महात्मा गांधी पर निबंध – Essay on Mahatma Gandhi in Hindi
Table of Contents
प्रस्तावना:
इस संसार में देवता और ईश्वरत्व का अंश लेकर महान व्यक्ति इंसान के रूप में जन्म लेते रहे हैं। इस नाशवान संसार में आकर भी जिन महान विभूतियों ने अपने नाम को सदैव के लिए अमर कर दिया, उनमें एक नाम महामानव महात्मा गांधी का भी है। उनका आगमन ऐसे समय में हुआ जब हमारा देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था और दूर-दूर तक भविष्य में आजादी को कोई किरण नजर नहीं आ रही थी। ऐसे समय में दिव्य ज्योति पुंज के रूप में महात्मा गांधी ने भारत भूमि पर अवतरित होकर स्वाधीनता प्राप्ति की अलख जगा दो और हर भारतीय में आजादी प्राप्ति की ललक को जाग्रत कर दिया। उन्होंने देश की स्वतंत्रता का संकल्प लिया और सत्य तथा अहिंसा के अनोखे हथियार से अंग्रेजों का साम्राज्य छिन्न-भिन्न कर दिया। समस्त मानव जाति को उन्होंने मानवता का शुभ संदेश दिया। उनके विलक्षण प्रयासों को संपूर्ण विश्व में सराहा गया व उनकी उपस्थिति को एक देव सदृश इंसान के रूप में महसूस किया गया।
जन्म व परिवार परिचय :
‘बापू’ व ‘राष्ट्रपिता’ नाम के यश से शोभित महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के काठियावाड़ प्रांत की पोरबन्दर रियासत में हुआ था। उनका पूरा नाम मोहनदास करमचन्द गांधी था। उनकी माता का नाम पुतलीबाई था और पिता का नाम करमचन्द गांधी था। उनके पिता राजकोट रियासत के दीवान थे। महात्मा गांधी के परिवार में भारतीयता के गहरे संस्कार थे और सदाचारिता का अध्याय उन्हें सर्वप्रथम परिवार से ही प्राप्त हुआ।
बाल्यकाल व शिक्षा :
महात्मा गांधी की प्रारंभिक शिक्षा पोरबन्दर तथा राजकोट तक सीमित रही। बाल्यकाल में वह लजीले तथा संकोची स्वभाव के थे तथा बाल सुलभ शरारतों व उछलकूद से दूर रहते थे। गांधीजी को ऐसे जन्मजात संस्कार प्राप्त हुए थे। 18 वर्ष की उम्र में मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात उन्हें वकालत की परीक्षा के लिए इंग्लैंड भेजा गया। लेकिन इंग्लैंड के पश्चिमी संस्कारों का उन पर जरा भी फर्क नहीं पड़ा और वह ‘सादा जीवन तथा उच्च विचार’ की भारतीय संस्कृति पर कायम रहे। वकालत की शिक्षा ग्रहण कर जब वह भारत लौटे तो उनकी जन्मदायिनी मां का देहान्त हो चुका था। जबकि उसकेपूर्व हो 1880 में उनके पिता का देहावसान हो चुका था। बार-एट-लॉ की उपाधि के साथ आपने अपनी वकालत आरंभ कर दी। वकालत की कर्मभूमि के रूप में उन्होंने वर्तमान की मुम्बई को चुना। लेकिन सच्चरित्र गांधीजी वकालत के पेशे में अपनी सच्चाई व सदाचारिता के कारण विशेष सफल नहीं हो सके।
दक्षिण अफ्रीका गमन:
