स्वामी विवेकानंद पर 600-700 शब्दों में निबंध, भाषण । 600-700 Words Essay speech on Swami Vivekananda in Hindi
स्वामी विवेकानंद से जुड़े छोटे निबंध जैसे स्वामी विवेकानंद पर 600-700 शब्दों में निबंध,भाषण स्कूल में कक्षा 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11,और 12 में पूछे जाते है। इसलिए आज हम 600-700 Words Essay speech on Swami Vivekananda in Hindi के बारे में बात करेंगे ।
600-700 Words Essay Speech on Swami Vivekananda in Hindi for Class 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 & 12
अमेरिका के शिकागो शहर में 11 सितंबर, 1893 को आयोजित विश्व सम्मेलन भारत के लिए चिर स्मरणीय है, क्योंकि इस महासम्मेलन में 25 वर्ष गौर वर्ण, उन्नत ललाट और दिव्य मुखमंडल वाले एक भारतीय संन्यासी ने ऐसी धूम मचाई थी कि उसके सामने अन्य प्रतिनिधि धूमिल पड़ गए। इनके संबोधन ‘भाइयो एवं बहनो’ से विश्व बंधुत्व की अनुभूति पहली बार साकार हुई सारी सभा ‘स्वामी जी की जय’ से गूंज उठी और विश्व-विजय का सेहरा स्वतः इनके सिर बंध गया। इसके बाद लोगों को कहना पड़ा कि भारत परतंत्र अवश्य है, लेकिन अब भी वह आध्यात्मिक क्षेत्र में विश्व गुरु है।
ऐसे विश्व विजयी भारत के लाल स्वामी विवेकानंद का जन्म पश्चिम बंगाल प्रांत की कोलकाता महानगरी में भुवनेश्वरी देवी की पुण्य कोख से 12 जनवरी, 1863 को हुआ था। इनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था। इनके माता-पिता धर्मपरायण थे। पिता तो साक्षात दानवीर कर्ण ही थे। स्वामी विवेकानंद के बचपन का नाम नरेंद्र था। प्रारंभ से ही नरेंद्र ब्रह्म खोजी था। इसी क्रम में इनकी भेंट उस समय जाने-माने ब्रह्मवेत्ता स्वामी रामकृष्ण परमहंस से हुई। स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने इन्हें तराश कर विवेकानंद बना दिया।
स्वामी विवेकानंद का व्यक्तित्व बहुआयामी था। इनमें अध्यात्म की सामुद्रिक गहराई, राष्ट्रीयता की हिमाद्रिक ऊंचाई और वक्तृत्व की सौर प्रखरता थी। शिकागो के स्वामी विवेकानंद में अध्यात्म की सामुद्रिक गहराई थी, जबकि भारत के विभिन्न स्थानों पर नवयुवकों के जागरण हेतु दिए गए उनके व्याख्यान में सौर प्रखरता और राष्ट्रीयता की हिमाद्रिक ऊंचाई सन्निहित थी।
स्वामी विवेकानंद के व्याख्यानों में भारतीयों के लिए एक ही संदेश होता था- अगले पचास वर्षों के लिए देश की सेवा ही तुम्हारी साधना हो और राष्ट्र देवता ही तुम्हारे एकमात्र आराध्य हों! स्वामी जी के इस आह्वान का महान फल हुआ। हम जागृत हुए और पचास वर्षों के भीतर ही हमने अपनी परतंत्रता की बेड़ियां काट डालीं। महासमाधि के समय भारत के लिए उनके श्रीमुख से जो उद्गार निकले थे, वे राष्ट्रीयता की भावना से ओत-प्रोत थे। उनके उद्गार “यदि अपने देशवासियों की आत्मा को जगाने के लिए मुझे सैकड़ों बार जन
मृत्यु की दुःसह्य यातना सहनी पड़े, तो भी मैं पीछे नहीं रहूंगा।” विवेकानंद ने प्राच्य और पाश्चात्य संस्कृति के बीच सेतु का कार्य किया पश्चिम के समुन्नत विज्ञान को वे भारत लाते और भारत की आध्यात्मिक संपरि को ढोकर पश्चिम ले जाते थे। यही कारण है कि भौतिकता में आकंठ निमग्न पश्चिमी देशों में दिए गए उनके व्याख्यानों में अध्यात्म की प्रमुखता होती तथा सुषुप्त भारत के व्याख्यानों में नव-जागरण का शंखनाद।
