Essay on Pandit Jawaharlal Nehru

पंडित जवाहरलाल नेहरू पर निबंध | Essay on Pandit Jawaharlal Nehru

पंडित जवाहरलाल नेहरू पर निबंध – Essay on Pandit Jawaharlal Nehru

SET-1 Essay on Pandit Jawaharlal Nehru

प्रस्तावना:

इस नश्वर संसार में प्राणियों का आवागमन निरन्तर जारी रहने वाली क्रिया है। लेकिन इस संसार में आने वाला प्रत्येक व्यक्ति ऐसा नहीं होता, जो अपने पीछे अपनी सुखद स्मृतियों को छोड़ जाता है। इसके विपरीत ऐसी महान हस्तियां भी इस संसार में आईं, जिनके कृतित्व की यश पताका सदैव फहराती रहेगी। जिन्हें इस संसार में महापुरुषों के रूप में जाना जाता है। ऐसे ही महापुरुषों में पंडित जवाहरलाल नेहरू का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। सर्वप्रथम देश की स्वतंत्रता के लिए उनका संघर्ष और तत्पश्चात स्वतंत्र भारत के नव-निर्माण के प्रति उनका समर्पण इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज है। वह विश्वबंधुत्व की विचारधारा के पोषक एवं पंचशील सिद्धांतों के संस्थापक भी थे।

जन्म व परिवार

पं. जवाहरलाल नेहरू का जन्म 14 नवम्बर 1889 को : इलाहाबाद के ‘ आनंद भवन’ में एक समृद्ध ब्राह्मण परिवार में हुआ। इनके पिता पं. मोतीलाल नेहरू उच्च न्यायालय के प्रबुद्ध वकीलों में से एक थे। इनकी माता का नाम स्वरूप रानी था, जो एक साध्वी महिला थीं। विजय लक्ष्मी व कृष्णा पंडित इनकी बहनें थीं। नेहरू परिवार समृद्ध होने के साथ ही ख्याति प्राप्त भी था।

शिक्षा एवं बाल्यकाल

इनका बाल्यकाल राजकुमारों को भांति गुजरा था। बाल्यकाल में ही परिवार के गहरे संस्कार उन्हें प्राप्त हो गए थे। नेहरू जी की प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही अंग्रेजी अध्यापकों की निगरानी में हुई। 1904 में 15 वर्ष की आयु में शिक्षा प्राप्ति के लिए उन्हें इंग्लैंड भेज दिया गया। वहां उन्हें ‘हैरो स्कूल’ में प्रविष्ट कराया गया और वहीं से उन्होंने ‘मैट्रिक’ की परीक्षा भी उत्तीर्ण को और तत्पश्चात कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से एम.ए. किया। 1912 में वकालत की डिग्री लेकर वे अपने देश वापस लौटे।

युवाकालीन व्यक्तित्व

उनके व्यक्तित्व में विद्वता का शुमार हो चुका था। उनकी विचारशीलता उनके नेत्रों में झलकती थी। उनके व्यक्तित्व में हिमगिरि को सौ विशालता और उज्वलता थी। उनके चेहरे पर सूर्य के समान प्रखर तेज था। 1916 में उनका विवाह कमला रानी के साथ सम्पन्न हुआ। वे जहां उच्च कोटि के साहित्यकार थे, वहीं जनता के प्रिय नेता भी थे। उनमें वक्तृत्व और लेखकत्व प्रतिभा का अनोखा मेल था।

राजनीति में प्रवेश

वकालत की डिग्री लेने के पश्चात जब वह स्वदेश लौटे तो भारत में स्वतंत्रता का संग्राम चरम पर था। नौजवान जवाहर भी उस संग्राम की भावना से अछूते न रहे और देश-प्रेम की भावना ने उन्हें भी स्वतंत्रता के महासंग्राम में कूद पड़ने को विवश कर दिया। इस समय तक उन्होंने इलाहाबाद में वकालत भी आरंभ कर दी थी। महात्मा गांधी से वह अत्यधिक प्रभावित थे। अत: उनकी ही भांति युवा नेहरू ने भी वकालत का व्यवसाय त्याग कर बापू का हाथ थाम लिया। 1919 के रॉलेट एक्ट तथा पंजाब के जलियांवाला बाग कांड के पश्चात तो नेहरू जी का संकल्प राष्ट्र की आजादी के लिए और भी मुखर हो उठा। वह महात्मा गांधी द्वारा संचालित असहयोग आन्दोलन में कूद पड़े। इसी दौरान उन्हें प्रियदर्शनी इन्दिरा नाम की पुत्री भी हुई।

