मजहब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना पर निबंध – Majhab Nhi Sikhata Aapas Me Bair Rakhna Essay
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भारत की महिमा और मानवतावाद का वर्णन
उर्दू कवि “इकबाल ‘ की यह क़्राव्य-पंक्ति उनकी देशप्रेम सम्बन्धी उस कविता से उद्धृत है, जिसमें वे भारत की महिमा का गान करते हुए कंहते हैं-
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा।
इकबाल
हम बुलबुलें हैं इसकी यह गुलिस्तां हमारा।।
इसी कविता में उन्होंने कहा है–
मजहब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना।
इकबाल
हिन्दी हैं हम वतन हैं, हिन्दोस्ताँ हमारा।।
इकबाल प्रारम्भ में मानवतावाद के उपासक थे। धर्म-भिननता के कारण भारतवासियों का परस्पर टकराना वे अच्छा नहीं समझते थे। किन्तु दूसरी ओर वे मजहब को महत्त्व देते हुए लिखते हैं-
इकबाल
हमने यह माना कि मजहब जान है इन्सान की।
कुछ इसी के दम से कायम शान है इंसान की ॥
इसका अर्थ यह है कि डॉ. इकबाल प्रत्येक भारतवासी को अपने-अपने धर्म (पंथ) पर गर्व करने की बात भी कहते हैं। अपने मजहब (पंथ) पर गर्व रखते हुए भी मजहब के नाम पर बैर न रखना उनके महान् विचारों के द्योतक हैं।

हिंदुओं और मुसलमानों में टकराव
भारत में तीन धर्मों के मानने वाले प्रमुख हैं-हिन्दू धर्म, इस्लाम धर्म तथा ईसाई धर्म । हिन्दूधर्म भारत का सनातन धर्म है जबकि अन्य दोनों भारत के मूल धर्म नहीं है। इस्लाम का आगमन सातवीं शताब्दी तथा ईसाइयत का आगमन सत्रहवीं शताब्दी में हुआ है। अतः हिन्दू और मुसलमान परस्पर टकराते रहते हैं, जबकि ईसाई-धर्म टकराहट में नहीं शान्तिपूर्वक धर्म-परिवर्तन में विश्वास रखता था, पर अब उसने भी टकराहट का रास्ता अपना लिया है।
डॉ. इकबाल की उक्त सूक्ति के बावजूद भारत में धर्म के नाम पर खून की नदियाँ बहां। भारत-राष्ट्र का विभाजन भी मजहब के नाम पर हुआ। लाखों घर बरबाद हुए। कत्लेआम हुआ। अरबों रुपयों को सम्पत्ति स्वाहा हुई। यह सब क्यों हुआ ? उनके ही धर्मावलम्बियों ने उनकी बात मानने से इन्कार क्यों कर दिया ? और तो और इकबाल ने अपनी इस बात को स्वयं ही झुठला दिया, जब वे कट्टर मुस्लिमलीगी बनकर पाकिस्तान में बस गए. और पाकिस्तान के गुण गाने लगे।
इस्लाम धर्म का परिचय ( मजहब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना पर )
सच्चाई तो यह है कि इकबाल जिस धर्म के मानने वाले थे वह है इस्लाम धर्म । इस्लाम धर्म पैगम्बर हजरत मुहम्मद द्वारा प्रतिपादित मजहब या संप्रदाय है ।’ कुरान ‘ उसका पवित्र ग्रंथ है। कुरान में एक शब्द आया है काफिर। काफिर वह है जो कुरान में वर्णित अल्लाह ‘को नहीं मानता और केवल उसी अल्लाह की इबादत नहीं करता। काफिर की सजा है, “उनके सिर धड़ से अलग कर दो, जब तक वे पूरी तरह आत्मसमर्पण न करें दें।’ यही शान्ति का एकमात्र उपाय है, ‘जब हरेक व्यक्ति इस्लाम कबूल कर लेगा, तो अपने आप सर्वत्र शान्ति का साम्राज्य हो जाएगा।’ (पवित्र आयतें)
धर्मावलम्बियों में टकराव ( मजहब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना पर )