एक भारतीय व्याख्यान में स्वामी जी ने कहा था, “हे युवाओ! कुछ दिन के लिए ‘गीता’ पढ़ना छोड़ फुटबॉल खेलो, क्योंकि आज भारत को लोहे के पुढे और फौलादी स्नायु की आवश्यकता है। हम लोग बहुत दिन रो चुके। अब और रोने की आवश्यकता नहीं है।” स्वामी विवेकानंद की जीवन यात्रा बिंदु से प्रारंभ होकर सिंधु बन गई। प्रारंभ में वे आतुर होकर सद्गुरु परमहंस से सिर्फ अपने मोक्ष का मार्ग पूछते थे। यह उनकी बिंदु यात्रा थी। 11 जनवरी, 1885 को शिकागो के एक मित्र को पत्र में स्वामी जी ने लिखा था, “मैं मृत्युपर्यंत लोगों की भलाई के लिए निरंतर कार्य करता रहूंगा।”
4 जुलाई, 1902 की रात में स्वामी विवेकानंद ने इस नश्वर शरीर को महासमाधि में विलीन कर दिया, परंतु वे जगत के लिए कुछ शाश्वत संदेश छोड़ गए। ये शाश्वत संदेश इस प्रकार हैं-वेदांत का संदेश, विश्व-बंधुत्व का संदेश और पीड़ित मानवता की सेवा द्वारा ईश्वर नाम का संदेश। इन संदेशों से युगों युगों तक मानवता आलोकित रहेगी।

स्वामी विवेकानंद के अनमोल विचार : Swami Vivekananda Quotes in Hindi
# उठो मेरे शेरो, इस भ्रम को मिटा दो कि तुम निर्बल हो। तुम एक अमर आत्मा हो, स्वच्छंद जीव हो, धन्य हो, सनातन हो। तुम तत्व नहीं हो, तत्व तुम्हारा सेवक है तुम तत्व के सेवक नहीं हो।
# मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने दुनिया को सहनशीलता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है। हम सिर्फ सार्वभौमिक सहनशीलता में ही विश्वास नहीं रखते, बल्कि हम विश्व के सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं।
# यदि परिस्थितियों पर आपकी मजबूत पकड़ है तो जहर उगलने वाला भी आपका कुछ नही बिगाड़ सकता।
# हर काम को तीन अवस्थाओं से गुज़रना होता है – उपहास, विरोध और स्वीकृति।
# पवित्रता, धैर्य और दृढ़ता ये तीनों सफलता के लिए आवश्यक है लेकिन इन सबसे ऊपर प्यार है।
# अनेक देशों में भ्रमण करने के पश्चात् मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि संगठन के बिना संसार में कोई भी महान एवं स्थाई कार्य नहीं किया जा सकता।
# यह मत भूलो कि बुरे विचार और बुरे कार्य तुम्हें पतन की और ले जाते हैं । इसी तरह अच्छे कर्म व अच्छे विचार लाखों देवदूतों की तरह अनंतकाल तक तुम्हारी रक्षा के लिए तत्पर हैं ।
# संभव की सीमा जानने का एक ही तरीका है, असंभव से भी आगे निकल जाना।
# शिक्षा क्या है? क्या वह पुस्तक-विद्या है ? नहीं। क्या वह नाना प्रकार का ज्ञान है ? नहीं, यह भी नहीं। जिस संयम के द्वारा इच्छाशक्ति का प्रवाह और विकास वश में लाया जाता है और वह फलदायक होता है, वह शिक्षा कहलाती है।
# हम वो हैं जो हमें हमारी सोच ने बनाया है, इसलिए इस बात का ध्यान रखिये कि आप क्या सोचते हैं। शब्द गौण हैं, विचार रहते हैं, वे दूर तक यात्रा करते हैं।
# हम भगवान को खोजने कहां जा सकते हैं अगर उनको अपने दिल और हर एक जीवित प्राणी में नहीं देख सकते।
# पीड़ितों की सेवा के लिए आवश्यकता पड़ने पर हम अपने मठ की भूमि तक भी बेच देंगे। हजारों असहाय नर नारी हमारे नेत्रों के सामने कष्ट भोगते रहें और हम मठ में रहें, यह असम्भव है। हम सन्यासी हैं,वृक्षों के नीचे निवास करेंगे और भिक्षा मांगकर जीवित रह लेंगे।
