जयशंकर प्रसाद पर 600-700 शब्दों में निबंध, भाषण – 600-700 Words Essay speech on Jaishankar Prasad in Hindi
जयशंकर प्रसाद से जुड़े छोटे निबंध जैसे जयशंकर प्रसाद पर 600-700 शब्दों में निबंध,भाषण स्कूल में कक्षा 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11,और 12 में पूछे जाते है। इसलिए आज हम 600-700 Words Essay speech on Jaishankar Prasad in Hindi के बारे में बात करेंगे ।
600-700 Words Essay Speech on Jaishankar Prasad in Hindi for Class 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 & 12
जयशंकर प्रसाद ने हिंदी के नाट्य साहित्य में नये युग का सूत्रपात किया। प्रसाद जी युगांतकारी नाटककार थे। उनके आगमन के साथ हिंदी नाट्य साहित्य में एक क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ। उन्होंने अपने भावपूर्ण ऐतिहासिक नाटकों में राष्ट्रीय जागृति, नवीन आदर्श एवं भारतीय इतिहास के प्रति अगाध श्रद्धा प्रस्तुत की। प्रसाद जी सर्वतोन्मुखी प्रतिभा के साहित्यकार थे। उन्होंने कविता, नाटक, उपन्यास, कहानी एवं निबंध आदि विधाओं में रचना करके हिंदी साहित्य को संपन्नता प्रदान की है। वे हिंदी के सर्वश्रेष्ठ नाटककार थे।
महाकवि एवं ऐतिहासिक नाटककार जयशंकर प्रसाद का जन्म माघ शुक्ल पंचमी, संवत् 1889 को काशी के सुप्रतिष्ठित धनी एवं महादानी सेठ सुंघनी साहू के परिवार में हुआ था। इन्होंने घर पर ही हिंदी, संस्कृत, फारसी, बंगला, अंग्रेजी तथा उर्दू भाषा का अध्ययन किया। साथ ही वेद, पुराण, इतिहास, साहित्य और दर्शन शास्त्र का अपने स्वाध्याय से ही सम्यक ज्ञान प्राप्त किया। प्रसाद जी में काव्य सृजन के संस्कार बचपन से ही थे। उनकी पहली कविता नौ वर्ष की अल्पायु में ही प्रकाश में आ गई। विषम परिस्थितियों के कारण उनका संपन्न परिवार ऋण के बोझ से दब गया। अतः उन्हें कष्टमय जीवन व्यतीत करना पड़ा, परंतु उन्होंने हार नहीं मानी। उनका शरीर चिंताओं के कारण जर्जर हो गया। अंततः 15 नवंबर, 1837 को काशी में जीवन लीला समाप्त हो गई।
प्रसाद जी के समान सर्वतोन्मुखी प्रतिभा वाला साहित्यकार हिंदी में कोई दूसरा नहीं हुआ। उन्होंने काव्य, नाटक, उपन्यास, कहानी, निबंध, संपादन आदि सभी विधाओं में कुछ न कुछ लिखा, परंतु वे मूलतः कवि और नाटककार थे। ‘प्रेम पथिका’, ‘आंसू’, ‘झरना’, ‘लहर’, ‘चित्राधार’, ‘कानन कुसुम’, ‘करुणालय’, ‘महाराणा का महत्व’ एवं ‘कामायनी’ उनकी प्रसिद्ध काव्य रचनाएं हैं। ‘कंकाल’ एवं ‘तितली’ प्रसाद जी के उपन्यास हैं। ‘छाया’, ‘आंधी’, ‘आकाश दीप’, ‘इंद्रजाल’ एवं ‘प्रतिध्वनि’ में उनकी कहानियां संकलित हैं। प्रसाद जी के प्रसिद्ध नाटक हैं—’राज्यश्री’, ‘अजात’ ‘कामना’, ‘चंद्रगुप्त’,’ध्रुवस्वामिनी’, ‘विशाख’, ‘एक घूंट’,”’जनमेजयका ‘स्कंदगुप्त’ आदि। उन्होंने ‘इंद्र’ नामक पत्रिका का संपादन भी किया था।
