निर्धनता: एक अभिशाप

निर्धनता: एक अभिशाप-निबंध

निर्धनता: एक अभिशाप-निबंध

निर्धनता स्वयं में एक पाप है, भर्त्सना और धिक्कार योग्य है, अनिष्ट कामना के उद्देश्य से किए जाने वाले कथन का रूप है, इसलिए यह भयंकर अभिशाप है।

निर्धनता: एक अभिशाप -निर्धन के लिए

निर्धनता निर्धन के लिए अभिशाप हैं, ‘निर्धन कौन है ? | जिसकी आर्थिक स्थिति शोचनीय है, क्या वही निर्धन है ? जिसके पास खाने के लिए अन्न पहनने के लिए कपड़े तथा रहने के लिए झोंपड़ी नहीं है, क्या वही गरीब है ? नहीं ।

डेनियल का कहना है,

वह गरीब नहीं है, जिसके पास कम धन है वरन्‌ गरीब वह है, जिसकी अभिलाषाएँ बढ़ी हुई हैं।’

डेनियल

संस्कृत की एक सूक्ति भी इसी का समर्थन करती हुई कहती है–

स तु भवति दरिद्र: अस्य तृष्णा विशाला ।’

संस्कृत सूक्ति

ब्रूएयर का कथन है; “गरीब वह है, जिसका व्यय आय से अधिक है।’ जार्ज बर्नाडशा मानते हैं कि “सबसे बड़ी बुराई तथा निकृष्टतम अपराध निर्धनता है ।’ ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, ‘जिस-जिस घर में पति-पत्नी एक-दूसरे के प्रति समभाव नहीं रखते, वहीं दरिद्रता का निवास है । जो पुत्रहीन है उसका कुल निर्धन है ।जिसका हार्दिक मित्र नहीं, उसका जीवन निर्धन है। जो भूखे हैं, उसके लिए दसों दिशाएँ निर्धन हैं ।

निर्धनता: एक अभिशाप

दण्डी के अनुसार, “ अवज्ञा जिसकी बहन है, वह दारिद्रय है।’ एमर्सन निर्धनता के सत्य का उद्घाटन करते हुए कहते हैं-‘ अपने को निर्धन अनुभव करने में ही निर्धनता है।’ वे सब विचार अपने स्थान पर ठीक हैं, किन्तु सामान्यत: निर्धन वही है, जिसके पास धन (रुपया,पैसा, सोना, चाँदी या पर्याप्त अन्न तथा अन्य अचल सम्पत्ति) नहीं है।

निर्धनता: एक अभिशाप और कलह का कारण

निर्धनता की परिभाषा कुछ भी करो, पर है वह एक अभिशाप ही | कविवर नरोत्तमदास सुदामा की निर्धनता का चित्रण करते हुए लिखते हैं ‘सीस पया न झगा तन में।’धोती फटी ऑर लटी दुपटी अरु, पाय उपानहु की नहीं सामा।’ और घर का हाल यह है, ‘या घर ते कबहूँ न गयो पिय, टूटो तवा अरु फूटी कठाँती।” तो तुलसी कवितावली के उत्तरकाण्ड में निर्धनता का चित्रण करते हुए कहते हैं– ‘बारेते ललात-बिललात द्वार-द्वार दीन, जानत हाँ चारि फल चारि ही चनन को ‘ (चने के चार दानों को ही वह धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के चार पल समझता था) विद्यापति तो कहते हैं, ‘बारि विहीन सर केओ नहि पूछ।दीन दयाल गिरि तो एक पग आगे बढ़ाते हुए लिखते हैं–

लखि दरित्र को दूर तें, लोग करें अपमान।
जाचक जन ज्यों देखि के, भूखत हैं बहु स्वान॥

दीन दयाल गिरि

निर्धनता कलह का कारण है। मित्रों को अलग करने का मूल है और है प्राणनाशक रोग। भास के मत से ‘निर्धनता मनुष्य के लिए उच्छवासयुक्त मरण है।’ अरस्तू की दृष्टि में, “निर्धनता क्रांति और अपराध की जननी है।’ हैजलिट के अनुसार, “निर्धनता विनग्रता की परीक्षा और मित्रता की कसौटी है।

निर्धनता से लज्जा और चिंता

संस्कृत नाटक ‘मृच्छकटिक’ में नाट्यकर्ता शूद्रक निर्धनता को सभी विपत्तियों की जड़ मानते हुए लिखते हैं

