आधुनिक भारतीय नारी

आधुनिक भारतीय नारी पर निबंध | Eassy on Modern Woman in Hindi

आधुनिक भारतीय नारी पर निबंध (Eassy on Modern Woman in Hindi)

आधुनिक भारतीय नारी-क्रांति की अग्रदूती

आधुनिक भारतीय नारी क्रांति की अग्रदूती है। नारी और समाज की स्वतन्त्रता की ध्वज वाहिका है। स्वस्थ परिवार, समाज और राष्ट्र की निर्मात्री है। बौद्धिक विकास में पुरुष की प्रतिद्वंद्वी है तो सौन्दर्य-श्रृंगार में रंगीन खिलौने के समान आकर्षक है। पुरुष को उन्मत्त कर देने का गर्व उसमें है।

आधुनिक भारतीय नारी
आधुनिक भारतीय नारी

प्रेमचन्द जी आधुनिक नारी का चित्रण इन शब्दों में करते हैं,

“गाल कोमल पर चपलता कूट-कूट कर भरी हुई। झिझक या संकोच क़ा कहीं नाम नहीं । मेकअप में प्रवीण। बला की हाजिर जवाब पुरुष मनोविज्ञान की अच्छी जानकार, आमोद-प्रमोद को जीवन का तत्त्व समझने वाली, लुभाने और रिझाने की कला में निपुण। जहाँ आत्मा का स्थांन है, वहाँ प्रदर्शन, जहाँ हृदय का स्थान है वहाँ हाव-भाव, मनोदगारों पर कठोर निग्रह।”

प्रेमचंद्र (गोदान )

आधुनिक भारतीय नारी : अमृतमयी ज्योत्स्ना रूप

नारी विषाद की घन-घटाओं को दूर करने वाली अमृतमयी ज्योत्स्ना है। उसकी हँसी में जीवन-निर्झर का मधुर-संगीत है। उसका स्पर्श सुधा-रस की तरह उत्तेजक है। उसका इृदय प्रेम का रंगमंच है । उसकी मधुर वाणी से गुलाब के फूल झड़ते हैं ।इसकी अर्धमुस्कान और अर्धकराक्ष पुरुषत्व को चुनौती हैं। उसका अर्थ-स्वातंत्रय पति-रूपी देवता को सच्चे अर्थों में सहधर्मिणी मनवाने की कला है।

इस शताब्दी पूर्व की भारतीय नारी अनपढ़ थी, अशिक्षिता थी। राजनीतिक अधिकारों से वह शून्य थी तथा आर्थिक स्वतन्त्रता का उसे अभाव था। उसकी सामाजिक स्थिति भी कुछ स्पृहणीय नहीं थी । उसका प्रथम लक्ष्य पत्नीत्व और अन्तिम लक्ष्य मातृत्व समझा जाता रहा।

महर्षि दयानन्द के प्रयास से नारी के लिए शिक्षा के द्वार खुले और महात्मा गाँधी के आह्वान पर राजनीतिक क्रांति की अग्रदूत बनी। पाश्चात्य संस्कृति-सभ्यता के सम्पर्क से बह जीवन और जगत के प्रत्येक क्षेत्र में पुरुष को चुनौती देने लगी । परिणामत: उसके चारों ओर फैली दुर्बलता नष्ट हो गई, उसकी भावुकता छिन्न-भिन्‍न हो गई और उसके स्त्रीत्व से शक्तिहीनता का लांछन दूर हो गया।

आधुनिक भारतीय नारी : राजनीति और शिक्षा के क्षेत्र में

आज की नारी राजनीतिक क्षेत्र में कार्य करती है । विधान-सभा, राज्य-सभा तथा संसद्‌ का चुनाव लड़ती है। विधायक तथा सांसद बनकर अपने क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करती है। मन्त्री बनकर राष्ट्र के निर्माण में योगदान करती है। मुख्यमन्त्री तथा प्रधानमन्त्री बन प्रांत और राष्ट्र के भाग्य की विधाता बनती है। राज्यपाल बन राज्य को संविधान के अनुसार चलाने का दायित्व निभाती है।

शिक्षा के क्षेत्र में आधुनिक नारी प्रगति-पथ पर है। वह उच्च, उच्चतर तथा उच्चतम शिक्षा प्राप्त कर सामाजिक जागृति का सन्देश देती है तो साथ ही आजीविका का साधन भी जुटाती है।आर्ट्स हो या हो या कामर्स, साइंस हो या टैक्नोलोजी, कानून हो या मैनेजमेंट, सभी क्षेत्रों में योग्यता का प्रदर्शन करती है।