प्रसाद जी के ऐतिहासिक नाटकों में सबसे पहली रचना ‘राज्यश्री’ है। इस नाटक में हर्षकालीन भारत का चित्रण है, लेकिन ‘अजातशत्रु’से नाटककार के रूप में प्रसिद्ध हुए। ‘स्कंदगुत’ और ‘चंद्रप्रसाद के सर्वोत्कृष्ट नाटक हैं। उनके नाटकों में राष्ट्रप्रेम की भावना परिलक्षित होती है। ‘चंद्रगुप्त’ नाटक के एक गीत की निम्नवत पंक्तियां उदाहरणार्थ प्रस्तुत है अरुण यह मधुमय देश हमारा, जहां पहुंच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा ‘ध्रुवस्वामिनी’ नाटक में प्रसाद जी ने प्राचीन काल में विधवा विवाह का प्रमाण देकर नारी उत्थान का समर्थन किया। इनके नाटकों में नारी पात्रों को गरिमा का अंकन हुआ है। मालविका, देवसेना, अलका, मल्लिका, ध्रुवस्वामिनी आदि ऐसे ही नारी पात्र हैं। इसके अतिरिक्त इनके नाटकों में भारतीय और पाश्चात्य चिंतन का समन्वय भी दिखता है। प्रसाद जी ने हिंदी साहित्य में नवीन युग की चेतना का प्रादुर्भाव किया। उन्होंने अपनी प्रतिभा के बल पर काव्य के विषय और क्षेत्र में भी मौलिक परिवर्तन किए। प्रसाद जी ने नारी के कोमल अवयवों का उत्तेजक वर्णन नहीं किया, वरन उसके आंतरिक गुणों पर अधिक बल दिया। उन्होंने अपने काव्य द्वारा नारी में श्रद्धा भाव उत्पन्न किया। इनकी प्रसिद्ध काव्य कृति ‘कामायनी’ की निम्नलिखित पंक्तियां देखिए नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग पद तल में । पीयूष स्रोत सी बहा करो, जीवन के सुंदर समतल में।
जयशंकर प्रसाद की रचनाओं में दार्शनिकता, रहस्यवाद, प्राकृतिक सौंदर्य एवं भारतीय संस्कृति की झलक दिखाई देती है। उन्होंने गद्य एवं पद्य-दोनों भावनात्मक शैली में लिखे हैं। सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, पौराणिक, राष्ट्रीय एवं साहित्यिक सभी दृष्टि से इनके नाटक हिंदी साहित्य की अमुल्य धरोहर हैं।
जयशंकर प्रसाद के अनमोल विचार – Jaishankar Prasad Quotes in Hindi
#कभी कभी मौन रह जान बुरी बात नहीं है।
#प्रत्येक स्थान और समय बोलने योग्य नहीं रहते।
#व्यक्ति का मान नष्ट होने पर फिर नहीं मिलता।
#राजा अपने राज्य की रक्षा करने में असमर्थ है, तब भी उस राज्य की रक्षा होनी ही चाहिए।
#जीवन विश्व की संपत्ति है।
#सोने की कटार पर मुग्ध होकर उसे कोई अपने ह्रदय में डुबा नहीं सकता।
#जिसकी भुजाओं में दम न हो, उसके मस्तिष्क में तो कुछ होना ही चाहिए।
#वीरता जब भागती है, तब उसके पैरों से राजनीतिक छलछद्म की धुल उड़ती है।
#प्रश्न स्वयं कभी किसी के सामने नहीं आते।
#सौभाग्य और दुर्भाग्य मनुष्य की दुर्बलता के नाम हैं। मैं तो पुरुषार्थ को ही सबका नियामक समझता हूँ# पुरुषार्थ ही सौभाग्य को सींचता है।
#इस भीषण संसार में एक प्रेम करनेवाले ह्रदय को दबा देना सबसे बड़ी हानि है।
#दो प्यार करनेवाले हृदयों के बीच में स्वर्गीय ज्योति का निवास होता है।
#संसार में छल, प्रवंचना और हत्याओं को देखकर कभी कभी मान ही लेना पड़ता है कि यह जगत ही नरक है।
#अत्याचार के श्मशान में ही मंगल का, शिव का, सत्य -सुन्दर संगीत का शुभारम्भ होता है।