निर्धनता से लज्जा आती है। लज्जित मनुष्य तेजहीन हो जाता है। तेजहीन लोक से
तिरस्कृत होता है। तिरस्कार से ग्लानि की प्राप्ति होती है। ग्लानि होने पर शोक उत्पन्न
होता है। शोकातुर होने पर बुद्धि क्षीण हो जाती है और बुद्धि रहित होने पर मनुष्य नाश
को प्राप्त होता है।

मृच्छकटिक

निर्धनता मनुष्य में चिंता उत्पन्न करती है, दूसरों से अपमान करवाती है, शत्रुता उत्पन्न करती है, मित्रों से घृणा का पात्र बनाती है और आत्मीय जनों से विरोध कराती है। निर्धन व्यक्ति को घर छोड़कर चले जाने की इच्छा होती है, उसे स्त्री से भी अपमान सहना पड़ता है ।

शोकाग्नि हृदय को एक बार ही जला नहीं डालती, अपितु संतप्त करती रहती है । दैववश निर्धनता पर उनकी टिप्पणी है, ‘ दैववश मनुष्य जब दरिद्रता को प्राप्त होता है तब उसके मित्र भी शत्रु हो जाते हैं, यहाँ तक कि चिरकाल से अनुरक्त जन भी विरक्‍त हो जाते हैं।’

दरिद्रता के कारण पुरुष के बंधुजन उसकी वाणी में विश्वास नहीं करते, उसकी मनस्विता हँसी का विषय बन जाती है। शीलवान्‌ को शांति भी मलीन हो जाती है, बिना शत्रुता के ही मित्र विमुख हो जाते हैं। आपत्तियाँ बड़ी हो जाती हैं। जो पाप-कर्म अन्य लोगों द्वारा किया होता है, उसे भी उसी का किया हुआ मानने लगते हैं।

निर्धनता मृत्यु से भी बुरा

निर्धनता में मन:कामनाएँ भी उठ-उठकर विलीन होती रहती है ।इसलिए तुलसी कहते हैं, ‘नहिं दारिद सम दुःख जग माहीं। ‘क्षेमेन्द्र ने तो ‘ दारिद्रयं मरणं लोके‘ कहकर संसार में शरीरधारियों कौ दरिद्रता को मृत्यु माना है। हितोपदेश तो इसे मृत्यु से भी बुरा मानता है, क्योंकि ‘ अल्पक्लेशेन मरण दारिद्रयमतिदुःसहम्‌।’ अर्थात्‌ मरण में थोड़ा कष्ट होता है जबकि दारिद्रय अति दुःसह होता है।

महाभारत के रचयिता वेदव्यास की धारणा है, ‘धन का अभाव ही मनुष्य का वध है। कारण, मोह के वशीभूत होकर वह क्रूरता पूर्ण कर्म करने लगता है। परिणामत: उसकी सारी क्रियाएँ छिन्‍न-भिन्‍न हो जाती हैं।’

उपसंहार

वस्तुतः गरीबी एक अभिशाप है, जहाँ भाई का नाता भी ‘ पोजीशन’ ( आर्थिक स्थिति) की मर्यादाओं में बँधा है, जहाँ श्रद्धा-भक्ति यहाँ तक कि जीवन-संगिनी पत्नी के प्रेम की भी कीमत है । इसीलिए महर्षि अरविन्द की मान्यता है, ‘निर्धनता का होना एक अन्यायपूर्ण तथा कुव्यवस्थित समाज का प्रमाण है और हमारी सार्वजनिक दानशीलता केवल एक डाकू के विवेक का प्रथम और धीमा जागरण है।’

दया धर्म का मूल है-निबंध
बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपया
नर हो, न निराश करो मन को
निन्दक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय निबंध

सेंट्रल बोर्ड ऑफ सैकण्डरी एजुकेशन की  नई ऑफिशियल वेबसाईट है : cbse.nic.in. इस वेबसाईट की मदद से आप सीबीएसई बोर्ड की अपडेट पा सकते हैं जैसे परिक्षाओं के रिजल्ट, सिलेबस,  नोटिफिकेशन, बुक्स आदि देख सकते है. यह बोर्ड एग्जाम का केंद्रीय बोर्ड है.
संघ लोक सेवा आयोग का एग्जाम कैलेंडर {Exam Calender Of -UNION PUBLIC COMMISSION (UPSC) लिंक/Link

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *