मन के हारे हार है, मन के जीते जीत निबंध -Essay on man ke haare haar hai
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मन की अस्थिरता हार और एकाग्रता जीत
मन की अस्थिरता मन की हार है और मन की एकाग्रता मन की जीत है। मन की अस्थिरता अर्थात् मन की चंचलता, ध्यान परिवर्तन । मन की एकाग्रता अर्थात् मन को सभी वृत्तियों कौ एक ही विषय में स्थिरता या दत्तचित्तता। पाठ याद करने बैठे हो, मन चंचल हो उठा, पहुँच गया दूरदर्शन के चित्रहार में। मन का हरण पाठ याद होने ही नहीं देगा।
पाठ याद न होने का कारण मन की हार है। इसके विपरीत यदि मन की समग्र शक्ति को पाठ याद करने में लगा दिया तो पाठ निश्चित ही याद होगा। अर्जुन भी मछली की आँख का निशाना तभी लगा सका था, जब मन एकाग्र हो गया था। पाठ याद होना या मछली की आँख का भेदन मन की जीत है।
मन कर्मेंन्द्रिय और ज्ञानेन्द्रिय से मुक्त
मन में विकल्प होना, मन का किसी निश्चय पर न पहुँचना, निराश हो जाना, हार है और संकल्प पर दृढ़ रहना मन की जीत । मन में ‘ यह या वह ‘ की स्थिति बन जाने से संदेह उत्पन्न हो जाता है। शेक्सपीयर के अनुसार,
“संदेह हृदय में भय उत्पन्न करता है, जिससे हमें जिस पर विजय प्राप्त करने का पूरा भरासा होता है, उसी के आगे नत-मस्तक होना पड़ता है।“
विलियम शेक्सपीयर
हजरतबल दरगाह (कश्मीर ) में केनद्रीय-सत्ता के विकल्प-मन के कारण ही भारत सरकार को आतंकवादियों के आगे नतमस्तक होना पड़ा । कोई कार्य करने का मन में होने वाला निश्चय ‘संकल्प’ है। जब नैपोलियन की सेना ने आल्प्स-पर्वत को दुल॑ध्य मान पर उस पर चढ़ने से इंकार कर दिया तो वह स्वयं सैनिकों को ललकारते हुए आगे बढ़ा।उसने कहा-आल्प्स है ही नहीं ।
बस, आल्प्स-पर्वत नैपोलियन के संकल्प से पराजित हो गया। यही परिस्थिति महाराज रणजीतसिंह के सम्मुख उपस्थित हुई। अटक नदी को उफनती जलधारा को देखकर उनकी सेना ठिठक गई। महाराजा रणजीतसिंह यह कहते हुए कि-
‘सबै भूमि गोपाल की यागें अटक कहा?
महाराजा रणजीतसिंह
जाके मन में अटक है, सोर्ड अटक रहा ॥
स्वयं आगे बढ़े और अपने घोड़े को नदी में उतार दिया । अटक-नदी परास्त हुई । सेना अटक के पार हुई। महाराजा रणजीतसिंह की विजय उनके दृढ़ संकल्प की विजय थी, मन के जीतने के कारण उनकी यह जीत थी।
क्रियाएँ ज्ञान के अनुरूप न होने से भारत वर्ष की दुर्दशा
स्मरण-शक्ति के अभाव में मानव दर-दर पराजय का मुख देखता है । परीक्षा में कमजोर स्मरण-शक्ति ‘असफलता’ का मुँह देखती है। पराजित मन से राष्ट्रीय चिंतन-मनन के कारण विश्व में भारत का तिरस्कार हो रहा था, किन्तु आज सबल मन के कारण (मन के जीतने से) वह विश्व राष्ट्रों में सम्मान का अधिकारी माना जाने लगा है।
मानसिक कार्यशक्ति की प्रचण्डता के कारण अमेरिका जीत दर जीत का वरण करता हुआ ‘विश्व सम्राट्’ बनने की चेष्टा कर रहा है। शक्ति की तीत्रता के बल पर ही मानव ‘पग-पग पर विजयश्री का वरण करता है। स्वस्थ मन से चिंतन-मनन के कारण ही पाश्चात्य राष्ट्र उन्नति और समृद्धि का आलिंगन कर रहे हैं।