# किसी चीज से डरो मत। तुम अद्भुत काम करोगे। यह निर्भयता ही है जो क्षण भर में परम आनंद लाती है।
# वह नास्तिक है, जो अपने आप में विश्वास नहीं रखता।
# जो अग्नि हमें गर्मी देती है, हमें नष्ट भी कर सकती है। यह अग्नि का दोष नहीं है।
# यही दुनिया है; यदि तुम किसी का उपकार करो, तो लोग उसे कोई महत्व नहीं देंगे। किन्तु ज्यों ही तुम उस कार्य को बंद कर दोगे, वे तुरन्त तुम्हें बदमाश प्रमाणित करने में नहीं हिचकिचायेंगे।
# धर्म ही हमारे राष्ट्र की जीवन शक्ति है। यह शक्ति जब तक सुरक्षित है, तब तक विश्व की कोई भी शक्ति हमारे राष्ट्र को नष्ट नहीं कर सकती।
# यह देश धर्म, दर्शन और प्रेम की जन्मभूमि है। ये सब चीजें अभी भी भारत में विद्यमान है। मुझे इस दुनिया की जो जानकारी है, उसके बल पर दृढतापूर्वक कह सकता हूं कि इन बातों में भारत अन्य देशों की अपेक्षा अब भी श्रेष्ठ है।
# हमे ऐसी शिक्षा चाहिए जिससे चरित्र का निर्माण हो, मन की शक्ति बढ़े, बुद्धि का विकास हो और मनुष्य अपने पैर पर खड़ा हो सके।
# तुम्हें कोई पढ़ा नहीं सकता, कोई आध्यात्मिक नहीं बना सकता। तुमको सब कुछ खुद अंदर से सीखना है। आत्मा से अच्छा कोई शिक्षक नही है। आपकी अपनी आत्मा के अलावा कोई दूसरा आध्यात्मिक गुरु नहीं है।
# अनुभव ही आपका सर्वोत्तम शिक्षक है। जब तक जीवन है सीखते रहो।
# शिक्षा का अर्थ है उस पूर्णता को व्यक्त करना जो सब मनुष्यों में पहले से विद्यमान है।
# प्रेम विस्तार है, स्वार्थ संकुचन है। इसलिए प्रेम जीवन का सिद्धांत है। वह जो प्रेम करता है जीता है। वह जो स्वार्थी है मर रहा है। इसलिए प्रेम के लिए प्रेम करो, क्योंकि जीने का यही एक मात्र सिद्धांत है। वैसे ही जैसे कि तुम जीने के लिए सांस लेते हो।
# बल ही जीवन है और दुर्बलता मृत्यु ।
# भय और अपूर्ण वासना ही समस्त दुःखों का मूल है।
# अगर स्वाद की इंद्रिय को ढील दी, तो सभी इन्द्रियां बेलगाम दौड़ेगी।
# किसी की निंदा ना करें। अगर आप मदद के लिए हाथ बढ़ा सकते हैं, तो ज़रुर बढाएं। अगर नहीं बढ़ा सकते, तो अपने हाथ जोड़िये, अपने भाइयों को आशीर्वाद दीजिये, और उन्हें उनके मार्ग पे जाने दीजिये।
# धर्म कल्पना की चीज नहीं है, प्रत्यक्ष दर्शन की चीज है। जिसने एक भी महान आत्मा के दर्शन कर लिए वह अनेक पुस्तकी पंडितों से बढ़कर है।
# मस्तिष्क की शक्तियां सूर्य की किरणों के समान हैं। जब वो केन्द्रित होती हैं, चमक उठती हैं।
# इच्छा का समुद्र हमेशा अतृप्त रहता है । उसकी माँगे ज्यों-ज्यों पूरी की जाती है, त्यों-त्यों और गर्जन करता है।
# सच को कहने के हजारों तरीके हो सकते हैं और फिर भी सच तो वही रहता है|
# जितना हम दूसरों के साथ अच्छा करते हैं उतना ही हमारा हृदय पवित्र हो जाता है और भगवान उसमें बसता है|
# दिल और दिमाग के टकराव में दिल की सुनो।
# दुनिया एक महान व्यायामशाला है, जहाँ हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं।
# यदि स्वयं में विश्वास करना और अधिक विस्तार से पढाया और अभ्यास कराया गया होता, तो मुझे यकीन है कि बुराइयों और दुःख का एक बहुत बड़ा हिस्सा गायब हो गया होता।
# मनुष्य जितना अपने अंदर से करुणा, दयालुता और प्रेम से भरा होगा, वह संसार को भी उसी तरह पायेगा।
