600-700 Words Essay speech on Dr. Bhim Rao Ambedkar

डॉ. भीमराव अंबेडकर  पर  600-700 शब्दों में  निबंध, भाषण । 600-700 Words Essay speech on Dr. Bhim Rao Ambedkar in Hindi

डॉ. भीमराव अंबेडकर  पर  600-700 शब्दों में  निबंध, भाषण – 600-700 Words Essay speech on Dr. Bhim Rao Ambedkar in Hindi

डॉ. भीमराव अंबेडकर  से जुड़े छोटे निबंध जैसे डॉ. भीमराव अंबेडकर  पर  600-700 शब्दों में  निबंध,भाषण  स्कूल में कक्षा 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11,और 12 में  पूछे जाते है। इसलिए आज हम  600-700 Words Essay speech on Dr. Bhim Rao Ambedkar in Hindi के बारे में बात करेंगे ।

600-700 Words Essay speech on Dr. Bhim Rao Ambedkar in Hindi for Class 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 & 12

डॉ. भीमराव अंबेडकर आधुनिक भारत के प्रमुख विधिवेत्ता, समाज सुधारक और राष्ट्रीय नेता थे। वे मानव मात्र की सेवा में अपने को समर्पित करने वाले तथा दलितों, शोषितों और पीड़ितों की दर्द भरी मूक भाषा को अमर स्वर प्रदान करने वाले एक महामानव थे। उनकी योग्यता, विद्वत्ता एवं सक्रिय कार्य शक्ति के आधार पर उनकी जन्म शताब्दी वर्ष 1990 में उन्हें ‘भारत रत्न’ की सर्वोच्च उपाधि से सम्मानित किया गया था।

डॉ. अंबेडकर का जन्म अनुसूचित जाति के एक निर्धन परिवार में 14 अप्रैल, 1891 को महाराष्ट्र के महू छावनी में हुआ था। वे अपने माता-पिता की चौदहवीं संतान थे। उनके बचपन का नाम भीम सकपाल था। उनके पिता रामजी मौलाजी एक सैनिक स्कूल में प्रधानाचार्य थे। उन्हें मराठी, गणित और अंग्रेजी का अच्छा ज्ञान था। उनके घर का वातावरण धार्मिक था।

मेधावी छात्र अंबेडकर ने 1907 में मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की और इसी वर्ष उनका विवाह रामबाई के साथ हो गया। सन 1912 में उन्होंने बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। जब बड़ौदा नरेश से उन्हें आर्थिक सहायता मिलने लगी, तो वे 1913 में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए न्यूयार्क चले गए। अमेरिका, लंदन तथा जर्मनी में रहकर उन्होंने अपना अध्ययन पूरा किया। सन 1923 तक वे एम.ए., पीएच.डी. और बैरिस्टर बार एट लॉ बन चुके थे। उन्होंने अर्थशास्त्र, राजनीति शास्त्र तथा कानून का गहन अध्ययन किया था।

1923 से 1931 तक डॉ. अंबेडकर के लिए संघर्ष तथा सामाजिक अभ्युदय का समय था। वे दलित वर्ग का नेतृत्व करने वाले प्रथम नेता थे। उन्होंने ‘मूक’ नामक पत्रिका का प्रकाशन किया, जिससे दलितों में उनके प्रति आस्था उत्पन्न हुई। गोल मेज कॉन्फ्रेंस लंदन में भाग लेकर उन्होंने पिछड़ी जातियों के लिए पृथक चुनाव पद्धति तथा विशेष मांगें अंग्रेज शासन से स्वीकार कराई। वे दलितों से सदैव कहा करते थे, “शिक्षित बनो, संघर्ष करो और संगठित रहो।”

वे दलितों, अनुसूचित एवं पिछड़ी जातियों को अधिकार दिलाने के लिए 6 दिसंबर,1930 को प्रथम गोल मेज कॉन्फ्रेंस में तथा 15 अगस्त, 1931 को द्वितीय गोल मेज कॉन्फ्रेंस में भाग लेने लंदन गए थे। 27 मई, 1935 को उनकी धर्मपत्नी रामबाई का देहांत हो गया, जिससे उन्हें मानसिक आघात पहुंचा।