स्वतंत्रता के आन्दोलन की उस सक्रिय भागीदारी के कारण उन्हें अनेक बार जेल में भी डाला गया। लेकिन निडर जवाहरलाल नेहरू ने जेल की यंत्रणाओं को दृढ़ता एवं धैर्य से सहन किया। उस समय उनकी पत्नी कमला नेहरू बीमार पड़ों और उन्हें उनके साथ इलाज के लिए स्विट्जरलैंड जाना पड़ा।

जब वह पुनः भारत लौटे तो उन्हें लाहौर के कांग्रेस अधिवेशन में अध्यक्ष चुन लिया गया। इसी अधिवेशन में कांग्रेस द्वारा स्वाधीनता का प्रस्ताव पास किया गया। लेकिन इसके बाद नेहरू जी को कई आघात सहन करने पड़े। पिता मोतीलालजी नेहरू का वियोग, उसके पश्चात पत्नी का स्वर्गवास और तत्पश्चात माता स्वरूप रानी का वियोग। एक सामान्य व्यक्ति उन आघातों से टूट सकता था। लेकिन नेहरू का ही जीवट था कि उन्होंने उन आघातों के बावजूद भी देश की स्वाधीनता के स्वप्न को भंग नहीं होने दिया। बल्कि उनका संघर्ष और भी पुरजोर होता चला गया। 1952 के भारत छोड़ो आंदोलन के वह प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे। तब तक गांधीजी ने भी पंडित नेहरू की आन्तरिक शक्ति को पहचान लिया था।

पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी महात्मा गांधी के अनोखे व्यक्तित्व की परख कर ली थी और उन दोनों महान विभूतियों का सम्पर्क देश के लिए वरदान सिद्ध हुआ। उस समय तक यह दोनों ही विभूतियां भारतवर्ष की बेताज बादशाह बन चुकी थीं।

शीघ्र ही अंग्रेजों को यह आभास हो गया कि भारतवर्ष को अधिक समय तक गुलाम बनाए रखना संभव नहीं है। अंतत: 15 अगस्त 1947 को भारतवर्ष आजाद हो गया।

स्वतंत्र भारतवर्ष के प्रथम प्रधानमंत्री

भारतवर्ष के स्वतंत्र होने के पश्चात वह सर्वसम्मति से देश के प्रधानमंत्री बनाए गए। देश का संविधान उनके इस प्रथम प्रधानमंत्रित्व कार्यकाल में स्थापित किया गया। उसके बाद 1952 1957 व 1962 के लोकसभा के आम चुनावों में कांग्रेस को बहुमत प्राप्त होता रहा। वह तीनों चुनावों के पश्चात निर्विवाद रूप से प्रधानमंत्री चुने गए। वही एकमात्र भारतीय प्रधानमंत्री हैं, जो प्रथम बार चुने जाने के पश्चात मृत्यु पर्यंत प्रधानमंत्री के रूप में चुने जाते रहे। अपने कार्यकाल में उन्होंने भारतवर्ष की चहुंमुखी उन्नति के लिए पंचवर्षीय योजनाओं को आधार बनाया और उनके माध्यम से राष्ट्र को उन्नति के शिखर तक पहुंचाया। .

विदेश नीति

उनके द्वारा विश्वबंधुत्व की भावना के आधार पर छोटे-बड़े सभी देशों के साथ मधुर संबंध बनाने के प्रयास किए गए। भारतवर्ष के उत्थान व उन्नति के लिए उन्होंने विश्व के सभी गुटों से सहयोग प्राप्त किया। प्रगतिशील देशों को उन्होंने समानता का मंच प्रस्तुत किया। साथ ही गुट निरपेक्ष आंदोलन का विचार दिया, जो आज पूरे विश्व में सफलता के साथ चल रहा है।

विश्व शांति:

उनके द्वारा पंचशील का सिद्धांत विश्व के सामने रखा गया और संसार के सभी राष्ट्रों के मध्य आपसी प्रेम व संबंध बढ़ाने के अथक प्रयास किए गए। यही कारण है कि उन्हें विश्व शांति का अग्रदूत भी कहा गया। उनकी शांतिपूर्ण नीतियों का प्रभाव था कि तीसरे विश्वयुद्ध की भड़कती चिंगारी को समय रहते बुझा दिया गया। महात्मा गांधी ने उनके विषय में कहा था, ‘जवाहरलाल नेहरू तो एक हीरा है और वीरता, साहस तथा देशभक्ति में कोई उसके समकक्ष नहीं तथा उसके हाथों में भारत का भाग्य सुरक्षित रहेगा।’

नेहरू जी का देहावसान

27 मई 1964 को भारत के इस महान नेता का स्वर्गवास हो गया। मृत्युपूर्व वह चीन द्वारा थोपे गए विश्वासघाती युद्ध से काफी आहत हुए थे। संपूर्ण विश्व में उनकी मृत्यु से शोक व्याप्त हो गया। एक महान ज्योति संसार में अपना प्रकाश बिखेरकर अनन्त ज्योति में विलीन हो गई।