# अगर धन दूसरों की भलाई करने में मदद करे, तो इसका कुछ मूल्य है, अन्यथा, ये सिर्फ बुराई का एक ढेर है, और इससे जितना जल्दी छुटकारा मिल जाये उतना बेहतर है |
# अभय हो! अपने अस्तित्व के कारक तत्व को समझो, उस पर विश्वास करो। भारत की चेतना उंसकी संस्कृति है। अभय होकर इस संस्कृति का प्रचार करो।
# यदि संसार में कहीं कोई पाप है तो वह है दुर्बलता। हमें हर प्रकार की कमजोरी या दुर्बलता को दूर करना चाहिए। दुर्बलता पाप है, दुर्बलता मृत्यु के समान है।
# दिन-रात अपने मस्तिष्क को, उच्चकोटि के विचारो से भरो। जो फल प्राप्त होगा वह निश्चित ही अनोखा होगा।
# कभी मत सोचिये कि आत्मा के लिए कुछ असंभव है। ऐसा सोचना सबसे बड़ा अधर्म है। अगर कोई पाप है, तो वो यही है; ये कहना कि तुम निर्बल हो या अन्य निर्बल हैं।
# जब तक करोड़ों लोग भूखे और अज्ञानी रहेंगे, मैं उस प्रत्येक व्यक्ति को विश्वासघाती मानूंगा जो उनकी कीमत पर शिक्षित हुआ है और उनकी ओर बिल्कुल भी ध्यान नहीं देता है।
# आप अपने को जैसा सोचेंगे, आप वैसे ही बन जाएंगे। यदि आप स्वयं को कमजोर मानते हैं तो आप कमजोर ही होंगे। और यदि आप स्वयं को मजबूत सोचते हैं तो आप मजबूत हो जाएंगे।
# केवल उन्हीं का जीवन, जीवन है जो दूसरों के लिए जीते हैं। अन्य सब तो जीवित होने से अधिक मृत हैं।
# आकांक्षा, अज्ञानता और असमानता – यह बंधन की त्रिमूर्तियां हैं।
# लोग तुम्हारी स्तुति करें या निन्दा, लक्ष्य तुम्हारे ऊपर कृपालु हो या न हो, तुम्हारा देहांत आज हो या युग में, परंतु तुम न्यायपथ से कभी भ्रष्ट न होना।
# जितना बड़ा संघर्ष होगा, जीत उतनी ही शानदार होगी।
# उठो, जागो और जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाये तब तक मत रुको।
# एक समय में एक काम करो, और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमे डाल दो और बाकी सब कुछ भूल जाओ।
# ज्ञान का प्रकाश सभी अंधेरों को खत्म कर देता है।
# दिन में कम से कम एक बार खुद से जरूर बात करें अन्यथा आप एक उत्कृष्ट व्यक्ति के साथ एक बैठक गँवा देंगे।
# जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते तब तक आप ईश्वर पर विश्वास नहीं कर सकते।
# पढ़ने के लिए जरूरी है एकाग्रता। एकाग्रता के लिए जरूरी है ध्यान। ध्यान से ही हम इन्द्रियों पर संयम रखकर एकाग्रता प्राप्त कर सकते है।
# जिस समय जिस काम के लिए प्रतिज्ञा करो, ठीक उसी समय पर उसे करना ही चाहिये, नहीं तो लोगो का विश्वास उठ जाता है।
# ज्ञान स्वयं में वर्तमान है, मनुष्य केवल उसका आविष्कार करता है।
# जब तक जीना, तब तक सीखना, अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है।
# हमारे व्यक्तित्व की उत्पत्ति हमारे विचारों में है, इसलिए ध्यान रखें कि आप क्या विचारते हैं, शब्द गौण हैं विचार मुख्य हैं, और उनका असर दूर तक होता है।
# अच्छे अभिप्राय, निष्कपटता और अनंत प्रेम विश्व को जीत सकते हैं। इन गुणों से युक्त एक आत्मा लाखों पाखंडियों और पाशविकों की काली योजनाओं को नष्ट कर सकती है।
# पवित्रता, धैर्य और उद्यम – ये तीनों गुण मैं एक साथ चाहता हूं।
# जहां दुर्बलता और जड़ता है, वहां क्षमा का कोई मूल्य नहीं, वहां युद्ध ही श्रेयस्कर है। जब तुम यह समझो कि सरलता से तुम विजय प्राप्त कर सकते हो, तभी क्षमा करना। संसार युद्ध क्षेत्र है। युद्ध करके ही अपना मार्ग साफ करो।