पोरबन्दर की एक व्यापारिक संस्था के मुकदमे की पैरवी करने के लिए महात्मा गांधी को 1893 में दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा। वहां उन्होंने पाया कि दक्षिण अफ्रीका में रहने वाले प्रवासी भारतीयों पर गोरे लोग जुल्म रहे थे और रंगभेदको नीति के कारण उन्हें इंसान के समकक्ष भी नहीं मानते थे। उनका मानना था कि काले लोगों का जन्म ही गोरे लोगों की सेवा करने के लिए हुआ है। व्यक्तिगत रूप से स्वयं गांधीजी को भी एक भारतीय की हैसियत से कई कड़वे प्रसंगों से दो-चार होना पड़ा था। तब उन्होंने अपने अल्प प्रवास काल के दौरान वहां ‘मेटाल इंडियन कांग्रेस’ की स्थापना की। जिसके माध्यम से उन्होंने प्रवासी भारतीयों में आत्मगौरव व आत्म उत्थान की भावनाओं को प्रज्जवलित किया। 1906 में अपमानजनक ट्रांसवाल काला कानून पास हुआ। उसके विरोध में गांधीजी ने सत्याग्रह आन्दोलन का सूत्रपात किया। इस आन्दोलन में उन्हें सफलता भी प्राप्त हुई। अंग्रेजों को तब वह काला कानून वापस लेना पड़ा। इस कारण दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों पर ढाए जाने वाले जुल्मों की भी काफी हद तक इतिश्री हो गई। गांधीजी का यह सत्याग्रह को लेकर पहला प्रयोग था, जिसमें उन्हें पूर्ण विजय प्राप्त हुई थी। दक्षिण अफ्रीका में आठ वर्ष व्यतीत करने के पश्चात सफल कार्यसिद्धि के साथ वह भारत लौटे। .
तत्कालीन भारतीय राजनीति में प्रवेशः
दक्षिण अफ्रीका में किया गया सत्याग्रह आन्दोलन का यश भी तब महात्मा गांधी के साथ भारत आया। लोगों ने उनको सिर-आंखों पर रखकर सम्मान दिया। पराधीन भारतवासियों की स्थिति से आहत महात्मा गांधी ने राष्ट्रीय एकता का बिगुल फूंका। देश में स्वाधीनता संग्राम का आगाज हो चुका था। आप भी उससे अछूते नहीं रहे और तत्कालीन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य गोपाल कृष्ण गोखले के अनुरोध पर कांग्रेस में सम्मिलित हो गए। स्वतंत्रता के आन्दोलन का संपूर्ण भार तब बाल गंगाधर तिलक के कंधों पर था। गांधीजी ने उनके साथ सहयोग किया और आन्दोलन को तीव्रता प्रदान की।
आन्दोलन का संचालन:
1920 में बाल गंगाधर तिलक की मृत्यु ने आन्दोलन का संपूर्ण भार महात्मा गांधी के कंधों पर डाल दिया। महात्मा गांधी ने अहिंसा की ताकत से उसे आगे बढ़ाया। सारे राष्ट्र में उन्होंने असयाहेग आन्दोलन का संचालन किया। 1929 में रावी नदी के तट पर हुए कांग्रेस अधिवेशन में महात्मा गांधी ने पूर्ण स्वतंत्रता की घोषणा कर दी। असहयोग आन्दोलन वस्तुत: गांधीजी के अहिंसक प्रयासों का एक देशव्यापी प्रयोग था। इस आन्दोलन के कारण हजारों भारतीयों पर अमानवीय जुल्म किए गए और उन्हें जेलों में डाल दिया गया। महात्मा गांधी पर भी ब्रिटिश हुकूमत ने लाठियों से वार किया और उन्हें भी जेल भेज दिया गया। असहयोग आन्दोलन के दौरान गांधीजी ने भारतीयों को प्रेरित किया कि वे विदेशी वस्तुओं का पूर्ण त्याग कर दें। साथ ही स्वदेशी भाइयों द्वारा निर्मित वस्तुओं का प्रयोग करें। इस संदेश ने संपूर्ण भारत में क्रांति की लहर पैदा कर दी, जिससे अंग्रेजों को अपने साम्राज्य का सिंहासन डोलता नजर आने लगा। विदेशी वस्तुओं के साथ-साथ अंग्रेजों की नौकरियों का भी बहिष्कार आरंभ कर दिया गया। भारत में साइमन कमीशन आया तो गांधीजी के उद्बोधन पर ‘साइमन कमीशन वापस जाओ’ के नारों से भारत की फिजां गूंज उठी।