डॉ. भीमराव अंबेडकर ने 13 अक्टूबर, 1935 को अपने धर्मांतरण की घोषणा की तथा उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया। उन्होंने श्रमिकों और दलितों में चेतना जाग्रत करने तथा उन्हें सुसंगठित करने के लिए अगस्त, 1936 में ‘स्वतंत्र मजदूर दल’ की स्थापना की। उन्हें दलितों तथा शोषितों में शिक्षा का अभाव सदैव खटकता था। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने 20 जून, 1946 को सिद्धार्थ महाविद्यालय की स्थापना की।

भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. नेहरू की पारखी दृष्टि विधि विशेषज्ञ डॉ. भीमराव पर पड़ी। पं. नेहरू ने 3 अगस्त, 1947 को उन्हें स्वतंत्र भारत के प्रथम मंत्रिमंडल में विधि मंत्री के रूप में सम्मिलित किया तथा 21 अगस्त, 1947 को भारत की संविधान प्रारूप समिति का अध्यक्ष बनाया। डॉ. अंबेडकर की अध्यक्षता में भारत के लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष एवं समाजवादी संविधान की संरचना हुई, जिसमें मानव के मौलिक अधिकारों की पूर्ण सुरक्षा की गई। 26. जनवरी, 1950 को भारत का वह संविधान राष्ट्र को समर्पित कर दिया गया।

डॉ. भीमराव अंबेडकर दिसंबर, 1954 में विश्व बौद्ध परिषद में भाग लेने रंगून गए तथा बौद्ध धर्म के नेता के रूप में नेपाल गए। 14 अक्टूबर, 1956 को डॉ. अंबेडकर बौद्ध धर्म से दीक्षित हो गए। फिर 20 नवंबर, 1956 को उन्होंने महात्मा बुद्ध और कार्ल मार्क्स पर विद्वत्तापूर्ण तथा ओजपरक ऐतिहासिक भाषण दिया। उन्होंने ‘बुद्ध और उनका धर्म’ नामक एक महान ग्रंथ की रचना भी की, जिसका समापन 5 दिसंबर, 1956 को हुआ।

6 दिसंबर, 1956 को वह महामानव महापरिनिर्वाण को प्राप्त हो गया। सन 1990 में देश के कोने-कोने में उनकी जन्म शताब्दी के समारोह मनाए गए। मानव समाज उनका पुनीत स्मरण करके आज भी उन्हें अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है। उन्होंने मानव समाज को जो कुछ भी दिया, उसके प्रतिदान में समाज उन्हें कृतज्ञता भरे नेत्रों से श्रद्धावनत नमन कर रहा है। अतः देश का कल्याण चाहने वाले सभी भारतीयों का कर्तव्य है कि वे भारत रत्न डॉ. भीमराव अंबेडकर के बताए हुए पथ का अनुसरण करें।

600-700 Words Essay speech on Dr. Bhim Rao Ambedkar
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भीमराव अम्बेडकर के प्रेरक वचन – Ambedkar Quotes in Hindi

हम आदि से अंत तक भारतीय हैं।

महात्मा आये और चले गये परंतु अछुत, अछुत ही बने हुए हैं।

जो क़ौम अपना इतिहास नहीं जानती, वह क़ौम कभी भी इतिहास नहीं बना सकती।

बुद्धि का विकास मानव के अस्तित्व का महत्वपूर्ण लक्ष्य होना चाहिए।

किसी का भी स्वाद बदला जा सकता है, लेकिन ज़हर को अमृत में परिवर्तित नहीं किया जा सकता।

भाग्य में नहीं, अपनी शक्ति में विश्वास रखो।

जो व्यक्ति अपनी मौत को हमेशा याद रखता है, वह सदा अच्छे कार्य में लगा रहता है।

सागर में मिलकर अपनी पहचान खो देने वाली पानी की एक बूंद के विपरीत, इंसान जिस समाज में रहता है, वहां अपनी पहचान नहीं खोता।

मैं रात भर इसलिये जागता हूं क्योंकि मेरा समाज सो रहा है।

जीवन लम्बा होने की बजाय महान होना चाहिए।

सामान्यतः कोई स्मृतिकार कभी ये बात नहीं बताता कि आपके सिद्धांत क्यों हैं और कैसे हैं।

हम सबसे पहले और अंत में भारतीय हैं।

इंसान सिर्फ समाज के विकास के लिए नहीं पैदा हुआ है, बल्कि स्वयं के विकास के लिए पैदा हुआ है।