वैशेषिक दर्शन ने मन को उभयात्मक कहा है अर्थात् मन कर्मेन्द्रिय और ज्ञानेन्द्रिय,दोनों के गुणों से युक्त है। इसका अर्थ यह हुआ कि कर्मेन्द्रिय और ज्ञानेन्द्रिय का भेद ही “हार” है और दोनों गुणों का मिलन जीत है। कामायनी के ‘रहस्य’ सर्ग में ज्ञान और कर्म की विभिन्नता पर “मन के हारे हार है‘ बात का समर्थन करते हुए प्रसाद जी लिखते हैं–
ज्ञान दूर कुछ क्रिया भिन्त है, इच्छा क्यों पूरी हो मन की।
जय शंकर प्रसाद
एक दूसरे से न मिल सके, यही विडम्बना है जीवन की।।
वर्तमान भारत कौ दुर्दशा का पूर्ण ज्ञान हमारी सत्ता को है, किन्तु क्रियाएँ ज्ञान के अनुरूप न होने से भारत को दुर्दशा होती जा रही है। यह भारंतीय मन के हार के कारण हार है। दूसरी ओर पाश्चात्य राष्ट्र ज्ञान के अनुरूप क्रिया कर रहे हैं, वे विश्व में अपनी विजय पताका ‘फहरा रहे हैं। यह उनके मन की जीत की जीत है।
मन ही हार ( अस्थिरता) के कारण दसियों वर्षों से भारत का परमाणु परीक्षण रुका हुआ था, पर प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने मन की दृढ़ता प्रकट की तो पोखरण में परमाणु परीक्षण हो गया। विश्व के विकसित राष्ट्रों ने डराया भी तो उनकी परवाह न की। अन्तत: वे झुके और अब भारत का सम्मान करने लगे हैं। है नमन के जीते जीत।
मन के हारे हार है, मन के जीते जीत की व्याख्या
“मन के हारे हार है ” की व्याख्या करेंगे तो कहेंगे, मन के हारने से ही हार होगी। मन की हार है मन के बल को क्षींणता अर्थात् मनोबल का टूटना हार है।’मन के जीते जीत’ का तात्पर्य होगा ‘मनोबल की तेजस्विता ‘। मनोबल ऊँचा है तो जीत चरण चूमेगी। देश स्वातन्त्रय के समय कांग्रेसी नेताओं ने मुस्लिम लीग की कूटनीति के सम्मुख मानसिक हार मान ली थी, मनोबल टूट गया था। जिसका परिणाम हुआ भारतमाता का अंग-विभाजन, देश का बँटवारा । उसके विरुद्ध अनेक आपत्तियों-विपत्तियों को सहते हुए भी मुस्लिमलीग
का मनोबल बना रहा। उसकी जीत हुई। वह पाकिस्तान ले मरी।
द्वितीय विश्व-युद्ध में जापान प्राय: टूट चुका था, किन्तु उसका मनोबल नहीं टूटा था। इस मनोबल के बल पर टूटा हुआ जापान पुन: विश्व की महती शक्ति बन गया। महादेवी के शब्द, ‘हार भी तेरी बनेगी, मानिनी जय की पताका ‘, सच सिद्ध हुए।!
अर्जुन युद्ध लड़ने से पूर्व मानसिक दृष्टि से पराजित हो गया था, क्योंकि वह मन से हार चुका था। दूसरी ओर, भीष्म पितामह मृत्यु-शैया पर लेटे हुए भी इच्छा-शक्ति से मृत्यु को रोके हुए थे। यह इच्छा-शक्ति मन की शक्ति थी। इसलिए वे शरशय्या प्वर पड़े हुए भी जीवित थे। “मन के जीते जीत’ को चरितार्थ कर रहे थे।
जीवन की अनिवार्य स्थिति है–हार और जीत। दोनों का सम्बन्ध मनुष्य के मन से है। जहाँ मन की शक्ति सबल होगी, वहाँ जीत होगी । जहाँ मन की शक्ति क्षीण होगी, वहाँ ‘पराजय होगी। मन की शक्ति तन को शक्ति प्रदान करती है, साहस का प्रणयन करती है, आशा को बलवती बनाती है, ‘ हारिए न हिम्मत ‘ का उपदेश देती है, संकल्प को दृढ़ निश्चय में ढालकर हार को भी जीत में बदल देती है। संस्कृत सूक्ति भी है–
“मन एव मनुष्याणां कारण बन्यमोक्षयो: ।’
अतः मन के हारे हार है, मन के जीते जीत सच्चा कथन हैं ,कुछ भी हो जाये मन से हार को नहीं अपनाना चाहिये अपितु जीत की पूर्ण अभिलाषा से कर्म करना चाहिये I
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