नारी तू सबला है

“नारी तू सबला है” पर हिंदी में निबंध

नारी तू सबला है पर हिंदी में निबंध

नारी तू सबला है – सूक्ति का भावार्थ

सूक्ति में ‘सबल‘ का स्त्रीलिंग ‘सबला’ इसलिए बनाया है, ताकि नारी के लिए बहुप्रचलित शब्द ‘ अबला‘ का वह विलोमार्थी बन सके, अन्यथा हिन्दी में सबला शब्द का प्रयोग होता ही नहीं । वस्तुत: अबला का अर्थ है–जिसमें कोई बल या शक्ति न हो। यह नहीं है, अपितु अबला का अर्थ है–अल्प बल वाली। ‘नज्‌’ का प्रयोग अल्पार्थ में भी होता है। इसका भाव इतना ही है कि नारी में पुरुष की अपेक्षा कुछ कम बल होता है, पर नारी में शक्ति होती ही नहीं, यह ‘अबला‘ शब्द से ध्वनित नहीं होता।

नारी तू सबला है
नारी तू सबला है

वैसे बलवान्‌ का कोशगत अर्थ है–जिसमें अत्यधिक शक्ति हो तथा जो पुष्ट हो। महाभारत के उद्योग पर्व ( 34/75) में महर्षि बेदव्यास ने पाँच प्रकार के बल बताए हैं–(1) बाहुबल, (2) मैत्री का मिलना, (3) धन लाभ, (4) पितामह से प्राप्त”! अभिजात’ (उच्च कुल) तथा (5) बुद्धिबल । उन्होंने बाहुबल को निकृष्ट और बुद्धि-बल को सर्वश्रेष्ठ बल माना है।

मैथिलीशरण गुप्त ने भारत-भारती में कहा है–

“खिंच जाए जिस पर मन स्वयं सच्चा वही बलवान्‌ है।”

मैथिलीशरण गुप्त

चाणक्य का मानना है कि

‘रूप-यौवन माधुर्य॑ स्त्रीणां बलमुत्तमम्‌।’ स्त्रियों की सुन्दरता, तारुण्य और मधुरता उनका आत्मबल है।

चाणक्य

नारी तू सबला है-नारी शक्तिशालिनी

नारी शक्तिहीन नहीं, अपितु शक्ति-शालिनी है। इसके सम्बन्ध में अनेक उद्धरण मिलते हैं । वेदव्यास जी ने ‘शुश्रूषा तु बल॑ स्त्रीणाम्‌” कहकर सेवा को ही स्त्री का बल बताया है। रामकुमार वर्मा नारी की शक्ति उसकी तपस्या मानते हैं । जयशंकर प्रसाद ने कामायनी में नारी का सबलत्व “नारी माया ममता का बल, वह शक्तिमयी छाया शीतल ‘में माना है। किसी विद्वान ने ‘रोदन॑ स्त्रीणां बलम्‌‘ कहकर रोने को ही स्त्री का बल स्वीकार किया है।

नारी तू सबला है परविभिन्‍न विद्वानों के विचार

हजारीप्रसाद द्विवेदी ‘बाणभट्ट की आत्म-कथा’ में कहते हैं,

जहाँ कहीं दुःख-सुख की लाख-लाख धाराओं में अपने को दलित द्राक्षा के समान निचोड़कर दूसरे को तृप्त करने की भावना प्रबल है, वही ‘ नारी तत्त्व’ है या शास्त्रीय भाषा में कहना हो तो ‘शक्ति-तत्त्व’ है।!

हजारीप्रसाद द्विवेदी

नारी ही व्यक्ति को जनती है। वह घर, कुटुम्ब, जाति और देश को बनाती है। एक शब्द में कहें तो दुनिया स्त्री पर टिकी है । रवीद्धनाथ ठाकुर ने कहा, ‘तुम विश्व की पालनी- शक्ति की थारिका हो; शक्तिमय माधुरी के रूप में। /इसलिए नारी सबला है। ईरान के शहंशाह का कथन है-

सात सलाम उस नारी को; जो माँ है युवराज की।
बादशाह उससे डरते हैं, क्योंकि सत्ता उसकी गोद में है।।

ईरान के शहंशाह

पंचतंत्र में विष्णु शर्मा भी मानते हैं, “मेधावी तथा समर-सूर पुरुष भी स्त्री के समीप परम कायर हो जाते हैं ।’ भर्तृहरि कहते हैं, “वे भला अबला कैसे हैं जिनकी चंचल पुतलियों के कटाक्ष से इन्द्रादि भी हार मानते हैं। भौंहें फेरने की कुशलता के कारण खिंचे हुए नेत्रों से कटाक्ष करना, स्नेहपूर्ण बातें करना, शरमा कर हँसना, केलि करते हुए मन्द-मन्द चलना, झट से रुक जाना और झट चल पड़ना, नारी के अलंकार भी है और शस्त्र भी।’ लिन उतांग का कहना है ‘चीन में मान्यता है कि जब नारी की भूकुटी तनती है तो दूज का चन्द्रमा भी डर के मारे टेढ़ा हो जाता है ।