उदासीनता लोगों को प्रभावित करने वाली सबसे खराब किस्म की बीमारी है।

गुलाम बन कर जिओगे, तो कुत्ता समझ कर लात मारेगी ये दुनिया। नवाब बन कर जिओगे तो शेर समझ कर सलाम ठोकेगी।

एक इतिहासकार, सटीक, ईमानदार और निष्पक्ष होना चाहिए।

न्याय हमेशा समानता के विचार को पैदा करता है।

हर व्यक्ति जो ‘मिल’ के सिद्धांत कि ‘एक देश दूसरे देश पर शासन नहीं कर सकता’ को दोहराता है उसे ये भी स्वी कार करना चाहिए कि ‘एक वर्ग दूसरे वर्ग पर शासन नहीं कर सकता’।

एक सुरक्षित सेना एक सुरक्षित सीमा से बेहतर है।

जब तक आप सामाजिक स्वतंत्रता हासिल नहीं कर लेते, तब तक आपको कानून चाहे जो भी स्वतंत्रता देता है, वह आपके किसी काम की नहीं होती।

मैं किसी समुदाय की प्रगति को महिलाओं ने जो प्रगति हांसिल की है उससे मापता हूं।

पति-पत्नी के बीच का सम्बन्ध किसी गहरे दोस्तों के सम्बन्ध के समान होने चाहिए।

जाति कोई ईंटों की दीवार या कोई काँटों का तार नहीं है, जो हिंदुओं को आपस में मिलने से रोक सके। जाति एक धारणा है, जो मन की एक अवस्था है।

मैं किसी समुदाय की प्रगति महिलाओं ने जो प्रगति हासिल की है, उससे मापता हूँ।

बुद्धि का विकास मनुष्य के प्रगति का आखिरी लक्ष्य होना चाहिए।

एक महान आदमी एक आम आदमी से इस तरह से अलग है कि वह समाज का सेवक बनने को तैयार रहता है।

जीवन लम्बा होने के बजाय महान होना चाहिए।

जिस तरह मनुष्य नश्वर है, ठीक उसी तरह विचार भी नश्वर हैं। जिस तरह पौधे को पानी की जरूरत पड़ती है, उसी तरह एक विचार को प्रचार-प्रसार की जरुरत होती है। वरना दोनों मुरझा कर मर जाते हैं।

मैं राजनीति में सुख भोगने नहीं बल्कि अपने सभी दबे-कुचले भाईयों को उनके अधिकार दिलाने आया हूं।

मेरे नाम की जय-जयकार करने से अच्छा है, मेरे बताए हुए रास्ते पर चलें।

इतिहास गवाह है कि जहां नैतिकता और अर्थशाश्त्र के बीच संघर्ष होता है, वहां जीत हमेशा अर्थशाश्त्र की होती है। निहित स्वार्थों को तब तक स्वेच्छा से नहीं छोड़ा गया है जब तक कि मजबूर करने के लिए पर्याप्त बल ना लगाया गया हो।

संविधान, यह एक मात्र वकीलों का दस्तावेज नहीं, यह जीवन का एक माध्यम है।

एक सफल क्रांति के लिए सिर्फ असंतोष का होना ही काफी नहीं है बल्कि इसके लिए न्याय, राजनीतिक और सामाजिक अधिकारों में गहरी आस्था का होना भी बहुत आवश्यक है।

राजनीतिक अत्याचार सामाजिक अत्याचार की तुलना में कुछ भी नहीं हैं। और जो सुधारक समाज की अवज्ञा करता है वह सरकार की अवज्ञा करने वाले राजनीतिज्ञ से ज्यादा साहसी है।

राष्ट्रवाद तभी औचित्य ग्रहण कर सकता है, जब लोगों के बीच जाति, नस्ल या रंग का अन्तर भुलाकर उसमें सामाजिक भ्रातृत्व को सर्वोच्च स्थान दिया जाये।

यदि हम एक संयुक्त एकीकृत आधुनिक भारत चाहते हैं, तो सभी धर्मों के शास्त्रों की संप्रभुता का अंत होना चाहिए।

समानता एक कल्पना हो सकती है, लेकिन फिर भी इसे एक गवर्निंग सिद्धांत के रूप में स्वीकार करना होगा।