यही कारण है कि इस्लाम में सहिष्णुता को स्थान नहीं है। यदि कर्नाटक का Asia Week अखबार 1986 में ऐसी कहानी छापता है, जिसमें नायक बालक का नाम मुहम्मद है तो हिन्दू-मुस्लिम झगड़ा होता है ।सलमान रुश्दी यदि इंग्लैण्ड में बैठकर पवित्र आयतों के विरुद्ध तथा तसलीमा नसरीन बंगलादेश में रहकर एक कल्पित उपन्यास लिखते हैं तो उन्हें मौत का फरमान सुनाया जाता है। है
मुस्लिम त्यौहारों में सबसे बड़ा त्यौहार है ‘ईद-उल-जुहा।’ ‘इसे बकरीद भी कहते हैं। बकर का अर्थ है गाय या बैल। इस दिन खुदा के नाम पर गाय या बैल की कुर्बानी होती है।’ ( भारतीय मुस्लिम त्यौहार और रीतिरिवाज, डॉ. माजदा असद, पृष्ठ 24) कुर्बानी के पशु की विशेषताएँ बतलाते हुए डॉ. माजदा अंसद लिखती हैं–‘ दो वर्ष की अवस्था कौ गाय-बैल। अन्धे, काने, लंगड़े, दुर्बल और मरियल पशु का उपयोग कुर्बानी के लिए नहीं किया जा सकता।’ (पृष्ठ 26-27)
हिन्दुओं में गाय को अत्यन्त पवित्र और माता माना जाता है। उसे काटना वह बर्दाश्त नहीं कर सकते, तब हिन्दू और मुस्लिम मजहबों में ही बैर पड़ गया। तब इकबाल साहब का यह कहना, “मजहब नहीं सिखाता, आपस में बैर करना’, धर्मो की प्रकृति और प्रवृत्ति से मेल नहीं खाता।
जरा गहराई में जाएँ तो इस काव्य-पंक्ति का अर्थ समझ पाएँगे | मुस्लिम-धर्मावलम्बी आपस में टकराते थे। आपसी टकराहट को न कोई धर्म बर्दाश्त करता है, न पैगम्बर । मुहम्मदके जमाने में अरबी और अजमी टकराते थे तो आज भी अरबी और इराक-ईरान टकराते हैं। शिया और सुन्नी तो जहाँ भी हैं, वहाँ एक-दूसरे को सुहाते नहीं |
खानदानी दुश्मनों जैसा व्यवहार होता है एक-दूसरे से । ऐसे लोगों के लिए खुद हजरत मुहम्मद ने अपनी मृत्यु से पूर्व एक ऐतिहासिक भाषण में कहा था, ‘ अरबी कौ अजमी पर और अजमी की अरबी पर कोई बड़ाई नहीं। तुम सब आदमी की सन्तान हो। मुसलमान आपस में भाई-भाई हैं।! (पैगम्बर हजरत मुहम्मद : जीवन और मिशन, डॉ. इकबाल अहमद, पृष्ठ 6)
उपसंहार ( मजहब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना पर )
कुरान की आयत (4/50-54) का भी यह कहना है कि ‘ और जो लोग खुदा और उसके पैगम्बर पर ईमान लाएँगे और आपस में कोई भेदभाव नहीं करेंगे, उनको अन्त में इसका पुरस्कार मिलेगा।’
यही बात शायर इकबाल कहते हैं ‘मजहब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना।” और इस प्रकार वे अपने पैगम्बर हजरत मुहम्मद और पवित्र आयतों की हिदायतों को ही दोहरा रहे हैं।
अब सवाल उठता है, उन्होंने आगे यह क्यों लिखा, ‘ हिन्दी हैं हम वतन हैं, हिन्दोस्तां हमारा।”हिन्दी’ का अर्थ है-‘ हिन्दुस्तान का रहने वाला, हिन्दुस्तानी ।’ (उर्दू हिन्दी कोश : मुस्तफा खाँ ‘ मुद्दाह ”) इस प्रकार इस काव्य-पंक्ति का अर्थ हुआ-हम संब हिन्दुस्तान के रहने वाले हैं और हिन्दुस्तान ही हमारा बतन है। जरा सोचिए, यदि भारत के मुसलमान अपने को हिन्दुस्तानी नहीं कहते तो हिन्दुस्तान के बैँटवारे के हकदार कैसें बनते ?
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