Essay on Sardar Vallabhbhai Patel in Hindi

सरदार बल्लभ भाई पटेल पर हिंदी निबंध | Essay on Sardar Vallabhbhai Patel in Hindi

सरदार बल्लभ भाई पटेल पर हिंदी निबंध – Essay on Sardar Vallabhbhai Patel in Hindi

सरदार बल्लभ भाई पटेल से जुड़े छोटे निबंध सरदार बल्लभ भाई पटेल पर हिंदी निबंध – Essay on Sardar Vallabhbhai Patel in Hindi  स्कूल में कक्षा 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11,और 12 में  पूछे जाते है। इसलिए आज हम  सरदार बल्लभ भाई पटेल पर हिंदी निबंध – Essay on Sardar Vallabhbhai Patel in Hindi के बारे में बात करेंगे ।

SET 1 (900 शब्द) (Essay on Sardar Vallabhbhai Patel in Hindi)

प्रस्तावना:

भारत मां के महान सपूतों में सरदार वल्लभभाई पटेल का नाम बड़ी श्रद्धा व आदर से लिया जाता है। वे अपने सिद्धांतों एवं संकल्पों पर चट्टान की तरह अडिग व दृढ़ रहते थे इसलिए उन्हें लौह पुरुष का खिताब दिया गया है। वे बाहर से जितने कठोर व दृढ़ थे, अंदर से उतने ही मृदु व कोमल थे, इसलिए भारत के अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबैटन ने उन्हें अखरोट की उपमा दी थी जो बाहर से कठोर दिखाई देता है लेकिन अंदर से काफी मुलायम होता है। लेकिन देश की आजादी के लिए वह कोई भी समझौता करने को तैयार नहीं थे। देश की आजादी उनका प्राथमिक लक्ष्य थी।

पारिवारिक परिचय:

सरदार पटेल के पिता झवेरभाई पटेल प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 के एक वीर सैनिक थे। उनके पूर्वज धार्मिक विचारों के थे इसलिए वल्लभभाई को ईश्वरभक्ति व देशभक्ति पैतृक संस्कार के रूप में प्राप्त हुई थी। सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म एक कुलीन परिवार में गुजरात के जिला खेड़ा के ग्राम करमसद में 31 अक्टूबर, 1875 को हुआ। यह वह समय था, जब देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था और अंग्रेजों के अत्याचारों से भारत माता का हृदय लहूलुहान था।

शिक्षा व प्रारंभिक जीवन:

सरदार वल्लभभाई की प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव में ही संपूर्ण हुई। मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करके वे उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहते थे, परंतु घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। उन दिनों मैट्रिक के बाद ‘मुख्त्यारी’ की परीक्षा पास करने पर अदालत में वकालत करने का प्रावधान था क्योंकि कानून की उच्च शिक्षा प्राप्त करने हेतु लंदन जाना पड़ता था। इसलिए सरदार पटेल ने मुख्त्यारी करके गोधरा में फौजदारी के मुकदमों की वकालत करना आरंभ कर दिया। उनकी ईमानदारी व दृढ़ता से सभी लोग प्रभावित रहते थे। वकालत में उनकी प्रतिभा भी शीघ्र ही चमकने लगी।

सामाजिक सेवाकार्य :

वल्लभभाई पटेल अपने वकालत के व्यवसाय को ईमानदारी से चलाते हुए समाज सेवा के कार्यों में भी भाग लेते थे। दीन-दुखियों की सेवा करना वे अपना परम धर्म समझते थे। एक बार गोधरा में प्लेग की बीमारी फैल गई। उन्होंने अपनी पत्नी सहित तन-मन-धन से रोगियों की सेवा की। इस कारण उनकी पत्नी बीमार पड़ गई। काफी उपचार करने पर भी उन्हें बचाया न जा सका। पत्नी की मृत्यु होने पर भी वे अपने कर्तव्य मार्ग से विचलित नहीं हुए। उस समय उनको आयु मात्र 35 वर्ष थी। उसके बाद उन्होंने आजीवन विवाह नहीं किया। उन्होंने अपना नाता देश की आजादी के साथ जोड़ लिया।