अध्यापिका बनकर आज नारी देश को शिक्षित कर रही है। व्यापार और उद्योगों का संचालन कर देश की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ कर रही है। वैज्ञानिक बन राष्ट्र-जीवन को अपनी खोजों से लाभान्वित कर रही है। वकील बन देशवासियों के कानूनी-हक को लड़ाई लड़ रही है। नागरिक-प्रहरी (पुलिस) बन नगरवासियों की रक्षा करती है तो सैनिक बन राष्ट्र की सुरक्षा में योग देती है।

आधुनिक भारतीय नारी: पारिवारिक, धार्मिक और सामाजिक क्षेत्र में

आधुनिक नारी ने परिवार को सुव्यवस्था दी। खान-पान को स्वास्थ्यवर्धक बनाया। रहन-सहन को व्यक्तित्व के अनुकूल ढाला। संतान के पालन-पोषण, शिक्षा-दीक्षा, उन्नति-प्रगति में विवेकपूर्ण योग दिया। अंध श्रद्धा और अन्ध-विश्वास को कम किया। वैज्ञानिक जीवन में आस्था दर्शायी। घर को स्वर्ग-सम बनाया। पति की जूती नहीं बनी, ‘पति-पुत्रों पर बोझ नहीं बनी। अबला-जीवन को गले नहीं लगाया। नारी तू सबला है I

धर्म के क्षेत्र में पूर्ण आस्था और श्रद्धा से नत हुई। पर्व और त्यौहार को उसने उल्लास से मनाया। पूजा-अर्चना में विवेक की ज्योति जलाई। धर्म के आडम्बर और कर्मकाण्ड की बेतुकी बातों को दूर से ही प्रणाम किया। धर्म की वास्तविकता से मोह किया और विशालता में जीवन को कृतार्थता समझी।

सामाजिक-क्षेत्र में उसने अपना वर्चस्व प्रकट किया। दुश्चरित्र तथा अत्याचारी पति से तलाक तथा जीवन-निर्वाह के लिए भत्ता-प्राप्त करने का अधिकार प्राप्त किया। पिता और पति की सम्पत्ति में भागीदार बनी। दहेज में प्राप्त सामान पर अपना स्वामित्व स्थापित किया।

आधुनिक नारी की स्वतन्त्रता-उच्छूंखलता में बदलती है तो प्रकृति से विकृति की ओर जाती है। वह अपनी प्रकृति को वस्त्रों के समान जीवन का बाह्य आच्छादन-मात्र बनाना चाहती है, जिसे इच्छा और आवश्यकतानुसार जब चाहे पहना और उतारा जा सके।

आधुनिक नारी में स्त्री सुलभ विनम्रता व लज्जा का भाव तिरोहित होता जा रहा है और उसके स्थान पर पुरुषों से होड़ लेने का पुरुषोचित आक्रामक भाव बल पकड़ रहा है।नारी काफी हद तक जीत गई, लेकिन अपने दुर्लभ नारीत्व की कीमत चुकाकर। उसके सारे प्रयास और चिंतन के केन्द्र में पुरुष ही प्रतिष्ठित हो गया। वह जिससे मुक्ति चाहती थी, उसी के आकर्षण की परिधि में बंध गई।

सुनीता श्रीवास्तव (राष्ट्रीय सहारा)

इसी अहं के कारण अपनी महत्त्वाकांक्षाओं तथा अस्तित्व के लिए अपने संघर्ष में भावनात्मक रूप में आधुनिक नारी अकेली पड़ती जा रही है। परिणामत: सामाजिक और व्यक्तिगत परेशानियों को सही परिप्रेक्ष्य में देखने-समझने की स्थिति में न हो पाने के कारण वह निरन्तर मानसिक तनाव झेलती है।

आधुनिक भारतीय नारी : उपसंहार

आधुनिक भारतीय नारी (विशेषत: अंग्रेजी शिक्षा से दीक्षित महानगरों में रहने वाली नारी) आज एक ऐसे चौराहे पर खड़ी है जहाँ एक ओर पश्चिमी जीवन-शैली, उन्मुक्त यौन संबंध एवं स्वच्छंदता की चकाचौध है तो दूसरी ओर भारतीय नारी का पातित्रत्य और पृज्या वाला आदर्श रूप है, जो सादगी, समर्पण और सीमाओं में रहने का पक्षधर है । पश्चिम के सांस्कृतिक प्रदूषण और भारतीय मर्यादित जीवन-मूल्यों के इस संक्रमण-काल में आधुनिक नारी क्या दिशा लेगी, इसका उत्तर 2।वीं सदी की नारी ही देगी।


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