अंग्रेजों ने जब नमक पर कर लगाया तो गांधीजी ने नमक कानून का प्रबल विरोध किया। महात्मा गांधी ने 13 मार्च 1930 से अपनी ‘डांडी यात्रा’ आरंभ की और 24 दिनों की यात्रा के पश्चात अपने हाथों से डांडी में नमक बनाया। अंग्रेजों ने तब कई नेताओं सहित उन्हें जेल में डाल दिया और दमन का दौर आरंभ कर दिया। जब अंग्रेज आन्दोलन को कुचलने में नाकाम रहे तो उन्होंने गांधीजी को समझौता वार्ता के लिए इंग्लैंड में आमंत्रित किया गांधी इर्विन समझौता हुआ लेकिन अंग्रेजों की बदनीयती के कारण शीघ्र ही टूट गया।
8 अगस्त 1942 को गांधीजी ने ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ आरंभ कर दिया। तब अंग्रेजों ने आंदोलन को कुचलने के लिए देश के शीर्षस्थ नेताओं को बंदी बना लिया। लेकिन आंदोलन इतना तीव्र था कि प्रत्येक भारतीय उसमें कूद पड़ने को आतुर नजर आया।
स्वाधीनता की प्राप्ति :
लम्बी संघर्ष यात्रा के पश्चात देश की आजादी का समय आया। लेकिन अंग्रेजों ने कुटिलता का परिचय देते हुए भारत का विभाजन दो भागों में कर दिया। 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान तथा 15 अगस्त 1947 को भारतवर्ष को स्वाधीन राष्ट्र घोषित किया गया। अंग्रेजों की इस कुटिल कूटनीति ने देश में साम्प्रदायिक सौहार्द्र बिगाड़ दिया। हिन्दू-मुस्लिम दंगे भड़क उठे। उन दंगों में लाखों लोगों को जघन्यतापूर्वक मौत के घाट उतार दिया गया। मानवता इतनी शर्मसार हुई कि इंसान को इंसान होने पर शर्म महसूस होने लगे। गांधीजी उस नरसंहार से स्तब्ध रह गए। उन्होंने दंगे रोकने के लिए आमरण अनशन आरंभ कर दिया। उनके इस प्रकार उपवास किए जाने से शांति स्थापित हुई और दंगे थम गए।
बलिदान दिवस:
फिर आया वह मनहूस दिन, जब महात्मा गांधी ने देश के नाम पर अपनी जिंदगी कुर्बान कर दी। वह 30 जनवरी 1948 का दिन था, जब प्रार्थना सभा में मौजूद गांधी जी को नाथूराम गोडसे ने गोली चलाकर मौत के हवाले कर दिया। महात्मा गांधी ने ‘हे राम’ के संबोधन के साथ अपने प्राण त्याग दिए। दंगों की आग की कीमत महात्मा गांधी ने अपना जीवन बलिदान करके चुकाई। उनके इस दुखद निधन ने हर सम्प्रदाय के व्यक्ति की आंखों में आंसू भर दिए। लेकिन साम्प्रदायिक विद्वेष को महात्मा की बलि लेनी थी और उसने ली भी। लेकिन उनका बलिदान संसार में सदा के लिए अमर हो गया।
उपसंहार:
महात्मा गांधी भारतीय इतिहास के शलाका पुरुष के रूप में तो याद किए ही जाते रहेंगे लेकिन उन्हें पूरे संसार ने महान विभूति के रूप में मान्यता प्रदान की है। गांधीजी के आदर्श और उनके अहिंसक आन्दोलन पूरे विश्व में आदर के साथ याद किए जाते रहेंगे। गांधीजी के जीवन चरित्र पर अनेक भाषाओं में फिल्में बनाई गई हैं और उन पर शोधार्थी शोध करते हैं। उनका जन्मदिवस 2 अक्टूबर गांधी दिवस के रूप में पूरे भारत में मनाया जाता है। लेकिन संयुक्त राष्ट्र संघ ने अब इस दिवस को अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं अहिंसा के नाम पर भी मनाने की घोषणा की है। गांधीजी का नाम विनम्रता, सादगी और अहिंसा का पर्यायवाची शब्द बन गया है और इससे ही गांधीजी के व्यक्तित्व को हम आसानी से समझ सकते हैं।
FAQ
महात्मा गांधी ने कितने आंदोलन किए थे?