गोधरा आंदोलन:

गोधरा में बेगार प्रथा के अंतर्गत अंग्रेज अधिकारी जनता का शोषण करते थे। अंग्रेज अधिकारी अपनी शान-शौकत के लिए जनता का निशुल्क कुलों की तरह उपयोग करते थे, इसी को बेगार प्रथा कहते थे। इस प्रथा को बंद करने के लिए वहां आंदोलन चल रहा था। 1916 में बेगार प्रथा बंद करने के लिए एक कमेटी बनाई गई। वल्लभभाई उसके मंत्री चुने गए। सारा आंदोलन उन्हीं के नेतृत्व में चला कठोर संघर्ष के बाद आंदोलन में उन्हें विजय प्राप्त हुई और सरकार को बेगार प्रथा बंद करनी पड़ी। लेकिन इस समय तक अंग्रेजों को उन्होंने यह अहसास करवा दिया था कि अन्याय के विरुद्ध जनचेतना का आविर्भाव हो चुका है।

कांग्रेस का सभापतित्व:

1930 में नमक सत्याग्रह में सरदार पटेल भी अन्य नेताओं के साथ बंदी बनाए गए। 1931 के कराची में कांग्रेस के अधिवेशन में उन्हें सर्वसम्मति से सभापति बनाया गया। 1935 में जब प्रांतीय चुनावों में कांग्रेस को भागीदारी हुई तो सरदार पटेल के नेतृत्व में कांग्रेस को सात प्रान्तों में शानदार विजय मिली और इन प्रांतों में कांग्रेस की सरकार बनाई गई। इस काल में सरदार पटेल को संसदीय समिति का अध्यक्ष चुना गया। सरदार पटेल की प्रतिभा को तब महात्मा गांधी व नेहरू ने पूर्णतः पहचान लिया था। देश की जनता को भी उनको नेतृत्व क्षमता पर पूर्ण विश्वास था।

रियासतों का देश में विलय:

स्वतंत्र होने से पूर्व भारत में 600 देशी रियासतें थीं। उनको भारत संघ में मिलाना अत्यंत कठिन काम था। सरदार पटेल भारत के गृहमंत्री बनाए गए। देशी रियासतों का कार्यभार भी उन्हीं पर था। उन्होंने अपनी राजनैतिक दूरदर्शिता व कुशल नीति के द्वारा लगभग सभी रियासतों को भारत संघ में मिला दिया। जिन देशी राजाओं ने आनाकानी की उनके साथ कठोरता का व्यवहार कर उन्हें अपनी रियासतों को भारत में विलय करने के लिए बाध्य कर दिया।

यह इतना कठिन व असंभव काम था, जिसको सरदार पटेल ने सरलता से हल कर दिया। वे देश के उपप्रधानमंत्री व गृह मंत्री रहे। नूतन आजादी वाले देश को अनेक पेचीदा समस्याएं थीं, जिन्हें सरदार पटेल जैसे व्यक्ति ही सुलझा पाए। ऐसे महान जननायक का 15 सितम्बर, 1950 को निधन हो गया। सारे देश में शोक की लहर छा गई।

उपसंहार:

यद्यपि सरदार पटेल आज हमारे बीच में नहीं है लेकिन उनके सिद्धांत व आदर्श सदैव हमारा पथ प्रदर्शन करते रहेंगे। अनुपम देश सेवा के लिए सारा राष्ट्र सदैव उनका कृतज्ञ रहेगा। हमारा भी यह दायित्व है कि हम देशसेवा के अभिन्न कार्यों के द्वारा उस महामानव को श्रद्धांजलि प्रदान करें। यदि सरदार पटेल आज हमारे मध्य होते तो देश में उपजे आतंकवाद का सामना ज्यादा कुशलता से कर सकते थे।

उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति जैसे संकल्पवान नेता की आवश्यकता आज इस देश को सबसे ज्यादा है। सरदार पटेल ने पहले ही यह कह दिया था कि देश आजाद अवश्य हो गया है। लेकिन देश की आजादी के अनुकूल आचरण करने में हमारे देशवासियों को काफी वक्त लगेगा। क्योंकि आजादी के पश्चात भी लोगों के स्वार्थ जीवित हैं और वे देश की एकता के नाम पर भी अपनी संकीर्णता को छोड़ने के लिए तत्पर नहीं।