# जो अग्नि हमें गर्मी देती है, हमें नष्ट भी कर सकती है। यह अग्नि का दोष नहीं है।
# हम जो बोते हैं वो काटते हैं। हम स्वयं अपने भाग्य के निर्माता हैं।
# हम हमेशा अपनी कमज़ोरी को अपनी शक्ति बताने की कोशिश करते हैं,,अपनी भावुकता को प्रेम कहते हैं और अपनी कायरता को धैर्य।
# जब लोग तुम्हे गाली दें तो तुम उन्हें आशीर्वाद दो। सोचो, कि तुम्हारे झूठे दंभ को बाहर निकालकर वो तुम्हारी कितनी मदद कर रहे हैं।
# जिस तरह से विभिन्न स्रोतों से उत्पन्न धाराएँ अपना जल समुद्र में मिला देती हैं। उसी प्रकार मनुष्य द्वारा चुना हर मार्ग, चाहे अच्छा हो या बुरा, भगवान तक जाता है।
# लगातार श्रम करना ही आपकी सफलता का साथी है, इसलिए श्रम को सकारात्मक बनाएं विनाशक नहीं। श्रम एक अपराधी भी करता है, लेकिन उसका लक्ष्य सिर्फ किसी को नुकसान पहुंचाना या फिर किसी की जान लेना ही होता है।
# जिस शिक्षा से हम अपना जीवन निर्माण कर सके, मनुष्य बन सके चरित्र गठन कर सके और विचारों की सामंजस्य कर सकें। वही वास्तव में शिक्षा कहलाने योग्य है।
# सत्य, प्राचीन अथवा आधुनिक किसी समाज का सम्मान नहीं करता। समाज को ही सत्य का सम्मान करना पड़ेगा, अन्यथा समाज का विनाश हो जाएगा। सत्य ही हमारे सारे प्राणियों और समाजों का मूल आधार है, अतः सत्य कभी भी समाज के अनुसार अपना गठन नहीं करेगा। वही समाज सब से श्रेष्ठ है, जहाँ सभी सत्यों को कार्य में परिवर्तित किया जा सकता है – यही मेरा मत है। और यदि समाज इस समय उच्चतम सत्यों को स्थान देने में समर्थ नहीं है, तो उसे इस योग्य बनाओ। और जितना शीघ्र तुम ऐसा कर सको, उतना ही अच्छा।
# शक्ति जीवन है, निर्बलता मृत्यु है। विस्तार जीवन है, संकुचन मृत्यु है। प्रेम जीवन है, द्वेष मृत्यु है।
# चिंतन करो, चिंता नहीं; नए विचारों को जन्म दो।
# जो कुछ भी तुमको कमजोर बनाता है – शारीरिक, बौद्धिक या मानसिक। उसे जहर की तरह त्याग दो।
# वेदान्त कोई पाप नहीं जानता, वो केवल त्रुटी जानता है। वेदान्त कहता है कि सबसे बड़ी त्रुटी यह कहना है कि तुम कमजोर हो, तुम पापी हो, तुम एक तुच्छ प्राणी हो, तुम्हारे पास कोई शक्ति नहीं है, तुम ये नहीं कर सकते और तुम वो नहीं कर सकते।
# किसी की निंदा ना करें। अगर आप मदद के लिए हाथ बढ़ा सकते हैं, तो ज़रुर बढाएं। अगर नहीं बढ़ा सकते, तो अपने हाथ जोड़िये, अपने भाइयों को आशीर्वाद दीजिये और उन्हें उनके मार्ग पे जाने दीजिये।
# क्या तुम नहीं अनुभव करते कि दूसरों के ऊपर निर्भर रहना बुद्धिमानी नहीं हैं। बुद्धिमान व्यक्ति को अपने ही पैरों पर दृढतापूर्वक खड़ा होकर कार्य करना चहिए।
# जो सत्य है, उसे साहसपूर्वक निर्भीक होकर लोगों से कहो। उससे किसी को कष्ट होता है या नहीं, इस पर ध्यान मत दो।
# वह आदमी अमरत्व तक पहुंच गया है जो किसी भी चीज़ से विचलित नहीं होता है।
# जिस क्षण मैंने ईश्वर को हर इंसान में बैठे महसूस किया है, उसी क्षण से में हर इंसान के सामने सम्मान से खड़ा होता हूँ और उनमे ईश्वर को देखता हूँ।
# कोई व्यक्ति कितना ही महान क्यों न हो, आँखें मूंदकर उसके पीछे न चलिए। यदि ईश्वर की ऐसी ही मंशा होती तो वह हर प्राणी को आँख, नाक, कान, मुँह, मस्तिष्क आदि क्यों देता…?