#अर्थ देकर विजय खरीदना देश की वीरता के प्रतिकूल है।
#स्त्री की मंत्रणा बड़ी अनुकूल और उपयोगी होती है।
# कविता करना अत्यंत पुण्य का फल है।
# सम्पूर्ण संसार कर्मण्य वीरों की चित्रशाला है।
# ऐसा जीवन तो विडंबना है, जिसके लिए रात – दिन लड़ना पड़े।
# संसार ही युद्ध क्षेत्र है, इसमें पराजित होकर शस्त्र अर्पण करके जीने से क्या लाभ?
# क्षमा पर केवल मनुष्य का अधिकार है, वह हमें पशु के पास नहीं मिलती।
# जागृत राष्ट्र में ही विलास और कलाओं का आदर होता है।
# भारत समस्त विश्व का है और सम्पूर्ण वसुंधरा इसके प्रेम पाश में आबद्ध है।
# जिस वस्तु को मनुष्य दे नहीं सकता, उसे ले लेने की स्पर्धा से बढ़कर दूसरा दंभ नहीं।
# जो अपने कर्मों को इश्वर का कर्म समझकर करता है, वही ईश्वर का अवतार है।
# समय बदलने पर लोगों की आँखें भी बदल जाती है।
# अपने कुकर्मों का फल चखने में कडवा, परन्तु परिणाम में मधुर होता है।
# आत्म सम्मान के लिए मर मिटना ही दिव्य जीवन है।
# राजसत्ता सुव्यवस्था से बढे तो बढ़ सकती है, केवल विजयों से नहीं।
# पराधीनता से बढ़कर, विडंबना और क्या है?
# असंभव कहकर किसी काम को करने से पहले, कर्मक्षेत्र में कांपकर लडखडाओ मत।
# अन्य देश मनुष्यों की जन्मभूमि है, लेकिन भारत मानवता की जन्मभूमि है।
# उत्पीडन की चिंगारी को अत्याचारी अपने ही अंचल में छिपाए रखता है।
# आतंक का दमन करना प्रत्येक राजपुरुष का कर्म है।
# पुरुष क्रूरता है तो स्त्री करुणा है।
# मनुष्यों के मुंह में भी तो साँपों की तरह दो जीभ होते हैं।
# मानव स्वभाव दुर्बलताओं का संकलन है।
# ह्रदय का सम्मिलन ही तो ब्याह है।
# पढाई सभी कामों में सुधार लाना सिखाती है।
# स्त्री जिससे प्रेम करती है, उसी पर सर्वस्व वार देने को प्रस्तुत हो जाती है।
# सेवा सबसे कठिन व्रत है।
# किसी के उजड़ने से ही कोई दूसरा बसता है।
# जो आज गुलाम है, वही कल सुलतान हो सकता है।
# स्त्रियों का ह्रदय, अभिलाषाओं का, संसार के सुखों का क्रीडा स्थल है।
# बाहुबल ही तो वीरों की आजीविका है।
# क्षणिक संसार!इस महाशून्य में तेरा इंद्रजाल किसे भ्रांत नहीं करता?
# मुझे विश्वास है कि दुराचारी सदाचार के जरिये शुद्ध हो सकता है।
# सहनशील होना अच्छी बात है, पर अन्याय का विरोध करना उससे भी उत्तम है।
# विधान की स्याही का एक बिंदु गिरकर भाग्यलिपि पर कालिमा चढ़ा देता है।
# मानव के अंतरतम में कल्याण के देवता का निवास है। उसकी संवर्धना ही उत्तम पूजा है।
# प्रमाद में मनुष्य कठोर सत्य का भी अनुभव नहीं कर सकता।
