कि तुम योनि रूप में प्रतिष्ठित हो । तब से शिव लिंग-रूप में पूजित हैं।
डॉ. राजबलि पाण्डेय का कथन है कि
“शिवलिंग शिव का प्रतीक है, जो उनके निश्चय ज्ञान और तेज का प्रतिनिधित्व करती है।’
डॉ. राजबलि पाण्डेय
शिवरात्रि पर मंदिरों की सजावट और पूजापाठ
शिवरात्रि के दिन शिव मंदिरों को सजाया जाता है । बिल्ब-पत्र तथा पुष्पों से अलंकृत किया जाता है । शिव की अनेक मनमोहक झाँकियाँ दिखाई जाती हैं ।गंगावतरण की झाँकी, शिव का प्रलयंकर रूप, शिव परिवार का दृश्य, इन झाँकियों में प्रमुख हैं। विद्युत् की चकाचौंध से झाँकियों और वातावरण को चमत्कृत किया जाता है।
हिन्दू-जन महाशिवरात्रि के दिन शिव के प्रति श्रद्धा भावना व्यक्त करने के लिए उपवास रखते हैं। मंदिरों में जाकर शिवलिंग पर दूध, बिल्व-पत्र तथा कमल और धतूरे के पुष्प, मंदारमाला चढ़ाकर, धूप-दीप नैवेद्य अर्पित करके पूजा-अर्चना करते हैं। भजन कीर्तन में भाग लेते हैं । प्रचचन सुनते हैं । हृदय-हारी झाँकियों को देखकर आत्मा को तृप्त करते हैं ।मंदिरों में अपार भीड़ और धका-पेल आज भी शिव के प्रति अपार श्रद्धा का ज्वलंत प्रमाण है। मंदिरों की भव्यता और आकर्षक झाँकियों के दर्शनार्थ श्रद्धालु विभिन्न मंदिरों
में जाकर अपने को कृतार्थ करते हैं।
आर्यसमाजियों द्वारा महाशिवरात्रि को ‘ऋषि बोधोत्सव ‘ रूप में मनाना
महर्षि दयानन्द द्वारा स्थापित ‘ आर्य समाज’ के मतावलम्बी महाशिवरात्रि को ‘ऋषि बोधोत्सव ‘ रूप में मनाते हैं। बालक मूलशंकर को शिवरात्रि के जागरण में शिवलिंग पर गणेशवाहन चूहे को देखकर बोध हुआ, ‘पुराणोक्त कैलाश-पति परमेश्वर का वास शिवलिंग में नहीं हो सकता।
यदि होता तो वे मूषक को प्रतीक-स्पर्श से रोकते।’ उनमें ज्ञान का उंदय हुआ। वे मूर्ति-पूजा के विरुद्ध हो गए। शिवरात्रि के दिन आर्य-समाजों की ओर से जलसे-सभाएँ आयोजित होते हैं ।हवन-यज्ञ होते हैं ।महर्षि दयानन्द के महान् कार्यों पर प्रवचन, भाषण होते हैं।
शिवरात्रि पर्व भगवान् शंकर की पूजा तथा भक्त की श्रद्धा और आस्था का पर्व है। पाचन प्रक्रिया के उद्धार और आत्म-शुद्धि निमित ब्रत का महत्त्व है। पूजा-अर्चना से उत्पन्न मन की शांति और धैर्य का जनक है | यह पाप कृत्यों के प्रक्षालन का दिन है। भावी जीवन में कल्याण, मंगल, सुख और शक्ति प्राप्तत्यर्थ अभ्यर्थना का पावन प्रसंग है।
शिव पार्वती की वन्दना का महत्त्व तुलसी के इन शब्दों में किया है
भवानी शंकरी बन्दे, श्रद्धाविश्वास रूपिणाँ।
तुलसीदास (रामचरित मानस)
याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धा: स्वान्तः स्थमीए्वरम् ॥
शिवरात्रि व्रत कथा
सुन्दरसेन नाम का एक राजा था। एक बार वह अपने कुत्तों के साथ जंगल में शिकार करने गया। जब भूख-प्यास से तड़पते हुए दिन भर मेहनत करने के बाद भी उसे कोई जानवर नहीं मिला तो वह रात के लिए निवृत्त होने के लिए एक तालाब के अलावा एक पेड़ पर चढ़ गया।
बेल के पेड़ के नीचे शिवलिंग था जो बिल्वपत्रों से ढका हुआ था। इसी दौरान कुछ टहनियां तोड़ने के क्रम में उनमें से कुछ संयोगवश शिवलिंग पर गिर गईं। इस तरह शिकारी ने गलती से भी उपवास कर दिया और संयोग से उसने शिवलिंग को बिल्वपत्र भी चढ़ा दिया।
रात को कुछ घंटे बीतने के बाद वहां एक हिरण आया। जब शिकारी ने उसे मारने के लिए धनुष पर तीर चलाया, तो कोई बिल्वपत्र टूट गया और शिवलिंग पर गिर गया। इस प्रकार पहले प्रहर की पूजा भी अनजाने में ही हो गई। हिरण भी जंगली झाड़ियों में गायब हो गया।
कुछ देर बाद एक और हिरण निकला। उसे देखकर शिकारी ने फिर से उसके धनुष पर बाण चढ़ा दिया। इस बार भी रात के दूसरे पहर में बिल्वपत्र के पत्ते और जल शिवलिंग पर गिरे और शिवलिंग की पूजा हो गयी। और हिरन भी भाग गया।
इसके बाद उसी परिवार का एक हिरण वहां आया, इस बार भी ऐसा ही हुआ और तीसरे घंटे में भी शिवलिंग की पूजा हो गयी, और वह हिरण भी भाग निकला।
अब चौथी बार हिरन अपनी भेड़-बकरियों समेत वहाँ पानी पीने आया। शिकारी सभी को एक साथ देखकर बहुत खुश हुआ और जब उसने फिर से अपने धनुष पर बाण लगाया, तो बिल्वपत्र शिवलिंग पर गिर गया, जिससे चौथे झटके में फिर से शिवलिंग की पूजा हो गई।
इस तरह शिकारी दिन भर भूखा-प्यासा रहा और रात भर जागता रहा और अनजाने में चारों ने शिव की पूजा की, इस प्रकार शिवरात्रि का व्रत पूरा किया।
बाद में जब उनकी मृत्यु हुई तो यमराज के दूतों ने उन्हें पाश में बांध दिया और यमलोक ले गए, जहां शिवाजी के गण यमदूत से लड़े और उन्हें पाश से मुक्त कर दिया। इस तरह निषाद भगवान शिव के प्रिय गणों में शामिल हो गए।
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