# मौन, क्रोध की सर्वोत्तम चिकित्सा है।
# शिक्षा व्यक्ति में अंतर्निहित पूर्णता की अभिव्यक्ति है।
# हम जितना ज्यादा बाहर जायें और दूसरों का भला करें, हमारा हृदय उतना ही ज्यादा शुद्ध होगा और परमात्मा उसमें बसेंगे।
# कुछ मत पूछो, बदले में कुछ मत मांगो। जो देना है वो दो, वो तुम तक वापस आएगा। परन्तु उसके बारे में अभी मत सोचो।
# जीवन का रहस्य केवल आनंद नहीं बल्कि अनुभव के माध्यम से सीखना है।
# किसी दिन, जब आपके सामने कोई समस्या ना आये, आप सुनिश्चित हो सकते हैं कि आप गलत मार्ग पर चल रहे हैं।
# मन की एकाग्रता ही समग्र ज्ञान है।
# जब तक मनुष्य के जीवन में सुख – दुख नहीं आएगा तब तक मनुष्य को यह एहसास कैसे होगा कि जीवन में क्या सही है? और क्या गलत है?
# कर्म योग का रहस्य है कि बिना किसी फल की इच्छा के कर्म करना है, यह भगवान कृष्ण द्वारा श्रीमद्भगवद्गीता में बताया गया है।
# जब कभी भारत के सच्चे इतिहास का पता लगाया जायेगा। तब यह संदेश प्रमाणित होगा कि धर्म के समान ही विज्ञान, संगीत, साहित्य, गणित, कला आदि में भी भारत समग्र संसार का आदि गुरु रहा है।
# बाहर की दुनिया बिलकुल वैसी है, जैसा कि हम अंदर से सोचते हैं। हमारे विचार ही चीजों को सुंदर और बदसूरत बनाते हैं। पूरा संसार हमारे अंदर समाया हुआ है, बस जरूरत है चीजों को सही रोशनी में रखकर देखने की।
# उस ज्ञान उपार्जन का कोई लाभ नहीं जिसमे समाज का कल्याण न हो।
# यदि हमें गौरव से जीने का भाव जगाना है, अपने अंतर्मन में राष्ट्रभक्ति के बीज को पल्लवित करना है तो राष्ट्रीय तिथियों का आश्रय लेना होगा।
# हिन्दू संस्कृति आध्यात्मिकता की अमर आधारशिला पर स्थित है।
# अपनी वर्तमान अवस्था के जिम्मेदार हम ही हैं, और जो कुछ भी हम होना चाहते हैं, उसकी शक्ति भी हमीं में है। यदि हमारी वर्तमान अवस्था हमारे ही पूर्व कर्मों का फल है, तो यह निश्चित है कि जो कुछ हम भविष्य में होना चाहते हैं, वह हमारे वर्तमान कार्यों द्वारा ही निर्धारित किया जा सकता है।
# जिसके साथ श्रेष्ठ विचार रहते हैं, वह कभी भी अकेला नहीं रह सकता।
# दुनिया में अधिकांश लोग इसलिए असफल हो जाते हैं क्योंकि विपरीत परिस्थितियां आने पर उनका साहस टूट जाता है और वह भयभीत हो जाते हैं।
# मनुष्य जाति को इस प्रकार पुकारना है कि जागो, उठो और धैर्य की उपलब्धि के बिना रुको नहीं। यही एकमात्र कर्म है। त्याग ही धर्म का सार है और कुछ नहीं।
# मनुष्य के चरित्र का नियमन करने वाली 2 चीजें होती हैं – बल और दया। बल का प्रयोग सदैव हम सभी शक्तियां और सुविधाओं और स्वास्थ्य उपयोग करने के लिए करते हैं। दया दैवीय संपत्ति है।
# सौंदर्य और यौवन का नाश हो जाता है। जीवन और धन का नाश हो जाता है। नाम और यश का विनाश हो जाता है। पर्वत भी चूर चूर होकर मिट्टी हो जाते हैं। मित्रता और प्रेम ही नश्वर है। एक मात्र सत्य ही चिरस्थाई है।
# तुम मुझे पसंद करो या मुझसे नफरत, दोनो ही मेरे पक्ष में हैं। क्योंकि अगर तुम मुझको पसंद करते हो तो मैं आपके दिल में हूँ और अगर तुम मुझ से नफरत करते हो तो मैं आपके दिमाग में हूं। पर रहूंगा आप के पास ही।
# दिन में कम से कम एक बार खुद से बात जरूर करें वरना आप दुनिया के बेहतरीन इंसान से नहीं मिल पाएंगे।