Essay on Sardar Vallabhbhai Patel in Hindi
Essay on Sardar Vallabhbhai Patel in Hindi

SET-2 (600 शब्द) (Essay on Sardar Vallabhbhai Patel in Hindi)

सरदार वल्लभभाई पटेल का नाम लेते ही हमारे सम्मुख एक ऐसे व्यक्ति का चित्र उभर जाता है, जो न केवल भारत के स्वतंत्रता संग्राम का वीर सेना नायक था, वरन जिसने स्वतंत्र भारत को एक सूत्र में संगठित करके समूचे विश्व को चकित कर दिया। सन 1947 में अंग्रेजों को भारत से जाने के लिए बाध्य होना पड़ा, परंतु वे यहां 534 देशी रियासतों को आजाद बने रहने की ऐसी छूट दे गए, जिसके कारण देश टुकड़ों में विभाजित हो सकता था।

सरदार पटेल का जन्म 31 अक्टूबर, 1857 को गुजरात के खेड़ा जिले के करमसद गांव के ऐसे परिवार में हुआ था, जो अपनी देश भक्ति के लिए प्रसिद्ध था। उनके पिता श्री झबेरभाई 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में झांसी की रानी की सेना में भर्ती होकर अंग्रेजों से लोहा ले चुके थे।

वल्लभभाई पटेल उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहते थे। परंतु आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण उन्हें मैट्रिक के पश्चात ही मुख्तारी की परीक्षा पास कर आजीविका कमाने में लगना पड़ा। लेकिन उन्होंने अपना इरादा नहीं छोड़ा। कुछ धन अर्जित करके वे सन 1910 में विदेश गए और वहां से सन 1913 में बैरिस्टर बनकर भारत लौटे।

महात्मा गांधी की प्रेरणा से बारदोली के किसानों को संगठित करके वल्लभभाई पटेल ने देश में जागरण की नई ज्योति जगाई। अपनी चमकती हुई वकालत को छोड़कर वे राष्ट्रीय आंदोलन में कूद पड़े और त्यागी जीवन का एक नया आदर्श लोगों के समक्ष रखा। बारदोली की सफलता और पटेल की संगठन शैली से महात्मा गांधी काफी प्रभावित थे। इसीलिए गांधी जी ने उन्हें ‘सरदार’ की उपाधि प्रदान की। किसानों की दशा सुधारने और उन्हें राष्ट्रीय आंदोलनों से जोड़ने के लिए, जो काम सरदार पटेल ने किया, वह अद्वितीय है। भारतीय देशी राज्यों को भारतीय संघ में मिलाकर वे ‘लौह पुरुष’ कहलाए।

सरदार पटेल फौजदारी के एक प्रसिद्ध वकील थे, परंतु देश सेवा की राह अपनाकर उन्होंने 1916 से 1945 तक सभी सक्रिय आंदोलनों में भाग लिया। खेड़ा सत्याग्रह, बारदोली आंदोलन, डांडी यात्रा, सविनय अवज्ञा आंदोलन, व्यक्तिगत सत्याग्रह तथा भारत छोड़ो आंदोलन में वे अग्रिम पंक्ति में थे।

सरदार पटेल अत्यंत स्पष्टवादी व्यक्ति थे। उनके स्वभाव में असाधारण दृढ़ता थी। उन्हें कोई विचलित नहीं कर सकता था। वे जो निश्चय कर लेते, उसे पूरा करके छोड़ते थे। कश्मीर में मुहाजिदों से टक्कर हो या हैदराबाद के रजाकारों से मुकाबला- सभी में वे स्वराष्ट्र मंत्री के रूप में अडिग निर्णय लेते थे। यदि नेहरू जी ने हठधर्मिता न दिखाई होती, तो आज संपूर्ण कश्मीर भारत के साथ होता। सरदार पटेल ने विस्थापितों को बसाने की समस्या का भी बड़ी सूझबूझ से समाधान किया।