हमें अपने पैरों पर खड़े होना है, अपने अधिकार के लिए लड़ना है, तो अपनी ताकत और बल को पहचानो। क्योंकि शक्ति और प्रतिष्ठा संघर्ष से ही मिलती है।

यदि मुझे लगा कि संविधान का दुरूपयोग किया जा रहा है, तो मैं इसे सबसे पहले जलाऊंगा।

यदि हम एक संयुक्त एकीकृत आधुनिक भारत चाहते हैं तो सभी धर्म-शास्त्रों की संप्रभुता का अंत होना चाहिए।

हमारे पास यह आज़ादी इसलिए है ताकि हम उन चीजों को सुधार सकें जो सामाजिक व्यवस्था, असमानता, भेद-भाव और अन्य चीजों से भरी हैं जो हमारे मौलिक अधिकारों की विरोधी हैं।

कानून और व्यवस्‍‍था राजनीतिक शरीर की दवा है और जब राजनीतिक शरीर बीमार पड़े तो दवा जरूर दी जानी चाहिए।

जब तक आप सामाजिक स्ववतंत्रता नहीं हासिल कर लेते, कानून आपको जो भी स्वतंत्रता देता है वो आपके लिये बेमानी हैं।

निहित स्वार्थों को तब तक स्वेच्छा से नहीं छोड़ा गया है, जब तक कि मजबूर करने के लिए पर्याप्तव बल ना लगाया गया हो।

एक सफल क्रांति के‍ लिए सिर्फ असंतोष का होना पर्याप्त नहीं है, जिसकी आवश्याकता है वो है न्याय एवं राजनीतिक और सामाजिक अधिकारों में गहरी आस्था।

राजनीतिक अत्याचार सामाजिक अत्याचार की तुलना में कुछ भी नहीं हैं। और एक सुधारक जो समाज को खारिज कर देता है, वो सरकार को खारिज कर देने वाले राजतीतिज्ञ से कहीं अधिक साहसी है।

कानून और व्यवस्था राजनीतिक शरीर की दवा है और जब राजनीतिक शरीर बीमार पड़ जाय तो दवा जरुर देनी चाहिए।

धर्म और गुलामी असंगत हैं।

जो धर्म जन्म से एक को ‘श्रेष्ठ’ और दूसरे को ‘नीच’ बनाए रखे, वह धर्म नहीं, गुलाम बनाए रखने का षड़यंत्र है।

मनुष्य एवं उसके धर्म को समाज के द्वारा नैतिकता के आधार पर चयन करना चाहिये। अगर धर्म को ही मनुष्य के लिए सब कुछ मान लिया जायेगा, तो किन्हीं और मानकों का कोई मूल्य ही नहीं रह जायेगा।

धर्म में मुख्य रूप से केवल सिद्धांतों की बात होनी चाहिए, यहां नियमों की बात नहीं हो सकती।

मैं ऐसे धर्म को मानता हूं जो स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा सिखाता है।

लोग और उनके धर्म सामाजिक मानकों द्वारा सामाजिक नैतिकता के आधार पर परखे जाने चाहिए। अगर धर्म को लोगों के भले के लिए आवशयक मान लिया जायेगा, तो और किसी मानक का मतलब नहीं होगा।

मनुवाद को जड़ से समाप्त करना मेरे जीवन का प्रथम लक्ष्य है।

कुछ लोग सोचते हैं कि समाज के लिए धर्म की कोई आवश्यकता नहीं है। लेकिन मैं इस विचार को नहीं मानता। मानव जीवन के लिए धर्म की स्थापना होना बेहद जरुरी है।

हिंदू धर्म में, विवेक, कारण और स्वतंत्र सोच के विकास के लिए कोई स्कोप नहीं हैं।

मैं यह नहीं मानता और न कभी मानूंगा कि भगवान बुद्ध विष्णु के अवतार थे। मैं इसे पागलपन और झूठा प्रचार-प्रसार मानता हूं।

मैं गौरी, गणपति और हिन्दुओं के अन्य देवी-देवताओं में आस्था नहीं रखूंगा और न ही मैं उनकी पूजा करूंगा।

हालांकि, मैं एक हिंदू पैदा हुआ था, लेकिन मैं सत्य निष्ठा से आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मैं हिन्दू के रूप में मरूंगा नहीं।

आज भारतीय दो अलग-अलग विचारधाराओं द्वारा शासित हो रहे हैं। उनके राजनीतिक आदर्श जो संविधान की प्रस्तावना में इंगित हैं, वो स्वतंत्रता, समानता और भाई-चारे को स्थापित करते हैं, किन्तु उनके धर्म में समाहित सामाजिक आदर्श इससे इनकार करते हैं।

भीमराव अम्बेडकर -B.R. Ambedkar

FAQ

भारतीय संविधान के निर्माता कौन हैं?