# हमें हमारे विचार ही बनाते हैं। इसलिए शब्दों पर नहीं अपनी सोच पर ध्यान दें। विचार हमेशा जिंदा रहते हैं।
# जिसने ने भी किसी का साथ ढूंढा समझ लो उससे सफलता पीछे छूट गई। क्योंकि भीड़ कभी शिखर पर नहीं पहुंचती।
# वो मजबूत आदमी है। जो कहता है कि मैं अपनी किस्मत स्वयं बनाऊंगा।
# जीवन में संबंध होना बहुत जरूरी है। पर उससे भी जरूरी है उन संबंधों में जीवन होना।
# यदि अच्छी चीजें आएं तो उनका स्वागत है। यदि वो जाती हैं तो भी उनका स्वागत है। जाने दो! जब वह आती है, तो भी धन्य है जब जाती हैं तो भी धन्य है।
# नेतृत्व करते समय सबके दास हो जाओ। निस्वार्थ हो और कभी एक दोस्त को पीठ पीछे दूसरे की निंदा करते मत सुनो। अनंतत: सफलता तुम्हारे हाथ लगेगी।
# हमारे विचार चीजों को खूबसूरत या बदसूरत बनाते हैं। सारी दुनिया हमारे मन में ही है। इसलिए चीजों को नई रोशनी में सकारात्मकता से देखना सीखें।
# एक रास्ता खोजो। उस पर विचार करो। विचार को जीवन बना लो। उसके बारे में सोचो। सपना देखो, जियो। मस्तिष्क, मांसपेशियों, शरीर के प्रत्येक भाग को उस विचार से भर दो। सफलता का यही रास्ता है।
# हमें ऐसी शिक्षा चाहिए जिससे चरित्र का निर्माण हो, मन की शक्ति बढ़े, बुद्धि का विकास हो और मनुष्य अपने पैर पर खड़ा हो सके।
# दिन-रात अपने मस्तिष्क को उच्चकोटि के विचारों से भरो। जो फल प्राप्त होगा वह निश्चित ही अनोखा होगा।
# हम हमेशा अपनी कमज़ोरी को अपनी शक्ति बताने की कोशिश करते हैं। अपनी भावुकता को प्रेम कहते हैं और अपनी कायरता को धैर्य।
# बाहर की दुनिया बिलकुल वैसी है जैसा कि हम अंदर से सोचते हैं। हमारे विचार ही चीजों को सुंदर और बदसूरत बनाते हैं। पूरा संसार हमारे अंदर समाया हुआ है, बस जरूरत है चीजों को सही रोशनी में रखकर देखने की।
# तुम अपनी मंजिल को तो रातों-रात नहीं बदल सकते परंतु अपनी दिशा को रातों रात बदल सकते हैं।
# कानून मकड़जाल की तरह होता है। जब कोई कमजोर और बीमार फंसता है तो मारा जाता है। जबकि शक्तिशाली और बलवान जाल तोड़कर भाग जाता है। कानून मौत की तरह होना चाहिए जो किसी को ना बक्शे।
# मध्य युग में चोर डाकू अधिक थे अब छल कपट करने वाले अधिक है।
# तुच्छ वस्तुओं के लिए कभी प्रार्थना ना करें। यदि आप केवल शारीरिक आराम की ही आकांक्षा करते हो तो पशु और मनुष्य में क्या अंतर है।
# मेहनत से जीवन की हर मुश्किल से बाहर निकला जा सकता है।
# मनु ने सन्यासियों के लिए कहा है कि अकेले रहो और अकेले चलो। सारा संसार बच्चे का खेल मात्र है। – प्रचार करना, शिक्षा देना तथा सभी कुछ।
# मुझे इस बात का विश्वास नहीं है कि वह भगवान जो मुझे यहाँ रोटी नहीं दे सकता वही मुझे स्वर्ग में अनंत खुशी दे सकता है।
# मनुष्य जैसे जैसे उन्नति करता है। विवेक और प्रेम उसके जीवन के आदर्श बनते जाते हैं। उसकी इन बातों का जैसे जैसे विकास होता है वैसे ही उसके इंद्रिय विषयों में आनंद करने की शक्ति क्षीण होती जाती है।
# भिखारियों को लूट कर या चीटियों का शिकार करके क्या लाभ हो सकता है। अतः यदि प्रेम करना है तो ईश्वर से करो इन सांसारिक वस्तुओं की परवाह कौन करता है। यह संसार मिथ्या है।
# सत्य को स्वीकार करना जीवन का सबसे बड़ा पुरुषार्थ है।
# आप जोखिम लेने से भयभीत न हो। यदि आप जीतते हैं तो आप नेतृत्व कर सकते हैं। यदि हारते हैं तो आप दूसरों का मार्गदर्शन कर सकते हैं।