नेहरू जी का साहित्य

नेहरू जी के कोमल हृदय में एक साहित्यकार भीनिवास करता था। जेल में रहते हुए उन्होंने कई उत्कृष्ट रचनाओं का सृजन किया, जिनमें ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ का एक विशेष स्थान है। उनकी ‘आत्मकथा’ और ‘विश्व इतिहास की झलक’ व ‘पिता के पत्र, पुत्री के नाम का अध्ययन करके कोई भी उनके विराट व्यक्तित्व की झलक पा सकता है।

उपसंहार

वह अपने देश से कितना प्यार करते थे, यह उनकी इस वसीयत से समझा जा सकता है कि उनकी पवित्र राख को खेतों तथा भागीरथी नदी में बहा दिया जाए। वह मृत्यु पश्चात भी देश के कण-कण में व्याप्त हो जाना चाहते थे। कोई भी पूर्वाग्रह उनके लिए राष्ट्र से बड़ा नहीं रहा। पॉडत नेहरू का बच्चों के प्रति अनोखा वात्सल्य भाव ही था कि उन्हें बच्चे चाचा नेहरू कहकर पुकारते थे। उनके जन्मदिन को इसी कारण बाल दिवस के रूप में प्रति वर्ष मनाया जाता है।

नेहरू जो को आधुनिक भारत के निर्माता के रूप में सदैव याद किया जाता रहेगा और परिदृश्य पर उनका नाम आदर व सम्मान से लिया जाता रहेगा, वह देश के ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व के सच्चे सपूत थे। वह मानवता के उपासक भी थे और प्रतिनिधि भी। उनके आदर्श और सिद्धांत सदैव हमारा मार्गदर्शन करते रहेंगे और यह संसार सदैव उस महान विभूति को श्रद्धा से स्मरण करता रहेगा।

Essay on Pandit Jawaharlal Nehru
Essay on Pandit Jawaharlal Nehru

SET 2 (600 शब्द)

पंडित जवाहरलाल नेहरू पर निबंध | Essay on Pandit Jawaharlal Nehru

विश्व शांति के अग्रदूत पंडित जवाहरलाल नेहरू का जन्म 14 नवंबर, के 1889 को प्रयाग (इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश) के लब्धप्रतिष्ठित वैरिस्टर पंडित मोतीलाल नेहरू के घर हुआ था। यहां उनकी संपूर्ण देख-रेख एक अंग्रेज महिला के हाथ में थी। घर पर एक अंग्रेज अध्यापक पढ़ाने आता था। नेहरू जी सन 1905 में इंग्लैंड गए और सात साल बाद वैरिस्टर बनकर भारत लौटे। उन्होंने कुछ समय तक अपने पिता के साथ रहकर वकालत की, लेकिन इसमें उन्हें बहुत अधिक सफलता नहीं मिली।

उस समय देश के राजनीतिक क्षेत्र में सर्वश्री गोपाल कृष्ण गोखले, बाल गंगाधर तिलक और महात्मा गांधी प्रमुख थे। देश में चारों ओर प्रथम महायुद्ध के कारण एक भीषण लहर दौड़ रही थी। सन 1919 में रोलेट एक्ट तथा पंजाब में जलियां वाला बाग हत्याकांड के कारण भारतीयों के शरीर में प्राण संचार होने लगा था। यहीं से नेहरू जी का राजनीतिक जीवन आरंभ हुआ। सन 1920 में महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन आरंभ किया, जिसमें अवध के किसानों ने सबसे अधिक बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। पंडित नेहरू इसी समय जनता के सामने आए। इस बार वे सबसे पहले जेल गए। कोलकाता में सन 1928 के कांग्रेस अधिवेशन में नेहरू जी ने अंग्रेजों को एक वर्ष में औपनिवेशिक स्वराज देने की चुनौती दी, लेकिन विदेशी सरकार इसे टालती रही।

1929 में लाहौर अधिवेशन में जब नेहरू जी कांग्रेस के अध्यक्ष निर्वाचित हुए, तो उन्होंने पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव पास किया। ऐसे में देश के कोने-कोने में स्वाधीनता दिवस मनाया गया। फिर सन 1930 के नमक आंदोलन के समय उन्हें कारागार में डाल दिया गया। तब गांधी-इरविन समझौते पर वे मुक्त हुए, लेकिन स्वाधीनता की आग शांत नहीं हुई, अत: उत्तर प्रदेश के किसान आंदोलन में योगदान किया। फलत: 6 माह जेल में रहे। उसके बाद कोलकाता में दिए भाषण पर राजद्रोह का आरोप लगाकर उन्हें 2 वर्ष की जेल की सजा मिली। इस बार जेल से छूटने तक नेहरू जी की पत्नी कमला नेहरू का देहांत हो चुका था, फिर भी उन्होंने राष्ट्रप्रेम, त्याग और बलिदान में कोई अंतर नहीं आने दिया। इसके बाद वे 1936 तथा 1937 के लखनऊ और फैजपुर अधिवेशनों में अध्यक्ष चुने गए। सन 1939 के द्वितीय विश्वयुद्ध में अंग्रेजों ने भारत को भी युद्ध में सम्मिलित राष्ट्र घोषित कर दिया, जिसकी प्रतिक्रिया बड़े ही उग्र प्रतिरोध के रूप में हुई। देश में एक विद्रोह उठ खड़ा हुआ।