गांधी जी ने 1920 से लेकर 1922 तक असहयोग आंदोलन चलाया। जिससे वह भारत के एक लोकप्रिय नेता बन गए। गांधी जी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत की। इसका अर्थ था कि बगैर हिंसा किये सरकारी कानूनों को तोड़ना, जिसकी शुरुआत गांधी जी ने नमक कानून का उलंघन करके किया।
महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता क्यों कहा जाता है?
यह रविन्द्र नाथ टैगोर थे जिन्होंने मोहनदास करमचंद गांधी को महात्मा माना और उनके पीछे-पीछे पूरा देश यही मानने लगाI गांधी सारी उम्र अपने आचरण से महात्मा होने की पात्रता बार-बार अर्जित भी करते रहे. इसी तरह माना जाता है कि 1944 में सुभाषचंद्र बोस ने सिंगापुर रेडियो से एक संदेश प्रसारित करते हुए उन्हें राष्ट्रपिता का नाम दिया था I उस समय से सभी लोग उन्हें राष्ट्रपिता बुलाने लगे I
महात्मा गांधी ने साबरमती आश्रम की स्थापना कब की?
17 जून 1917
गांधी जी भारत कब लौटे थे?
9 जनवरी, 1915
महात्मा गांधी का पहला आंदोलन कौन सा था?
चंपारण आंदोलन भारत का पहला नागरिक अवज्ञा आंदोलन था जो बिहार के चंपारण जिले में महात्मा गांधी की अगुवाई में 1917 को शुरू हुआ था।
गाँधीजी के राष्ट्रीय गुरु कौन थे?
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी रहे गोपाल कृष्ण गोखले महान स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ ही एक मंझे हुए राजनीतिज्ञ भी थे I उन्होंने गांधी जी को देश के लिए लड़ने की प्रेरणा दी. वो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के राजनीतिक गुरु थेI
गांधी जी द्वारा स्थापित पहला आश्रम कौन सा है?
गांधीजी के दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद भारत में उनका प्रथम आश्रम 25 मई, 1915 को अहमदाबाद के कोचरब क्षेत्र में स्थापित किया गया था।
कौन सी पुस्तक महात्मा गांधी द्वारा लिखी गई है?
हिन्द स्वराज – महात्मा गांधी द्वारा लिखी गई (1909)
गोपाल कृष्ण गोखले किस के राजनीतिक गुरु कौन थे?
महात्मा गांधी गोपाल कृष्ण गोखले को अपना राजनीतिक गुरु मानते थे।
महात्मा गांधी जी का नारा क्या था?
अंग्रेजों भारत छोड़ो नारा महात्मा गांधी ने दिया था
यह भी पढ़ें
पंडित जवाहरलाल नेहरू पर निबंध – Essay on Pandit Jawaharlal Nehru |
मै आशा करती हूँ कि महात्मा गाँधी पर लिखा यह निबंध ( महात्मा गांधी पर निबंध – Essay on Mahatma Gandhi in Hindi ) आपको पसंद आया होगा I साथ ही साथ आप यह निबंध/लेख अपने दोस्तों और परिवार वालों के साथ जरूर साझा ( Share) करेंगें I
सेंट्रल बोर्ड ऑफ सैकण्डरी एजुकेशन की नई ऑफिशियल वेबसाईट है : cbse.nic.in. इस वेबसाईट की मदद से आप सीबीएसई बोर्ड की अपडेट पा सकते हैं जैसे परिक्षाओं के रिजल्ट, सिलेबस, नोटिफिकेशन, बुक्स आदि देख सकते है. यह बोर्ड एग्जाम का केंद्रीय बोर्ड है.
संघ लोक सेवा आयोग का एग्जाम कैलेंडर {Exam Calendar Of -UNION PUBLIC COMMISSION (UPSC) लिंक/Link