# हमारी उंगली में एक कांटा चुभ जाए तो उसे निकालने के लिए हम दूसरा कांटा काम में लाते हैं। लेकिन जब निकल जाता है तो हम दोनों को ही फेंक देते हैं। फिर हमें दूसरे कांटे को रखने की कोई आवश्यकता नहीं रह जाती है इसी प्रकार कुसंस्कारों का नाश शुभ संस्कारों द्वारा करना चाहिए।
# समस्त प्रकृति आत्मा के लिए है, आत्मा प्रकृति के लिए नहीं।
# जीने के साथ लगातार सीखते भी जाना चाहिए इस भरोसे पर नहीं रहना चाहिए कि उम्र अपने साथ बुद्धि भी लेकर आएगी।
# जो आपकी मदद कर रहा है उन्हें न भूलें। जो आपको प्यार कर रहे हैं उनसे नफरत न करें। जो आप पर विश्वास कर रहे हैं उन्हें धोखा ना दें।
# संगति आप को ऊंचा उठा भी सकती है और यह आप की ऊंचाई को खत्म भी कर सकती है।
# खुद को कमजोर समझना सबसे बड़ा पाप है।
# हम में से प्रत्येक को यही विश्वास रखना चाहिए कि संसार के अन्य सभी लोगों ने अपना कार्य संपन्न कर डाला है। एकमात्र मेरा ही कार्य शेष है और जब मैं अपना कार्यभार पूरा करूंगा। तभी संसार संपूर्ण होगा हमें अपने सिर पर यही दायित्व लेना है।
# हे महाऋषियों! आप ठीक ही कहते थे। जो किसी व्यक्ति विशेष के आश्रय रहता है। वह सत्य रूपी प्रभु की सेवा नहीं कर सकता।
# एक पुस्तकालय महान व्यायामशाला है जहाँ हम अपने मन को मजबूत बनाने के लिए जाते हैं।
स्वामी विवेकानंद के अनमोल विचार : Swami Vivekananda Quotes in Hindi
FAQ
12 जनवरी को कौन सा दिवस मनाया जाता है?
12 जनवरी को प्रत्येक वर्ष स्वामी विवेकानंद का जन्मदिन या जयंतीी, राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाते हैं।
स्वामी विवेकानंद कितने घंटे सोते थे?
स्वामी विवेकानंद दिन में केवल 1.5 – 2 घंटे ही सोते थे और हर चार घंटे के बाद 15 मिनट के लिए झपकी लेते थे!
स्वामी विवेकानंद की शिष्या का क्या नाम था?
भगिनी निवेदिता , मूल नाम ‘मार्गरेट एलिजाबेथ नोबुल’ था।
स्वामी विवेकानंद ने शादी क्यों नहीं की?
सांसारिक भोग और विलासिता से उपर उठकर जीने की उनकी चेतना ने आकार लेना शुरू कर दिया था, इसलिए स्वामी विवेकानंद ने शादी नहीं की।
स्वामी विवेकानंद का जन्म कहाँ हुआ?
कोलकाता में
विवेकानंद की मृत्यु कब और कैसे हुई?
स्वामी जी की मृत्यु 4 जुलाई, 1902 को हुई।मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार स्वामी विवेकानंद की मृत्यु दिमाग की नसें फटने के कारण हुई थी।
स्वामी विवेकानंद का बचपन का नाम क्या था?
स्वामी विवेकानंद के बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था।
निवेदिता का मूल नाम क्या था?
‘मार्गरेट एलिजाबेथ नोबुल’
स्वामी विवेकानंद के पुत्र का क्या नाम था?
स्वामी विवेकानंद अविवाहित थे , उनके कोई भी पुत्र और पुत्री नहीं थे .
स्वामी विवेकानंद की पत्नी का क्या नाम था?
स्वामी विवेकानंद अविवाहित थे.
स्वामी विवेकानंद के माता-पिता का क्या नाम था ?
स्वामी विवेकानंद के माता का क्या नाम भुवनेश्वरी देवी और पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था .
स्वामी विवेकानंद के गुरु कौन थे ?
ब्रह्मवेत्ता स्वामी रामकृष्ण परमहंस
शिकागो सर्वधर्म सम्मेलन कब हुआ था?
11 सितंबर 1893 को
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