डॉ. भीमराव अंबेडकर

भीमराव अंबेडकर के पिता का क्या नाम था?

रामजी मालोजी सकपाल

भीमराव अंबेडकर की पत्नी का नाम क्या था?

1-रमाबाई अम्बेडकर
2-सविता अम्बेडकर

बाबासाहेब के कितने पुत्र थे?

यशवंत आंबेडकर

बाबा साहब के पास कितनी डिग्री थी?

32

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का निधन कब हुआ?

6 DECEMBER 1956

भारत का संविधान कितने लोगों ने मिलकर बनाया?

विश्व के सबसे बड़े लिखित संविधान के निर्माण के लिए देश भर से 389 सदस्य चुने गए थे।

भारत का संविधान कितने लोगों ने लिखा था?

हाथ से लिखे हुए संविधान पर 24 जनवरी, 1950 को संविधान सभा के 284 सदस्यों ने हस्ताक्षर किए थे जिसमें 15 महिलाएं भी शामिल थीं।

संविधान किसने बनाया और कब बनाया?

भारतीय संविधान लिखने वाली सभा में कुल299 सदस्य थे, जिसके अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद थे। संविधान सभा ने 26 नवम्बर 1949 में अपना काम पूरा कर लिया और 26 जनवरी 1950 को यह संविधान लागू हुआ।

संविधान पर हस्ताक्षर करने वाले पहले व्यक्ति कौन थे?

हस्ताक्षर करने वाले पहले व्यक्ति उदयपुर के बलवंत सिंह मेहता थे।

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के पिताजी क्या काम करते थे?

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के पिताजी भारतीय सेना की मऊ छावनी में सेवा में थे और यहां काम करते हुए वे सूबेदार की पोस्ट तक पहुंचे थे।

डॉ भीमराव अंबेडकर के कितने भाई थे?

डॉ भीमराव अंबेडकर के 2 भाई थे, 1-आनंद राव रामजी, 2- बालाराम रामजी आंबेडकर

डॉ बीआर अंबेडकर द्वारा लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में प्रशस्त किए गए थीसिस का शीर्ष क्या था?

‘द प्रॉब्लम ऑफ द रुपी’

बाबा साहब का जन्म कब हुआ था?

14 APRIL 1891

भारत का संविधान कितने देशों से लिया गया है?

10

संविधान कितने पेज में लिखा है?

संविधान की पांडुलिपि में 251 पन्ने हैं, जिसका वजन 3. 75 किग्रा है।

भारत के संविधान का नाम क्या है?

भारत का संविधान (Constitution of India)

संविधान सभा का अंतिम अधिवेशन कब हुआ?

संविधान सभा की अंतिम बैठक 24 जनवरी, 1950 को हुई 

संविधान सभा के प्रथम वक्ता कौन थे?

संविधान सभा को संबोधित करने वाले प्रथम व्यक्ति जे. बी. कृपलानी थे।

अंबेडकर के गुरु कौन थे?

कृष्ण केशव आम्बेडकर

भीमराव का असली नाम क्या था?

BHEEM RAO RAMJI AMBEDKAR

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की मौत कैसे हुई?

डायबिटीज मेलेटस, जिसे सामान्यतः मधुमेह कहा जाता है

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मै आशा करती हूँ कि  डॉ. भीमराव अंबेडकर  पर लिखा यह निबंध ( डॉ. भीमराव अंबेडकर  पर  600-700 शब्दों में  निबंध,भाषण । 600-700 Words Essay speech on Dr. Bhim Rao Ambedkar in Hindi ) आपको पसंद आया होगा I साथ ही साथ आप यह निबंध/लेख अपने दोस्तों और परिवार वालों के साथ जरूर साझा ( Share) करेंगें I

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