# पथिक प्रेम की राह अनोखी भूल भुलैया में चलने की तरह है। जब जिन्दगी की कड़ी धूप में उसे घनी छाँव की तरह पाकर मनुष्य आगे बढ़ता है, तब पाँव में कांटे ही कांटे चुभते हैं।
# संदेह के गर्त में गिरने से पहले विवेक का अवलंबन ले लो।
# जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है प्रसन्नता। यह जिसने हासिल कर ली, उसका जीवन सार्थक हो गया।
जयशंकर प्रसाद के अनमोल विचार – Jaishankar Prasad Quotes in Hindi
FAQ
जय शंकर प्रसाद का जन्म कब और कहाँ हुआ?
जयशंकर प्रसाद का जन्म सन् 1889 में वाराणसी में हुआ।
शंकर प्रसाद की मृत्यु कब हुई थी?
15 नवंबर, 1837 को काशी में
जयशंकर प्रसाद की अंतिम कहानी कौन सी है?
कामायनी
जयशंकर प्रसाद की सर्वश्रेष्ठ रचना कौन सी है?
कामायनी
देवसेना का गीत जयशंकर प्रसाद के कौन से ऐतिहासिक नाटक से उद्धृत है?
देवसेना का गीत जयशंकर प्रसाद के स्कंदगुप्त नाटक से उद्धृत है।
जयशंकर प्रसाद के ज्येष्ठ भ्राता का क्या नाम था?
शम्भूरतन
ग्राम किसकी रचना है?
जयशंकर प्रसाद
छाया किसकी रचना है?
छाया जयशंकर प्रसाद का पहला कहानी संग्रह हैI
कामायनी के अंतिम सर्ग का क्या नाम है?
कामायनी के अंतिम सर्ग का शीर्षक ‘आनंद’ है।
जयशंकर प्रसाद का अधूरा उपन्यास कौन सा है?
इरावती (उपन्यास)
जयशंकर प्रसाद के पिता का नाम क्या था?
जयशंकर प्रसाद के पिता का नाम बाबू देवकी प्रसाद थाI
जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित प्रथम कहानी का नाम क्या है?
जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित प्रथम कहानी का नाम ‘ग्राम’ है।
कार्नेलिया का गीत कौन से नाटक से लिया गया है?
‘कार्नेलिया का गीत’ ‘जयशंकर प्रसाद’ के प्रसिद्ध नाटक ‘चन्द्रगुप्त’ से लिया गया है।
जयशंकर प्रसाद की पहली पत्नी का क्या नाम था ?
विंध्यवासिनी देवी (1908 ई॰ में)
जयशंकर प्रसाद की दूसरी पत्नी का क्या नाम था ?
सरस्वती देवी (1917 ई॰ में)
जयशंकर प्रसाद की तीसरी पत्नी का क्या नाम था ?
कमला देवी (1919 ई॰ में)
जयशंकर प्रसाद की भाषा क्या है?
हिंदी
जयशंकर प्रसाद का प्रथम नाटक कौन सा है?
राज्यश्री
जयशंकर प्रसाद के गुरु का क्या नाम था?
रसमय सिद्ध
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मै आशा करती हूँ कि जयशंकर प्रसाद पर लिखा यह निबंध ( जयशंकर प्रसाद पर 600-700 शब्दों में निबंध,भाषण । 600-700 Words Essay speech on Jaishankar Prasad in Hindi ) आपको पसंद आया होगा I साथ ही साथ आप यह निबंध/लेख अपने दोस्तों और परिवार वालों के साथ जरूर साझा ( Share) करेंगें I
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