परिश्रम सफलता का मूल है

परिश्रम सफलता का मूल है हिंदी में निबंध | Hard Work is the Root of Success Essay in Hindi

परिश्रम सफलता का मूल है हिंदी में निबंध – Hard Work is the Root of Success Essay in Hindi

कोई कठिन, बड़ा या दुसाध्य काम करने के लिए विशेष रूप से तथा मन लगाकर किया जाने वाला मानसिक या शारीरिक श्रम परिश्रम है। कार्य, जिसका उद्दिष्ट फल या परिणाम प्राप्त होने का भाव सफलता है दूसरे शब्दों में प्राप्त होने वाली सिद्धि सफलता है। मूल का अर्थ है–जड़, नींव, कारण या उत्पादक तत्त्वI

मानसिक और शारीरिक श्रम के बिना सिद्धि असंभव (परिश्रम सफलता का मूल है)

सूक्तिकार का कहना है कि यदि तुम किसी भी कार्य में सफलता चाहते हो तो मानसिक या शारीरिक श्रम के बिना उसकी सिद्धि असम्भव है। संस्कृत की एक सूक्ति है, “नहि प्रतिज्ञामात्रेण अर्थसिद्धि:” ‘ अर्थात्‌ प्रतिज्ञा मात्र से अर्थ सिद्धि नहीं हो जाती।

बात सही भी है, “न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा:” (हितोपदेश)। सोते हुए सिंह के मुँह में पशुगण स्वमेव प्रवेश नहीं कर जाते । हाथ के श्रम बिना थाली का भोजन भी मुँह में नहीं जाता। बिना अध्ययन के परीक्षार्थी पास नहीं हो सकता। बिना मानसिक चिन्तन के परिश्रम की युक्ति नहीं सूझती और बिना शारीरिक परिश्रम के युक्ति कार्यान्वित नहीं होती।

दैनिक कार्यों परिश्रम का महत्त्व (परिश्रम सफलता का मूल है)

दैनन्दिन कार्यक्रमों में परिश्रम के महत्त्व से यह बात और भी स्पष्ट हो जाएगी। भोजन जीवन के लिए अनिवार्य तत्त्व है। भोजन प्राप्ति कैसे होगी ? जब गृहिणी भोजन बनाकर देगी। गृहिणी भोजन कैसे बनाएगी ? जब वह आटा गूँथेगी, चपाती तबे पर सकेगी, साग काटेगी, उसे कुकर या पतीली में बनाएगी ? थाली में परोसेगी। भोजन प्राप्ति के मूल में है गृहिणी का परिश्रम।

सृष्टि मानव संसार के रूप में बदली, मनु और शतरूपा ( श्रद्धा) के तप से | भूमि कठोर थी, उस पर जीवन जीना कष्टपूर्ण कार्य था । इसको सुख दाता, शांति दाता तथा जीवनदाता किसने बनाया ? महाराज पृथु ने । उन्होंने ही सर्वप्रथम भूमि को समतल किया। नगर, ग्राम,पुर बसाये तथा दुर्ग बनवाये | उनकी देन की पृष्ठभूमि में है, उनका तप । उनका शारीरिक-मानसिक परिश्रम।

महाकवि अश्वघोष के शब्दों में सफलता (परिश्रम सफलता का मूल है)

विश्व-संचालन अपने आप में एक समस्या बनी। इसके लिए नियम निर्धारित हुए। स्मृतियाँ बनीं, संविधान की रचना की गई । राजनीतिज्ञों के परिश्रम से संसार-संचालन के सूत्र प्रकाशित हुए।

इस तरह तय की हैं हमने मंजिलें।
गिर गए, गिरकर उठे, उठकर चले ॥

सफलता के मूल में परिश्रम की महत्ता को प्रकट करते हुए महाकवि अश्वघोष लिखते हैं-

यदि उत्साह नहीं छोड़ने वाला मनुष्य, पृथ्वी खोदता ही रहता है तो उसे पानी मिल ही जाता है। निरन्तर रगड़ने पर काठ से अग्नि प्रकट हो ही जाती है । योग-साधना में लगे रहने वाले व्यक्ति अपने परिश्रम का फल अवश्य ही पाते हैं और निरन्तर बहने वाली नदियाँ चट्टानों को तोड़ ही डालती हैं।

अश्वघोष के इस कथन में परिश्रम की सफलता के प्रति कितना अटूट आत्मविश्वास है। इसीलिए स्वामी रामतीर्थ लिखते हैं-

“Work,ever performing work is the first principle of Success.