कालिदास ‘ मालविकाग्निमित्रम्‌’ में कहते हैं, ‘निसर्ग निपुणा: स्त्रिय:’ अर्थात्‌ स्त्रियाँ स्वभाव से चतुर होती हैं ।

प्रबोध चन्द्रोदय में श्रीकृष्ण मिश्र इसका समर्थन करते हैं, ‘नारी मोहित करती है, मदयुक्त बनाती है, उपहास करती है, भर्त्सना करती है, प्रमुदित करती है, दुःख देती है। ये स्त्रियाँ पुरुषों के दयामय हृदयों में प्रवेश कर क्या नहीं करती हैं ?

कल्हण तो नारी की चुनौती से पराजित हो कहते हैं, ‘निसर्ग तरलां नारीं को नियंत्रयितुं क्षम: । (राज-तरंगिणी) अर्थात्‌ निसर्ग-तरल नारी को नियन्त्रित करने में कौन समर्थ है?

नारी की वीरता का समर्थन प्रसाद जी ‘ कंकाल ‘ उपन्यास में करते हैं, ‘ उसमें एक धारा है, गति है, पत्थरों की भी उपेक्षा करके कतराकर वह चली जाती है। अपनी संधि खोज ही लेती है और सब उसके लिए पथ छोड़ देते हैं, सब झुकते हैं, सब लोहा मानते हैं।’

नारी तू सबला है-नारी की वीरता

नारी की वाणी की तेजस्विता पर लक्ष्मीबाई केलकर लिखती हैं–‘ स्त्री का शारीरिक सामर्थ्य भले ही कम हो, उसकी वाणी में असीम सामर्थ्य है। योग्य स्थान पर प्रभावशाली ढंग से उसका उपयोग कर वह समाज को योग्य दिशा दे सकती है।

शरच्चन्द्र चट्टोपाध्याय कहते हैं, ‘ यथार्थ प्यार करने में स्त्रियों की शक्ति और साहस पुरुष से कहीं अधिक है। पुरुष जहाँ भय-विहल हो जाता है, स्त्रियाँ वहाँ स्पष्ट उच्चस्वर से घोषित करने में द्विविधा नहीं करतीं।

नारी को देखकर पुरुष का मन उसके हाथ से निकल जाता है, वह उसमें आसक्त हो जाता है। विश्वामित्र-मेनका, सूर्य-कुन्ती, शीरी-फरहाद, सोहनी-महीबाल इसके चिर-परिचत उदाहरण हैं । इसलिए प्रसिद्ध कवि जानकीवल्लभ शास्त्री ने उसकी अजेयता पर गर्व करते हुए कहा– “नारी पौरुष की दुर्बलता, युग-युग की हारी हुई विजय।

इतना ही नहीं डॉ. रामकुमार वर्मा तो एक पग आगे रखते हुए कहते हैं, ‘यदि नारी वर्तमान के साथ भविष्य को भी अपने हाथ में ले-ले तो वह अपनी शक्ति से बिजली की तड़प को भी लज्जित कर सकती है।

रोना भी स्त्री का बल है। प्रसाद जी कहते हैं, इसीलिए ‘नारी के अश्रु अपनी एक-एक बूँद में एक बाढ़ लिए रहता है।

विश्वकवि रवीद्ध कहते हैं–‘ हे नारी ! तूने अपने अथाह अश्रुओं से संसार के हृदय को उसी प्रकार घेर रखा है, जिस प्रकार समुद्र ने पृथ्वी को।


जातक में नारी को सर्वशक्तिमती मानते हुए लिखा है :


बल॑ चन्दो बल॑ सुरियो बल॑ पमण ब्राह्मणा।
बल॑ वेता समुदस्य बलाति बल॑ ड्रत्थिया ॥

जातक


अर्थात्‌ चन्द्रमा बलवान्‌ है, सूर्य बलवान्‌ है, श्रमण और ब्राह्मण बलवान्‌ हैं, समुद्र की लहरें बलबती हैं, परन्तु सबसे अधिक बलवती स्त्रियाँ ही हैं। रणभूमि में बलप्रदर्शित करने में भी भारत की नारी सदा अग्रणी रही है। लक्ष्मीबाई, दुर्गावती, चेननमा, इन्दिरा गाँधी इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं।


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