इसके पश्चात सन 1942 के आंदोलन में नेहरू जी ने पर्याप्त सहयोग दिया। अंग्रेजी सरकार ने बड़ी निर्दयता से इस आंदोलन के दमन का प्रयास किया, परंतु उसे असफलता ही हाथ लगी। इसके बाद अंग्रेजी सरकार ने 22 सितंबर, 1946 को भारत में एक अंतरिम सरकार की स्थापना की, जिसके प्रधानमंत्री नेहरू जी चुने गए। इस प्रकार नेहरू जी आजीवन राष्ट्रप्रेम के लिए अपना बलिदान करते रहे। 15 अगस्त, 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ और नेहरू जी स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बनाए गए।

भारत छोड़ते समय अंग्रेजों ने देश में सांप्रदायिकता की आग लगा दी थी, जिसके फलस्वरूप राष्ट्र का विभाजन हुआ। लेकिन हमारे प्रधानमंत्री नेहरू जी के धैर्य एवं गांभीर्य ने सदैव ठोस कदम ही उठाया। सन 1947 में उन्होंने प्रथम एशियाई देशों का एक सम्मेलन बुलाया, जिसके वे सभापति बने। स्वतंत्रता के बाद भारत की विदेश नीति को सफल बनाने में नेहरू जी का योगदान सराहनीय रहा। नेहरू जी ने गांधी जी के आचरणों का सदैव अनुसरण किया। पंचशील सिद्धांत नेहरू जी के आदर्शों का संगठित रूप है। उनके आदर्शों को आज पूरा विश्व मान रहा है। नेहरू जी को बच्चों के प्रति बड़ा मधुर लगाव था। इसी कारण बच्चे उन्हें ‘चाचा नेहरू’ कहकर पुकारते थे। इनके जन्म दिवस 14 नवंबर को ‘वाल दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।

पंडित नेहरू भारत के कर्णधार थे, विश्व शक्ति के प्रणेता थे और सत्य पथ के महान निर्देशक थे। तृतीय महायुद्ध को रोकने के लिए उन्होंने गुटनिरपेक्ष आंदोलन चलाया। ऐसे महान व्यक्ति का निधन 27 मई, 1964 को हुआ। नेहरू जी मनुष्यता के अवतार थे। इसी गुण के कारण वे विश्व में सम्मानित रहे।

FAQ

पंडित जवाहरलाल नेहरू का नारा क्या था?

पंडित जवाहरलाल नेहरू ने “आराम हराम है” का नारा दिया था

जवाहरलाल नेहरू वकील कब बने?

जवाहरलाल नेहरू ने 1912 में वकालत शुरू की।

एक पाती बच्चों के नाम पाठ के अनुसार चाचा नेहरू ने पत्र कब लिखा?

एक किताब जिसमे पत्र हैं वह जवाहर लाल नेहरू ने 1928 में लिखी थी

पंडित जवाहरलाल नेहरू का असली नाम क्या है?

पंडित जवाहरलाल नेहरू का असली नाम जवाहरलाल नेहरू था

पंडित जवाहरलाल नेहरू की मौत कैसे हुई?

दिल का दौरा पड़ने से पंडित जवाहरलाल नेहरू की मौत हुई

पंडित जवाहरलाल नेहरू के बाद प्रधानमंत्री कौन बना?

भारतीय प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की मृत्युपश्चात् गुलजारीलाल नन्दा भारत के प्रधानमंत्री बने

जवाहरलाल नेहरू के असली पिता कौन थे?

मोतीलाल नेहरू

नेहरू के पूर्वज कौन थे?

जवाहरलाल नेहरू की जीवनी में जॉन लैने ने लिखा है कि नेहरू का परिवार कश्मीरी पंडित थेऔर इनके पूर्वज राज कौल जो कि कश्मीर में संस्कृत और फारसी के विद्वान थे, वो दिल्ली आ गए थे.

जवाहरलाल नेहरू की बेटी का क्या नाम था?

इंदिरा गाँधी

जवाहरलाल नेहरू की मां का क्या नाम था?

स्वरूप रानी

पंडित जवाहरलाल नेहरू का जन्म कहाँ हुआ?

प्रयागराज (इलाहबाद)

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