परंतु देश का दुर्भाग्य था कि क्रूर काल ने लौह पुरुष को हमसे छीन लिया। 5 सितंबर, 1950 को उन्होंने सदा के लिए आंखें बंद कर लीं। उनके निधन पर पं. जवाहरलाल नेहरू ने कहा था, “इतिहास सरदार पटेल को आधुनिक भारत का निर्माता और भारत का एकीकरण करने वाले नेता के रूप में सदैव याद रखेगा। वे स्वतंत्रता संग्राम के महान सेनापति थे।”

भारतीय राजनीति में सरदार वल्लभभाई पटेल एक अद्वितीय महापुरुष थे। यदि इनकी रीति-नीति, प्रबंध पटुता, प्रशासनिक क्षमता एवं दूरदर्शिता को उनके कार्यकाल में ही स्वीकार कर लिया गया होता, तो शायद भारत को आज इतनी परेशानी न उठानी पड़ती। सरदार पटेल कष्ट उठाने वाले तथा दुख-सुख को समान समझने वाले व्यक्ति थे। कार्य करना ही उनकी पूजा थी। उनकी राष्ट्र सेवा अतुलनीय है। वे भारतीय इतिहास में सदा अमर हैं। भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने कहा था, “स्वतंत्रता प्राप्त करने हेतु सत्याग्रह के क्षेत्र में और आजादी मिलने के प्रारंभिक वर्षों में सरदार पटेल की राष्ट्र सेवाएं ऐसी सफलताएं हैं, जो भारत के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखी जाएंगी।”

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FAQ

सरदार वल्लभ भाई पटेल कौन सी जाती है?

सरदार पटेल का जन्म नडियाद, गुजरात में एक लेवा पटेल(पाटीदार) जाति में हुआ था।

सरदार वल्लभ भाई पटेल का पूरा नाम क्या था?

सरदार वल्लभ भाई पटेल

सरदार वल्लभभाई पटेल का माता का क्या नाम था?

लदबा

सरदार पटेल की मृत्यु कहाँ हुई थी?

15 दिसंबर 1950 में दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गयी

सरदार वल्लभ भाई पटेल को सरदार की उपाधि कब मिली?

एक न्यायिक अधिकारी बूमफील्ड और एक राजस्व अधिकारी मैक्सवेल ने संपूर्ण मामलों की जांच कर 22 प्रतिशत लगान वृद्धि को गलत ठहराते हुए इसे घटाकर 6.03 प्रतिशत कर दिया। इस सत्याग्रह आंदोलन के सफल होने के बाद वहां की महिलाओं ने वल्लभभाई पटेल को ‘सरदार’ की उपाधि प्रदान की।

सरदार वल्लभ भाई पटेल के राजनीतिक गुरु कौन थे?

महात्मा गांधी को उन्होंने अपना राजनीतिक गुरु बनाया।

सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म कहाँ हुआ?

सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म नडियाद में हुआ था I

लौह पुरुष की उपाधि किसने और क्यों दी?

देशी रियासतों का विलय स्वतंत्र भारत की पहली उपलब्धि थी और निर्विवाद रूप से पटेल का इसमें विशेष योगदान था। नीतिगत दृढ़ता के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने उन्हें सरदार और लौह पुरुष की उपाधि दी थी।

सरदार पटेल को भारत का बिस्मार्क क्यों कहा जाता है?

कुशल कूटनीति और ज़रूरत पड़ने पर सैन्य हस्तक्षेप के जरिए सरदार पटेल ने उन अधिकांश रियासतों को तिरंगे के तले लाने में सफलता प्राप्त की। इसी उपलब्धि के चलते उन्हें लौह पुरुष या भारत का बिस्मार्क की उपाधि से सम्मानित किया गया।

सरदार पटेल ने कितनी रियासतों का विलय भारत में किया था ?

५६२

पटेल की मृत्यु कैसे हुई?

दिल का दौरा पड़ने से सरदार पटेल की मृत्यु हुई थी

सरदार वल्लभ भाई पटेल पेशे से क्या थे?

सरदार वल्लभ भाई पटेल पेशे से वकील थे


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