अर्थात्‌ सफलता का पहला सिद्धान्त है काम-अनवरत काम ।

यहाँ काम परिश्रम का पर्यायवाची है। एच.सी. क्रैक कहते हैं-

“There is no secret about success, Success simply calls for hard work.”

अर्थात्‌ सफलता का ‘कोई रहस्य नहीं है।

एच.सी. क्रैक
परिश्रम सफलता का मूल है
परिश्रम सफलता का मूल है

उत्साह, साहस और सामर्थ्य परिश्रम के बिना निरर्थक (परिश्रम सफलता का मूल है)

उत्साह, सामर्थ्य, साहस, समय की पहचान, धैर्य, अध्यवसाय तथा ध्येय के प्रति निष्ठा भी तो परिश्रम के बिना सार-हीन हैं । अपरिश्रम अर्थात्‌ आलस्य जीवित मनुष्य को दफना देता है। जैरेमी टेलर का यह कथन सत्य है, “Idleness is the burial of a living man” इसलिए उत्साह में अपौरुषेयता, धैर्य में अकर्मण्यता, साहस में सुस्ती, धैर्य में आलस्य, निष्ठा में परिश्रमहीनता सफलता को स्पर्श भी नहीं करने देगी।

रही बात देवाश्रय की । यह तो भाग्यवादियों की सोच है, ‘ भाग्यं फलति सर्वत्र, नहि विद्या नच पौरुषम्‌।’ इस प्रकार की धारणा का खण्डन करते हुए योगवाशिष्ठ में लिखा है, ‘बुद्धिमान्‌ नियति का सम्बल लेकर पुरुषार्थ का त्याग न करें, क्योंकि नियति भी पुरुषार्थ रूप से ही नियामक होती है।’

एक अन्य सुभाषित में कहा गया है-

यथा ह्येक्येंन चक्रेण न रथस्य गतिर्भवेत्‌।
एवं पुरुष कारेण विना दैव॑ न सिद्धयाति ॥

अर्थात्‌ जैसे एक पहिए से रथ नहीं चल सकता, ऐसे ही पुरुषार्थ के बिना भाग्य भी नहीं
‘फलता।

सृष्टि रचना के समय परमेश्वर ने जब मनुष्य प्राणी का निर्माण किया तो उसे दो हाथ भी दिए, ताकि मनुष्य अपने दोनों हाथों से परिश्रम कर सके। इनके द्वारा लक्ष्य को प्राप्त कर जीवन में सफलता का वरण कर सके । अथर्ववेद में कहा भी है, ‘ कृत॑ मे दक्षिणे हस्ते, जयो मे सव्य आहित: | अर्थात्‌ मेरे दाहिने हाथ में कर्म (पुरुषार्थ) है और सफलता बाएँ हाथ में रखी हुई है ।इसलिए परिश्रम को सफलता का मूल न मानना दो हाथों का अपमान है, परम शक्तिमान्‌ प्रभु की शरीर रचना पर कलंक है।

मूल अर्थात्‌ जड़। जड़ पृथ्वी के नीचे रहकर, अदृश्य रहकर, पेड़-पौधों का पोषण करती है। शूद्रक ने मृच्छकटिक में कहा भी है, ‘मूले छिन्‍ने कुत: पादपस्य पालनम्‌।’ जड़ कट जाने पर वृक्ष का पालन कैसा ? उसी प्रकार परिश्रम भी सफलता का मूल बनकर,उत्पादक तत्त्व बनकर उसको पुष्पित और पल्‍लवित और फलवान्‌ करता है तथा कर्ता फल का भोक्‍्ता बनता है। अत: कार्य की सफलता में परिश्रम का अवलम्बन अनिवार्य हैI


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